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जब राजीव गांधी ने तोड़ी कड़वाहट की दीवार

भारत-चीन के बीच संबंध सुधारने में 1988 की राजीव गांधी की चीन यात्रा का खासा महत्व है। तब उनके साथ चीन गए तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री नटवर सिंह की डायरी के अंश : चीन राजीव गांधी का स्वागत करने को आतुर...

जब राजीव गांधी ने तोड़ी कड़वाहट की दीवार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Sep 2010 09:09 PM
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भारत-चीन के बीच संबंध सुधारने में 1988 की राजीव गांधी की चीन यात्रा का खासा महत्व है। तब उनके साथ चीन गए तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री नटवर सिंह की डायरी के अंश :

चीन राजीव गांधी का स्वागत करने को आतुर था, प्रधानमंत्री ने मई 1987 को पी. एन. हक्सर को बीजिंग भेजा। उन्होंने शीर्ष चीनी नेताओं के साथ लंबी बातचीत की (डेंग जियाओपिंग के साथ नहीं)। वापसी पर उन्होंने राजीव गांधी को सूचित किया कि प्रधानमंत्री की चीन यात्रा को लेकर चीनी नेताओं में बेहद उत्साह है।
विदेशी मामलों के मंत्री एन. डी. तिवारी भी 1988 की उत्तरी कोरिया की अपनी यात्रा से लौटते हुए बीजिंग में रुके थे।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल बेहद उत्साहित था। डेंग जियाओपिंग के साथ ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल में प्रात: 10:30 पर मुलाकात तय हुई। डेंग एक सलेटी रंग का माओ सूट पहन कर वहां आए। उनके शुरुआती शब्द थे, ‘मैं आपका स्वागत करता हूं, मेरे युवा मित्र। यह चीन की आपकी पहली यात्रा है।’ प्रधानमंत्री, ‘जी हां।’

डेंग-राजीव गांधी का हैंडशेक कुछ देर तक चला। यह संकेत था कि डेंग चाहते थे कि भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा सफल रहे। किसी भी अन्य देश से अधिक चीन में सांकेतिक संदेश अधिक मायना रखते हैं। यदि हैंडशेक पूर्व-नियोजित होता तो वह वार्ता उसी समय असफल साबित होती। डेंग ने कहा, ‘मैं 1954 में आपके नाना और आपकी माँ से उनकी चीन की यात्रा के दौरान मिला था। उस समय मैं अपनी पार्टी का महासचिव था।’

विश्व और भारतीय मीडिया उस समय हरेक शब्द और हर हाव-भाव को नोटिस करने के प्रयास में जुटा था। डेंग का कहा हरेक शब्द पूर्वनिर्धारित और सावधानीपूर्वक कहा गया था। हैंडशेक का जादुई असर हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा की सफलता की आस तेज थी। दशकों पुरानी रूखी अमैत्री दूर होती दिख रही थी। वहां मौजूद लोगों के लिए वह ऐतिहासिक पल थे। अब तक चीनी मीडिया सही भूमिका में लेकिन संतुलित नजर आ रहा था। लेकिन अब उसमें ड्रामाई परिवर्तन होना था और हुआ।

डेंग ने कहा कि हम दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छे थे। प्रधानमंत्री ने जवाब में कहा उस समय रिश्ते सचमुच बेहद मधुर थे। उसके बाद कुछ असहजता छाई (प्रधानमंत्री ने बेहद सौम्यता से कहा)। हमें अपने आपसी भेदभाव भूलकर भविष्य की ओर देखना चाहिए। डेंग ने कहा कि वह भी यही चाहते हैं। हां, हमें भविष्य की ओर देखना चाहिए। दोनों देश मिलकर काफी कुछ कर सकते हैं।

..बिना किसी विशेष वरिष्ठता के असर के, डेंग ने उन्हें चीन को चलाने वाले युवा तुर्को, झाओ जियांग और ली पेंग से दोस्ती करने की सलाह दी। भविष्य में किसी भी कार्य की मंत्रणा के लिए वह उन दोनों को संपर्क करें। 1971 में माओ-त्से तुंग ने कुछ ऐसे ही शब्दों में निक्सन से कहा था, ‘बिजनेस ? उस पर प्रधानमंत्री के साथ मंत्रणा करो। हम यहां दार्शनिक पहलुओं पर बात करेंगे।’

डेंग का दृष्टिफलक बेहद जरूरी था। और उनकी सोच का दायरा भी। उन्होंने इस विषय पर खासतौर पर जोर दिया कि दोनों देशों को बदलते अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण का लाभ उठाते हुए चीन और भारत के आर्थिक विकास की दिशा में काम करना चाहिए। उन्होंने इसे दोनों देशों की समान जरूरत बताया। भारत और चीन के एक साथ कार्य करने से वैश्विक संतुलन को सहयोग मिलेगा।

डेंग ने अगले दो दशकों में चीन और भारत के आर्थिक विकास पर गहरा जोर दिया। इक्कीसवीं सदी को एशियाई सदी कहना गैर यथार्थवादी होगा। वह केवल चीन और भारत के लिए ही नहीं, बल्कि समूची मानवजाति के लिए विकास चाहते थे - लेकिन पहले चीन और भारत को पिछड़ापन और गरीबी दूर करनी होगी। डेंग ने अपने देश की विदेश नीति को कुछ शब्दों में व्यक्त किया - एकछत्रवाद विरोध, विश्व शांति को बढ़ावा।

..अंतत: प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में हम करीब यही कुछ कर रहे हैं। पुरानी अड़चनें आधुनिकीकरण के लिए तोड़ी जा रही हैं। इसकी झलक हमारी अर्थव्यवस्था में देखी जा सकती है। गत चार वर्षो में अर्थव्यवस्था के विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। डेंग जियाओपिंग ने प्रधानमंत्री को सफलता की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा चीन और भारत दोनों को विकास की जरूरत है। उसके लिए परितर्वन लाने होंगे। 

डेंग ने उस दिन कहा, ‘हमने हरेक जरूरी विषय पर मंत्रणा की।’ उन्होंने साथ ही कहा द्विपक्षीय संबंधों पर राजीव गांधी ली पेंग और झाओ जियांग के साथ आगे बातचीत जारी रखेंगे। डेंग ने प्रधानमंत्री से पूछा कि क्या इस बिंदु पर बैठक समाप्त की जा सकती है।

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