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त्र्यंबकेश्वर: तीन नेत्रों वाले शिव

गवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिगों में आठवें स्थान पर आते हैं त्र्यंबकेश्वर। त्र्यंबकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र में नासिक शहर से 36 किलोमीटर दूर है। त्रि-अंबक यानी तीन नेत्रों वाले शिव। शिव का यह मंदिर समुद्र...

त्र्यंबकेश्वर: तीन नेत्रों वाले शिव
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 15 Sep 2014 09:24 PM
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गवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिगों में आठवें स्थान पर आते हैं त्र्यंबकेश्वर। त्र्यंबकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र में नासिक शहर से 36 किलोमीटर दूर है। त्रि-अंबक यानी तीन नेत्रों वाले शिव। शिव का यह मंदिर समुद्र तल से 25,000 फुट की ऊंचाई पर पहाड़ों की तलहटी में बना है। गौतम और गंगाजी की प्रार्थना पर शिव यहां संसार के उपकार के लिए त्र्यंबक रूप में विराजते हैं। त्र्यंबकेश्वर का मंदिर नाना साहब पेशवा ने बनवाया था। यह मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर के चारों ओर काले पत्थरों पर सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है।

मुख्य मंदिर के चार द्वार हैं, जिनमें उत्तर व पूर्व का द्वार विशाल है। यहां मंदिर के गर्भ गृह में बाकी मंदिरों की तरह शिवलिंग नहीं है, बल्कि यहां एक छोटे से गड्ढे में अंगूठे जैसे तीन लिंग दिखाई देते हैं। ये ब्रह्म, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। शिव के तीन प्रतीक यानी त्र्यंबकेश्वर। शिवलिंग पर निरंतर प्राकृतिक रूप से गोदावरी नदी के जल से अभिषेक होता रहता है। तीन लिंग चूंकि गड्ढे में हैं, इसलिए श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शीशा लगाया गया है, जिसमें आप त्र्यंबकेश्वर के दर्शन कर सकते हैं। हर सोमवार को मंदिर में भगवान शिव की पालकी निकाली जाती है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर में दूर-दूर से लोग कालसर्प दोष के निवारण के लिए भी आते हैं।

मंदिर के निकट ब्रह्मागिरी पर्वत से पवित्र गोदावरी नदी निकलती है। स्कंद पुराण में गोदावरी माहात्म्य की कथा आती है। कहा जाता है, एक समय में सालों इस क्षेत्र में बिल्कुल वर्षा नहीं हुई। वर्षा के लिए गौतम ऋषि ने घोर तप किया। तब भगवान वरुण ने प्रसन्न होकर वर दिया कि यहां तुम्हारे नाम से अक्षय जल वाला कुंड होगा। इसके बाद से ये इलाका हरा-भरा हो गया। ब्रह्मागिरी पर्वत पर जहां गौतम ऋषि ने लंबा तप किया, दो जल कुंड हैं। इन्हें राम कुंड और लक्ष्मण कुंड कहते हैं। गोदावरी के उद्गम तक पहुंचने के लिए पर्वतमाला पर 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। त्र्यंबकेश्वर आने वाले श्रद्धालु नासिक में रह कर मंदिर दर्शन के लिए आ सकते हैं। वैसे मंदिर के आसपास भी आवासीय सुविधाएं उपलब्ध हैं। मंदिर से कुछ किलोमीटर पहले गजानन संस्थान में भी ठहरा जा सकता है।

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