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खर्राटे लेना बंद करें!

सोते समय अगर तेज आवाज के साथ खर्राटे आते हैं तो इन्हें नजरअंदाज न करें। लंबे समय तक ऐसा होते रहना मस्तिष्क और हृदय को भी प्रभावित कर सकता है। नई तकनीक व कई घरेलू उपायों से इस परेशानी को पूरी तरह ठीक...

खर्राटे लेना बंद करें!
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 29 Jan 2015 08:04 PM
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सोते समय अगर तेज आवाज के साथ खर्राटे आते हैं तो इन्हें नजरअंदाज न करें। लंबे समय तक ऐसा होते रहना मस्तिष्क और हृदय को भी प्रभावित कर सकता है। नई तकनीक व कई घरेलू उपायों से इस परेशानी को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है,  बता रही हैं शमीम खान

जब कोई किसी से कहता है कि तुम बहुत खर्राटे लेते हो तो अधिकतर की पहली प्रतिक्रिया इसे नकारने की होती है। आंकड़ों की मानें तो 45%  लोग कभी-कभी खर्राटे लेते हैं,  जबकि 25% लोग नियमित रूप से ऐसा करते हैं। खर्राटे एक कर्कश आवाज है,  जो संकेत है कि व्यक्ति को सोते समय सांस लेने में परेशानी हो रही है। आमतौर पर इसे सामान्य मान लिया जाता है,  पर लंबे समय तक इसकी अनदेखी न सिर्फ खर्राटे लेने वाले की नींद व उसकी गुणवत्ता पर असर डालती है,  बल्कि साथ सोने वालों को भी कम समस्या नहीं होती।

क्यों आते हैं खर्राटे
कई बार वायुमार्ग के पास अतिरिक्त टिश्यू जमा हो जाते हैं या वायुमार्ग से जुड़ी मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं,  जिससे वायु के प्रवाह में रुकावट आती है। इससे सांस सामान्य रूप से नहीं आता और खर्राटे की समस्या शुरू हो जाती है। बंद मुंह से खर्राटे लेना जीभ की संरचना में समस्या का संकेत है,  वहीं खुले मुंह से खर्राटे लेने का संबंध गले के टिश्यू से हो सकता है। खर्राटे लेते समय जो आवाज आती है,  वह तालू के टिश्यू और गले के पिछले भाग में लटके टिश्यू में कंपन के कारण आती है। सर्दी या एलर्जी के कारण आने वाले खर्राटे अस्थायी होते हैं। इसी तरह गर्भावस्था के दौरान  भी गले में फैटी टिश्यू जमा होने के कारण कुछ महिलाएं खर्राटे लेती हैं।


स्लीप स्टडी कराएं
रात में भरपूर सोने के बाद भी अगर सुबह तरोताजा महसूस नहीं करते तो स्लीप स्पेशलिस्ट को दिखाएं। लक्षणों के आधार पर वह स्लीप स्टडी का सुझाव दे सकता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को पूरी रात स्लीप सेंटर में सुलाया जाता है और शरीर को कई उपकरणों के साथ जोड़ा जाता है। वे उपकरण शरीर की गतिविधियों की जानकारी देते हैं, जिससे आंखों, मस्तिष्क व मांसपेशियों की गतिविधियां, हृदय की धड़कन और शरीर में ऑक्सीजन का अध्ययन किया जाता है। बाजार में घर में ही खुद जांचने के उपकरण भी उपलब्ध हैं, जिनसे व्यक्ति के शरीर की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। उसी के आधार पर उपचार किया जाता है।

इसलिए खर्राटे हैं खतरा 
लंबे समय तक खर्राटे लेने वालों में उच्च रक्तचाप,  रात में सीने में दर्द होना, ध्यान केंद्रित न कर पाना, हृदय की धड़कन असामान्य होना, रक्त में शर्करा को नियंत्रित न रख पाना या फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका अधिक होती है। कई अध्ययनों के अनुसार जिन्हें खर्राटे आते हैं,  उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

खर्राटों के कारण कैरोटिड धमनियों की दीवार मोटी हो जाती है। इन धमनियों का कुछ भाग गले के बहुत पास होता है और खर्राटों के कारण होने वाले कंपन का प्रभाव इन पर पड़ता है। धमनियों के मोटा होने से स्ट्रोक और धमनियों के कड़ा होने का खतरा बढ़ जाता है। ये दोनों स्थितियां हृदय को प्रभावित करती हैं। वसा के जमा होने से गले की धमनियां संकरी हो जाती हैं,  जो स्ट्रोक की आशंका को बढ़ाती हैं। इंडियन एसोसिएशन ऑफ र्सजस फॉर स्लीप एप्निया (आईएएसएसए) ने स्लोगन भी दिया था,  ‘खर्राटे लेना बंद करो और हृदय को बचाओ।’


स्लीप एप्निया तो नहीं!
खर्राटों का आना स्लीप एप्निया का संकेत भी हो सकता है। स्लीप एप्निया की स्थिति में सांस लगातार रुकता और चालू होता है। रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है,  जिससे खर्राटे आते हैं। कई बार व्यक्ति को सांस रुकने का पता ही नहीं चलता,  पर कई बार अचानक सांस रुकने व गला चोक होने पर नींद खुल जाती है। वैसे यह जरूरी नहीं कि जिन लोगों को स्लीप एप्निया हो,  उन्हें खर्राटे आते ही हों। एक अध्ययन के अनुसार खर्राटे लेने वालों में 20% लोग स्लीप एप्निया से पीड़ित होते हैं। अधिक वजन वाली महिलाओं में मेनोपॉज के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है। उम्र बढ़ने के साथ भी इसकी आशंका बढ़ती है।

खर्राटे आने के कारण
- मोटापे के कारण श्वसन व मुख नलिका में वसा जमा होना। 
- उम्र बढ़ने के साथ गले का संकरा होना व मांसपेशियां ढीली पड़ना। गला संकरा होने के कारण पुरुषों को खर्राटे अधिक आते हैं। 
- एल्कोहल, धूम्रपान व अवसाद में ली जाने वाली दवाओं का असर। 
- अस्थमा व साइनस होने पर।  
- तालू में दरार, जीभ का आकार बड़ा होना व टॉन्सिल होना।

अनदेखी न करें
- खर्राटे जोर से आना व दिनभर थकावट रहना। सोते समय सांस रुकना, हांफना या गला चोक होना।
- बातें करते,  टीवी देखते या फिर गाड़ी चलाते समय झपकी आना।


इन्हें भी अपना कर देखें
खर्राटे की समस्या यदि गंभीर नहीं है तो जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर इसे कम किया जा सकता है..
- अपना वजन कम करें। सक्रिय रहें।
- सोने से तुरंत पहले धूम्रपान, एल्कोहल व भारी भोजन से बचें। नींद की गोलियों से बचें। पीठ के बल सीधे लेटने की जगह करवट लेकर सोएं।
- रात में सोने और सुबह उठने का एक समय निर्धारित करें। तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें।
- सोने वाले कमरे में पर्याप्त नमी रखें। सूखी हवाएं नाक व गले की मांसपेशियों में जलन करती हैं। 
- सिर को चार इंच ऊंचा रख कर सोएं। बाजार में विशेष तकिये भी आते हैं।  
- गले में खराश हो तो नमक के पानी से गरारे करें। नाक बंद रहती है तो नेजल स्प्रे भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

व्यायाम भी है कारगर
- नियमित व्यायाम से गले की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। गले के लिए खास व्यायाम करें।
- अंग्रेजी के अक्षरों ए-ई-आई-ओ-यू को तीन मिनट तक जोर-जोर से बोलें,  ऐसा दिन में कई बार करें।
- जीभ के अग्रभाग को दांतों से सटा लें। फिर जीभ को पीछे की ओर खींचे। ऐसा एक मिनट तक करें, दिन में कम से कम तीन बार करें।
- मुंह खोलें,  निचले जबड़े को दायीं ओर करें और 30 सेकेंड के लिए रोक लें। इसे बायीं ओर से भी करें। दो से तीन बार करें। 
- जब भी मौका मिले कोई गीत गुनगुना लें,  इससे तालू और गले की मांसपेशियों पर नियंत्रण बढ़ता है।

उपचार   
प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ही तरीके का उपचार सही नहीं होता। यह व्यक्ति के लक्षणों पर निर्भर करता है। खर्राटे आने के कारणों का पता लगाने के बाद ही उपचार सुझाया जाता है। तालू के मुलायम टिश्यू को कसाव देने के लिए एक सजर्री की जाती है,  जिसे सोम्नोप्लास्टी कहते हैं। इसमें रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लैशन का उपयोग किया जाता है। यह सर्जरी सामान्य एनिस्थीसिया देकर की जाती है। इस उपचार के बाद 77%  मामलों में खर्राटे आने की समस्या लगभग खत्म हो जाती है। एक और विकल्प ओरल एप्लाएंस थेरेपी (ओएटी) है। इसमें एक माउथपीस का उपयोग किया जाता है,  जो निचले जबड़े को आगे की ओर करता है। इससे वायुमार्ग को खुला रखा जाता है। लेजर थेरेपी भी कारगर है।


खर्राटे लेने से जुड़े कुछ मिथक

मिथक: 
हर कोई खर्राटे लेता है,  इसलिये यह सामान्य  है।
तथ्य:  खर्राटे आना सामान्य नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि शरीर नींद में सांस लेने के लिये संघर्ष कर रहा है। यह उच्च रक्तचाप और स्लीप एप्निया का संकेत हो सकता है। स्लीप एप्निया का उपचार न कराने पर हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

मिथक:  केवल खर्राटे लेने वाले व्यक्ति की ही सेहत प्रभावित होती है?
तथ्य:  खर्राटे साथ सोने वाले व्यक्ति का उच्च रक्तचाप भी बढ़ा सकते हैं। इनकी ध्वनि  60-90 डेसिबल तक होती है।

मिथक:  खर्राटे नाक से आते हैं,  इसलिए नाक साफ करने से यह समस्या ठीक हो जाएगी।
तथ्य:  यह सही है कि नाक बंद होने पर भी खर्राटे आते हैं,  पर हाल में हुए अध्ययन बताते हैं कि खर्राटे से छुटकारा पाने के लिए जो लोग नाक की सजर्री कराते हैं,  उनमें से केवल 10%  में ही स्लीप एप्निया की समस्या दूर होती है। खर्राटे नाक,  जीभ व तालू तीन चीजों के बीच जटिल संबंधों से उत्पन्न होते हैं।


मिथक:  वजन कम करने से स्लीप एप्निया की समस्या दूर हो जाएगी?
तथ्य:  यह सही है कि अधिक वजन रखने वालों में खर्राटे लेने की समस्या अधिक होती है,  पर यह भी सच है कि स्लीप एप्निया के शिकार लोगों में भूख बढ़ाने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है,  जिससे अधिक खाया जाता है।


मिथक:  नींद की कमी का मोटापे, हाइपरटेंशन, मधुमेह व अवसाद से कोई संबंध नहीं है? 
तथ्य:  एक अध्ययन के अनुसार उच्च रक्तचाप के 80%, स्ट्रोक के 60 % और हार्ट फेल के 50% मामलों में पीड़ित लोगों में लंबे समय तक स्लीप एप्निया की समस्या देखने को मिलती है।


मिथक:  खर्राटे का कोई उपचार नहीं है।
तथ्य:  खर्राटे के उपचार के लिए कई तरीके मौजूद हैं। इस संबंध में सजर्री आदि का निर्णय लेने से पहले अन्य तरीकों को अपनाएं। इसके लिए बेहतर होगा कि किसी अच्छे डॉक्टर से सही जांच करवाएं।

हमारे विशेषज्ञ
- डॉ. तरुण मित्तल, लैप्रोस्कोपिक, रोबोटिक एंड ओबेसिटी सर्जन, सर गंगाराम हॉस्पिटल।
- डॉ. विकास मौर्य, सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पायरेटरी मेडिसिन, एलर्जी एंड स्लीप डिसॉर्डर, बीएलके सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल। 

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