फोटो गैलरी

Hindi Newsपीड़ित मानसिकता से बचना है जरूरी

पीड़ित मानसिकता से बचना है जरूरी

बचपन में किसी रिश्तेदार ने कुछ गलत किया तो रिश्तों से विश्वास उठ गया। बरसों पहले किसी के बुरा कहे की पीड़ा आज तक साल रही है। होता है सबके साथ ऐसा कुछ, जिसका डर जिंदगी भर पीछा करता है। उम्र बढ़ती जाती...

पीड़ित मानसिकता से बचना है जरूरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Apr 2015 12:18 AM
ऐप पर पढ़ें

बचपन में किसी रिश्तेदार ने कुछ गलत किया तो रिश्तों से विश्वास उठ गया। बरसों पहले किसी के बुरा कहे की पीड़ा आज तक साल रही है। होता है सबके साथ ऐसा कुछ, जिसका डर जिंदगी भर पीछा करता है। उम्र बढ़ती जाती है और हम ठहर जाते हैं। लेकिन क्या दूसरों के नकारात्मक कार्यों के लिए खुद को सजा देना ठीक है?

मनोविज्ञान के अनुसार, ‘पुरानी किसी घटना या दर्द को नहीं छोड़ना, उसके साथ जीते जाना पीड़ित मानसिकता का शिकार बना देता है। ऐसा व्यक्ति खुद को परिस्थितियों का दास, असहाय व निर्णय लेने में असक्षम मानने लगता है। सुरक्षा, प्यार, संबंध, आत्मसम्मान जैसे उसके तमाम भाव उस डर व दर्द के इर्द-गिर्द ही बुनते चले जाते हैं।
मोटिवेशनल स्पीकर व लेखक मर्सी शिमॉफ कहती हैं, ‘पीड़ित बने रहने से कोई फायदा नहीं होता। यह वर्तमान खुशियों से दूर करता है। दूसरों की सहानुभूति से मिलने वाला आनंद भी क्षणिक ही साबित होता है। आत्मनिर्भर बनना ही दुनिया में आनंद का एहसास कराता है। पीड़ित मानसिकता का शिकार बने रहना कार्य करने की क्षमता घटा देता है।’

कुछ लक्षण
इमोशनल फ्रीडम की लेखिका और मनोरोग विशेषज्ञ प्रो. जुडिथ ऑरलॉफ के अनुसार, पीड़ित मानसिकता के लोगों में निम्न लक्षण देखने को मिलते हैं...
’    दूसरों पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति। खुद की जिम्मेदारी को न समझना।
’    यह मानना कि सब मेरे प्रति गलत सोचते हैं या कोई मुझे प्यार नहीं करता। 
’    खुद को असहाय और वंचित मानते हुए दूसरों को भाग्यशाली और बेहतर             समझना। यह मानना कि अब कुछ अच्छा नहीं होगा।
’    दूसरों से सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करना।
’    असुविधा और जिम्मेदारियों से बचने के लिए खुद को असहाय बताना।
’    हर समय रक्षात्मक बने रहना या अपनी सोच के घेरे में ही कैद रहना।
’     वर्तमान की हर स्थिति के लिए पुरानी बातों को जिम्मेदार ठहराना
’    जोखिम लेने से बचना। हीनता के भाव रखना और दूसरों पर निर्भर रहना।

यूं करें पीड़ित मानसिकता को अलविदा
’    सजगता: यह स्वीकारना मुश्किल होता है कि हम पीड़ित मानसिकता के शिकार हैं, पर यही सुख की दिशा में पहला साहसी कदम है। मर्सी कहती हैं कि सब कुछ न्यायसंगत नहीं होता। अच्छे लोगों के साथ भी बुरा होता है। बदलाव के लिए खुद के प्रति सजगता होना जरूरी है।
’    क्षमा करें: दुख से उबरने और पुरानी पीड़ा से आगे बढ़ने के लिए क्षमा करना जरूरी है। गुस्से व दुख को पकड़े रहना, न बीते समय को बदल सकता है और न ही उस व्यक्ति को जिसने दुख पहुंचाया है। अपने भीतर की कड़वाहट को बढ़ने से रोकें और आगे की ओर कदम बढ़ाएं। बाहरी दुनिया में आएं। किसी की मदद करें।
’    जिम्मेदारी लें: यह फैसला करें कि अपनी आपबीती को बहाने के तौर पर या किसी की सहानुभूति हासिल करने के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे। अपने चुनाव और व्यवहार की जिम्मेदारी लें। अपने जीवन के सीईओ बनें। अच्छी किताबें पढ़ें। कुछ नया सीखें।
’ आभार व्यक्त करें: बीते समय का दर्द जीवन का केवल एक हिस्सा है। उसके अलावा भी बहुत से अच्छे अनुभव व लोग होते हैं। जीवन में अच्छा व खुशी देते हैं, उनका आभार व्यक्त करें। उनसे बात करें, उनके साथ होने की खुशी को व्यक्त करें।
’ करुणा: लंबे समय की पीड़ा एकदम से समाप्त नहीं होगी। खुद को थोड़ा समय दें। धैर्य रखें। खुद के प्रति प्यार से पेश आएं। अपनी गलतियों के लिए खुद को माफ करें। अपनी उपलब्धियों को जानें। किसी शुभचिंतक के साथ शेयर करें। सकारात्मक सोच ही सही दिशा में ले जाती है।          

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें