अनुभूति की आंच
यह चित्र मुद्गल का बारहवां कहानी संग्रह है। उन्होंने खुद कहा है कि अराजक माहौल में खौफ खाए चेहरों पर कुछ अघटित घट जाने की आशंका उन्हें कहानियां लिखते रहने को प्रेरित करती है। संग्रह की कहानियां भी...
यह चित्र मुद्गल का बारहवां कहानी संग्रह है। उन्होंने खुद कहा है कि अराजक माहौल में खौफ खाए चेहरों पर कुछ अघटित घट जाने की आशंका उन्हें कहानियां लिखते रहने को प्रेरित करती है। संग्रह की कहानियां भी इसका अपवाद नहीं हैं। हैरत नहीं यदि कोई इन कहानियों की समसामयिक विसंगतियों पर रचनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में देखे। संग्रह की पहली कहानी, जो संग्रह का शीर्षक भी है, एक पेंटिंग से प्रेरित है। बड़ी कुशलता से लेखिका ने जड़ पेंटिंग के बहाने अपनी अस्मिता और आजादी की तलाश में जुटी एक स्त्री के संघर्ष को उजागर किया है। ‘आंगन की चिड़िया’ में पूर्वोक्त विषय के साथ एक और पहलू आया है, वह है अपनी लड़की के बनते स्वतंत्र संसार के साथ प्रौढ़ माता-पिता की पीड़ाएं।
पेंटिंग अकेली है, चित्र मुद्गल, सामयिक बुक्स, नई दिल्ली-2, मूल्य 250 रु.
उनकी अपनी कहानी
कुंवर नटवर सिंह को नौकरशाही और सियासत का लंबा अनुभव है। उन्होंने राजीव गांधी के शासनकाल में अनेक मंत्रालयों में काम किया। बाद में वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में विदेश मंत्री बने। फिर एक वक्त ऐसा आया जब कांग्रेस में उन्हें किनारे कर दिया गया। सिंह ने अपनी गुजरी जिंदगी के लेखे में तमाम बातें समेटी हैं, लेकिन इस किताब की सबसे ज्यादा चर्चा कांगेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में जाहिर की गई उनकी राय से हुई। लोगों ने इसको एक बुजुर्ग राजनीतिक की आत्मकथा से अधिक सोनिया के व्यक्तित्व को जानने का जरिया समझा। हालांकि किताब वास्तव में समकालीन भारतीय राजनीति के एक प्रतिनिधि के शब्दों में बतलाती है कि सत्ता से जुड़ी सफलता का सुख चाहे जितना भंगुर हो, उससे वंचना का दुख जल्द समाप्त नहीं होता।
एक जिंदगी ही काफी नहीं, के. नटवर सिंह, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली, मूल्य 295 रु.
इतिहास बनते देखना
यह पोलिश पत्रकार रिषार्ड कापुश्चिंस्की की चर्चित कृति है। इसमें ईरान के अंतिम शाह मुहम्मद रजा पहलवी के पतन की कहानी वर्णित है। इसमें दिखाया गया है कि सर्वोच्चता और एकाधिकार हासिल करने की महत्वाकांक्षा किस तरह जन साधारण के उत्पीड़न और दमन का स्रोत बन जाती है। यह भी कि कोई भी तानाशाह अपनी निरंकुशता और अहमन्यता की लौह-दीवार का अंतत: खुद भी शिकार बनता है। ईरानी क्रांति के बारे में लिखी गई यह किताब यूं तो पत्रकार की आंखों देखी है, लेकिन प्रचलित अर्थों में यह सिर्फ रिपोर्ट नहीं है। इसमें ईरानी संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक हालात बाराकी से विन्यस्त होकर प्रस्तुत हुए हैं।
शाहों का शाह, रिषार्ड कापुश्चिंस्की, अनु: प्रकाश दीक्षित, राजकमल प्रकाशन, मूल्य 300 रु.
बांकी नजर
युवा पत्रकार नीरज बधवार की यह किताब समसामयिक मसलों पर बांकी टिप्पणियां हैं। सच कहना और अप्रिय सच कहना हमेशा से कठिन और खतरनाक रहा है, लेकिन यह भी सच है कि ‘अप्रिय सच मत बोलो’ की सीख के मुकाबले उलटबांसी का रिवाज भी नया नहीं है। वास्तव में जब सीधे सच बोलना मुश्किल हो तो लोग व्यंग्य की शरण लेते हैं। इसमें साहस की दरकार होती है। वह अपनी दुनिया की हकीकत समझते हैं और विषय का चुनाव करना जानते हैं।
हम सब फेक हैं, नीरज बधवार, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य 125 रु.