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राम हैं हमारे भीतर के प्रकाश

‘रा’ का अर्थ है रोशनी, रश्मि और ‘म’ का अर्थ है मैं। ‘रेज’ और ‘रेडिएंस’ जैसे शब्दों की उत्पत्ति राम से हुई है। राम का अर्थ है मेरे भीतर का प्रकाश, मेरे...

राम हैं हमारे भीतर के प्रकाश
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 23 Mar 2015 08:36 PM
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‘रा’ का अर्थ है रोशनी, रश्मि और ‘म’ का अर्थ है मैं। ‘रेज’ और ‘रेडिएंस’ जैसे शब्दों की उत्पत्ति राम से हुई है। राम का अर्थ है मेरे भीतर का प्रकाश, मेरे दिल के भीतर का प्रकाश। आपके भीतर का ओज ही राम है। इस सृष्टि के कण-कण में और हर प्राणी में समाया जो ओज है,  वही राम है। भगवान राम अपनी सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं। उनको मर्यादा पुरुषोत्तम और एक आदर्श राजा माना जाता है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, ‘यदि तुम मुझ से सब कुछ छीन लो तो मैं जी सकता हूं, लेकिन यदि तुम मुझसे राम को दूर ले जाओगे तो मैं नहीं रह सकता।’ भगवान राम ने दशरथ और कौशल्या के यहां जन्म लिया था। दशरथ का अर्थ है ‘दस रथ’। दस रथ पांच ज्ञान इंद्रियों और पांच कर्म इंद्रियों का प्रतीक है। कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’। यानी दस रथों को कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने से राम का जन्म होता है। पांच ज्ञान इंद्रियों और कर्म इंद्रियों के कुशल प्रयोग से भीतरी ओज प्रकट होता है। राम का जन्म ‘अयोध्या’ में हुआ, जिसका अर्थ है- जहां कोई युद्ध नहीं हो सकता। जब मन में कोई विवाद नहीं होता, तब प्रकाश का उदय होता है। बस इतना जान लो कि तुम ओजवान हो।

यह पूरी सृष्टि पांच तत्त्वों और दस इंद्रियों से बनी हुई है। क्या अधिक महत्वपूर्ण है- विषय वस्तु या ज्ञान इंद्रियां? विषय वस्तुओं की तुलना में ज्ञान इंद्रियां अधिक महत्वपूर्ण हैं। तुम्हारी आंखें टीवी से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। कान संगीत या ध्वनि की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं। कई लोग यह समझ नहीं पाते। वे समझते हैं कि वस्तु इंद्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मन इंद्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब मन की परवाह न करते हुए केवल इंद्रियों पर ध्यान दिया जाता है तो तुम अवसादग्रस्त हो जाते हो। तो मन की गति को कैसे रोका जाए? इसका उत्तर है ध्यान और श्वास प्रक्रियाएं। इससे लोगों को परमानंद का अनुभव मिल सकता है। परमानंद में रहना पूर्ण विश्रम है। इससे अच्छा स्वास्थ्य मिलने के साथ ही तुम्हारे मन, बुद्धि, भावनाओं और भीतर के आकाश की शुद्धि होती है। उस आकाश की, जो तुम्हारे जीवन को संचालित करता है। तुम्हारी सभी भावनाएं और विचार इसी आकाश से उभरते हैं, जिसकी तुम एक कठपुतली हो। तो पूरी रामायण ही हमारे भीतर घटित हो रही है। राम आत्मा हैं। लक्ष्मण सजगता हैं। सीता मन हैं और रावण अहंकार है। सीता सुनहरे हरिण से आसक्त हो गईं। मन का स्वभाव डगमगाना है। हमारा मन वस्तुओं के प्रति आसक्त होकर उनकी तरफ बढ़ने लगता है तो उसका अहंकार द्वारा अपहरण हो जाता है और वह आत्मा से अलग हो जाता है। हनुमान को पवनपुत्र कहा जाता है। हनुमान की मदद से राम को सीता वापस मिलती हैं। यानी सांस और सजगता के साथ (हनुमान व लक्ष्मण) मन (सीता) और आत्मा (राम) का मिलन होता है।

वह मन, जो अपने स्रोत की ओर वापस आ गया है, ध्यान है। मन जब ‘न मन’ हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। मन को वर्तमान क्षण में जीने के लिए थोड़ा अभ्यास करें, तनाव और बेवजह परेशानियों को छोड़ दें। मन की उड़ान बंद होने से पूर्ण विश्रम व पूर्ण सजगता का अनुभव मिलता है। उस स्थिति में दसों इंद्रियां तुम्हारा सहयोग करती हैं और तुम इस रचना के साथ एक हो जाते हो। और तब राम का जन्म होता है।

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