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अपनी बेचैनी को छुपाएं नहीं

हाल में अनुष्का शर्मा ने एक इंटरव्यू में खुल कर कहा कि वे एंग्जाइटी का इलाज करा रही हैं। दीपिका ने भी खुद को अवसाद और एंग्जाइटी से जूझते हुए बताया। हालांकि भारत में बड़ी संख्या में लोग न तो...

अपनी बेचैनी को छुपाएं नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 26 Feb 2015 08:43 PM
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हाल में अनुष्का शर्मा ने एक इंटरव्यू में खुल कर कहा कि वे एंग्जाइटी का इलाज करा रही हैं। दीपिका ने भी खुद को अवसाद और एंग्जाइटी से जूझते हुए बताया। हालांकि भारत में बड़ी संख्या में लोग न तो सिलेब्रिटी की तरह खुल कर इस पर बात करते हैं और न ही उपचार की जरूरत समझते हैं। वैसे एंग्जाइटी डिसॉर्डर को स्वीकार करना ही राहत की दिशा में पहला कदम है।

क्या है एंग्जाइटी डिसॉर्डर
पुणे स्थित कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट साक्षी भाटिया के अनुसार, ‘एंग्जाइटी एक तरह की मानसिक व भावनात्मक कमजोरी है,  जिसकी आमतौर पर उपेक्षा की जाती है। कुछ इसे स्वभाव, थकावट या कार्यस्थल की परेशानी मान कर छोड़ देते हैं तो कुछ इसे मानसिक रोग मानते हैं।’ 

एंग्जाइटी बनाम डिप्रेशन
यह जरूरी नहीं कि बेचैन या व्याकुल रहने वाले सभी लोग अवसाद से पीड़ित हों। सभी अवसाद पीड़ित भी एंग्जाइटी के शिकार नहीं होते। पर डॉ. साक्षी भाटिया कहती हैं,  ‘उपचार में लापरवाही करने पर कोई भी एक दूसरे को बढ़ाने का कारण बन जाता है। एंग्जाइटी एक तरह से डर और शक की भावना है, जिसमें व्यक्ति भविष्य के बारे में अनिश्चित होता है। वहीं अवसाद मन की गहन उदासी है, जिसमें नकारात्मक विचार, आत्महत्या की भावना, हीनता व उदासीन व्यवहार के अलावा हर समय थकावट देखने को मिलती है। यह समझना जरूरी है कि एंग्जाइटी में कई तरह के डिसॉर्डर आते हैं, जिनमें पैनिक अटैक और किसी बीमारी या घटना के बाद का आघात, सामाजिक भय और ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसॉर्डर शामिल हैं। जो लोग इसके अभ्यस्त होते हैं, एंग्जाइटी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती है। साक्षी कहती हैं, ‘वर्तमान में कम उम्र से ही अलग पहचान बनाने का एक दबाव है। दूसरों की अपेक्षाएं भी हर समय बनी रहती हैं। बचपन में तंग किए जाने वाले बच्चों में बड़े होकर एंग्जाइटी व अवसाद की आशंका बढ़ जाती है।’

ध्यान रखें
आप एंग्जाइटी की उपेक्षा भले ही कर दें,  पर वे आपको अकेले नहीं छोड़ती। मैक्स हेल्थकेयर में मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज विभाग के प्रमुख समीर मल्होत्रा के अनुसार, ‘एंग्जाइटी के दौरान आमतौर पर थकावट, धड़कनों का तेज होना, कंपन, दम घुटता हुआ महसूस होना, छोटी सांसें आना, शरीर में लहर चलती हुई महसूस करना आदि  लक्षण दिखायी देते हैं। कई बार खून में कार्बन डाइऑक्साइड और कैल्शियम का स्तर गिर जाता है। एंग्जाइटी के दौरान बार-बार  पेशाब आने, पेट के निचले हिस्से में संवेदना महसूस करने, भूख में कमी व रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं। कुछ लोगों को कार्यकुशलता, ऊर्जा व फोकस क्षमता में कमी आने जैसे लक्षण भी महसूस होते हैं।

उपचार संभव है
एंग्जाइटी डिसॉर्डर का उपचार संभव है। मन और शरीर एक-दूसरे से न्यूरोकेमिकल्स, हार्मोन और इम्यून सिस्टम के जरिए जुड़े हैं। ऐसे में तीनों स्तर पर उपचार किया जाता है। पहले मनोचिकित्सक का उपचार चलता है। इस दौरान दी गई दवाएं मस्तिष्क में सेरोटॉनिन के स्तर को बढ़ाती हैं और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। नोरपिनेफिरिन स्तर में संतुलन आना शारीरिक लक्षणों में राहत देता है। ये दवाएं निर्धारित समय-सीमा के लिए ही दी जाती हैं। 2011 में हुए एक शोध के अनुसार,  नियमित व्यायाम की मदद से पैनिक व अन्य संबंधित डिसॉर्डर की समस्या कम हो जाती है। फार्माकोथेरेपी या साइकोथेरेपी का अपना महत्व है, पर नियमित व्यायाम से भी एंग्जाइटी से पीड़ितों में राहत देखने को मिलती है। समीर मल्होत्रा के अनुसार ‘एंग्जाइटी को कम करने के लिए एल्कोहल का सहारा न लें। यह स्थिति को गंभीर बना सकता है।’

शंका की स्थिति में क्या करें
- समस्या को अधिक बढ़ा कर न देखें,  न ही स्वयं इलाज करने की कोशिश करें। कई मानसिक समस्याओं के लक्षण एक जैसे देखने को मिलते हैं।
- लोगों से थोड़ा खुलें। जिन पर विश्वास है,  उनके साथ अपनी शंकाओं पर बात करें। 
- प्रोफेशनल्स से मदद लेने में संकोच न करें। जीवन में संतुलन बनाने में मदद मिलेगी।

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