फोटो गैलरी

Hindi Newsहर युग में अलग गणेशजी

हर युग में अलग गणेशजी

क्या गणेशजी की पूजा हमेशा इसी रूप में होती रही है? -मनु, दिल्ली शास्त्रों में लिखा गया है, ‘कलौ चंडी विनायकौ’अर्थात कलिकाल में केवल मां आदिशक्ति और गणेश जी की पूजा से ही मनोकामनाएं...

हर युग में अलग गणेशजी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 25 Aug 2014 08:18 PM
ऐप पर पढ़ें

क्या गणेशजी की पूजा हमेशा इसी रूप में होती रही है?
-मनु, दिल्ली

शास्त्रों में लिखा गया है, ‘कलौ चंडी विनायकौ’अर्थात कलिकाल में केवल मां आदिशक्ति और गणेश जी की पूजा से ही मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। प्रथम पूजनीय देव गणेश जी की पूजा से बुद्धि का विकास होता है, बल और यश में वृद्धि होती है तथा जीवन में आ रही बाधाओं का समूल नाश होता है।

युगों के साथ बदलता स्वरूप
आज हम गणेशजी के जिस स्वरूप की पूजा करते हैं, आज से वर्षों पूर्व गणेश जी के उस स्वरूप की पूजा नहीं होती थी। बदलते युग के साथ गणेश जी के स्वरूप में भी बदलाव आया है। गणेश पुराण में वर्णित है-
‘‘ध्यायेत सिंहगतम विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे,
त्रेतायां तु मयुर वाहनंमुं षड्बाहुकम सिद्धिदम।
ई द्वापरेतु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम तुर्ये,
तु द्विभुजं सीतांगरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा।।’


अर्थात सतयुग में गणेश जी सिंह के वाहन के साथ विनायक स्वरूप में पूजित रहे। संभवत: इसका कारण यह था कि सतयुग में गणेशजी ने बहुत से युद्धों में असुरों को पराजित किया और योद्धा की दृष्टि से सिंह वाहन उचित लगता है। त्रेता में गणेशजी का वाहन मोर था, जो उनके सौंदर्य प्रधान होने का संकेत देता है। इस युग में गणेशजी के छह हाथ थे। द्वापर में रक्तवर्णी गजानन स्वरूप की पूजा की जाती थी। कलयुग में द्विभुजी गणेशजी की आराधना प्रभावशाली होगी, ऐसा कहा गया है।

‘विष्णु धर्मोत्तर पुराण’ में आराधना हेतु गणेशजी की वर्णित छवि इस प्रकार है- गजमुख, चतुर्भुज, लम्बोदर, दाहिने दोनों हाथों में कमल, अक्षमाला व बायें हाथों में परशु तथा मोदक पात्र। साथ ही मूषक वाहन व आसन भी होना चाहिए, केवल दाहिना दांत हो अर्थात एकदंत होना चाहिए।’ यह भी वर्णन है कि ‘सूंड मोदक पात्र पर टिकी होनी चाहिए और रंग रक्त चन्दन का होना चाहिए।’

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें