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एक-दूसरे को प्रेम में बांधने का त्योहार

ऐसी मान्यता है कि रक्षा बंधन के दिन बहनें भाइयों की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं, ताकि भाई उनकी रक्षा करें। परंतु वास्तव में रक्षा बंधन का भाव केवल इतना ही नहीं है। वास्तव में रक्षा बंधन से...

एक-दूसरे को प्रेम में बांधने का त्योहार
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 04 Aug 2014 07:58 PM
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ऐसी मान्यता है कि रक्षा बंधन के दिन बहनें भाइयों की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं, ताकि भाई उनकी रक्षा करें। परंतु वास्तव में रक्षा बंधन का भाव केवल इतना ही नहीं है। वास्तव में रक्षा बंधन से अभिप्राय है कि जब बहन, भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती है तो वह कह रही होती है, ‘मैं जीवन के प्रत्येक क्षण में तुम्हारी रक्षा करूंगी।’ अर्थात बहनें, भाई की रक्षा व भले के लिए प्रार्थना करती हैं और रक्षा सूचक पवित्र धागा भाइयों को बांधती हैं। यही रक्षा बंधन का वास्तविक अर्थ है। बरसों से ऐसी गलत धारणा रही है कि महिलाएं कमजोर व शक्तिहीन होती हैं। परंतु ऐसा नहीं है। महिलाओं में बहुत ही अनोखी शक्ति होती है- संकल्प शक्ति। एक महिला अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और आंतरिक मजबूती के सहारे पुरुष की रक्षा करती है और उसे मजबूती प्रदान करती हैं। भारत में महिलाओं को कभी भी शक्तिहीन व कमतर नहीं आंका जाता। आपने  सत्यवान और उसकी पत्नी सावित्री की कहानी सुनी होगी। सावित्री अपने पति के प्रति इतनी समर्पित थी कि उसने मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति के लिए लड़ाई की और उनसे अपने पति की जिंदगी वापस ली।

घर में एक महिला ही मुख्यत: एक-दूसरे से प्रेम व बंधन का कार्य करती है। वह सभी की भलाई के लिए कार्य करती है। वास्तव में भारत में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक सम्मान मिलता है। हम पहले राधे कहते हैं और बाद में श्याम, पहले सीता और फिर राम, पहले गौरी और फिर शंकर। इसलिए हम कह सकते हैं कि पुरुष और महिलाएं केवल बराबर नहीं हैं, बल्कि इस देश में महिलाओं को अधिक सम्मान मिलता है। समाज के विकास में एक महिला का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है। वास्तव में यही निर्धारित करता है कि कोई समाज सामंजस्यपूर्ण और मजबूत होगा या नहीं। महिलाएं समाज की रीढ़ होती हैं। महिलाओं में भावनात्मक शक्ति तो होती ही है, वे आंतरिक तौर पर भी बहुत मजबूत होती हैं। किसी भी व्यक्ति में इन बातों का होना सबसे बड़ी मजबूती है। आंतरिक शांति के बिना बाहरी शारीरिक मजबूती किसी काम की नहीं।

भीतरी शक्ति से यहां तात्पर्य बुद्धि की शक्ति और आंतरिक इच्छा व भावनाओं की ताकत से है। एक महिला में इन दोनों ही बातों का सामंजस्यपूर्ण योग रहता है। रक्षा बंधन अर्थात ऐसा बंधन, जो आपको बांधता है ज्ञान से, गुरु से, सत्य से, स्वयं से। एक रस्सी आपको बचा भी सकती है और आपको उलझा भी सकती है। एक छोटा दिमाग और छोटी-छोटी बातें आपको जीवन में उलझा देती हैं। एक बड़ा दिमाग और ज्ञान आपको बचाता है। रक्षा बंधन एक ऐसा बंधन है, जो आपको बचाता है और आपकी रक्षा करता है। हमें किसी भी हालत में महिलाओं व कन्याओं के खिलाफ हो रहे अपराध को रोकना होगा। ऐसा तभी संभव हो सकता है, जब समाज आध्यात्मिक धारा से जुड़े और अधिक मानवतावादी और अधिक संवेदनशील बने। यदि जीवन में बंधन दिव्य हो तो वह बंधन आपको आजाद करेगा।

शाश्वत प्रेम का बंधन
रक्षा बंधन है मानवीय भावना का पर्व, भाई-बहन के स्नेह समर्पण भाव का पर्व। एक ऐसा पर्व, जिसमें कलुषता का कोई अंश नहीं। भारत में रक्षा बंधन का करीब 2300 वर्ष पुराना (लगभग 300 ईसा पूर्व से) इतिहास है। यूनान के सम्राट सिकंदर की पत्नी ने जब पुरु की वीरता के बारे में सुना तो विचलित हो उठी। तब उसने सिकंदर की प्राण रक्षा के लिए ‘रक्षा बंधन’ का सहारा लिया। उसने पुरु को राखी भेज कर सिकंदर की रक्षा का वचन प्राप्त कर लिया। धर्मवीर पुरु ने अपना वचन निभाया और राखी के धागे से सिकंदर के प्राणों की रक्षा हो गई। पौराणिक कथा के अनुसार श्री लक्ष्मीजी ने राजा बलि की कलाई पर राखी बांध कर उपहारस्वरूप अपने पति विष्णु जी को वापस लौटा देने का वचन प्राप्त किया था।

ये संदर्भ भारतीय संस्कृति में राखी की महत्ता का संदेश देते हैं। इसलिए तो रक्षा बंधन के अवसर पर राखी बांधते समय मंत्र पढ़ते हैं- ‘येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल:। तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।’ (जिस रक्षा-सूत्र से राक्षसों के राजा महाबलि बलि राजा को भी बांध लिया गया, उसी रक्षा सूत्र को मैं तुम्हारे हाथ में बांधता हूं। इस भाव से मेरी तुम्हारे द्वारा रक्षा होती रहे।) बहन और भाई के बीच का रिश्ता अत्यंत विशिष्ट है। इस रिश्ते में असीम आकर्षण होते हुए भी किसी वासना की बू नहीं, बल्कि बलिदान व समर्पण के भाव भरे हैं। बहन एक ऐसी मित्र है, जो हर समय दूर रहते हुए भी अपने भाई के समीप है। वह सदा सुख-दुख दोनों परिस्थितियों में हाथ बंटाती है, सहायता हेतु तत्पर रहती है। जब घोर अंधकार हो, प्रकाश बन हाजिर हो जाती है। और साथ ही आयु में एक बहुत छोटा भाई भी कितनी भी बड़ी बहन के लिए वट-वृक्ष बन खड़ा हो जाता है। रक्षा बंधन द्वारा स्नेह, शुचिता, निष्कपटता सहित समर्पण का संदेश मिलता है। यह आत्म जागृति, परमात्मा के सान्निध्य का दिन भी है। इस दिन अनेक अनुष्ठान होते हैं।
डॉ. श्रीनाथ सहाय

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