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यह हवा से फैलने वाली बीमारी नहीं

अफ्रीकी देशों में इबोला वायरस के कारण हजार से ज्यादा मौतें होने के बाद इस बीमारी को लेकर भारत में भय का माहौल पैदा हो गया है। इस बीमारी की भयावहता और इसके फैलाव से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अखिल भारतीय...

यह हवा से फैलने वाली बीमारी नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 13 Aug 2014 10:04 PM
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अफ्रीकी देशों में इबोला वायरस के कारण हजार से ज्यादा मौतें होने के बाद इस बीमारी को लेकर भारत में भय का माहौल पैदा हो गया है। इस बीमारी की भयावहता और इसके फैलाव से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की विषाणु रोग प्रयोगशाला के प्रभारी प्रोफेसर ललित डार से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

कुछ समय पहले ही स्वाइन फ्लू (एच1 एन1) ने दस्तक दी थी और वह देश में फैल चुका है। अब इबोला वायरस का खतरा मंडराने लगा है, क्या एक और भयावह बीमारी का आना तय है?
पहली बात तो यह है कि बीमारी अभी देश में आई नहीं है। ऐसे सभी इंतजाम किए जा रहे हैं, जिससे यह देश में न आने पाए। फिर भी यदि किसी प्रकार इसका कोई रोगी देश में पहुंच जाता है, तब भी भय की कोई बात नहीं है। यह स्वाइन फ्लू या सार्स की भांति हवा से फैलने वाली बीमारी नहीं है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इबोला का संक्रमण सिर्फ गहरे नजदीकी संपर्क में आने से होता है। मसलन, संक्रमित व्यक्ति के शरीर के किसी स्राव या अपशिष्ट से ही यह बीमारी फैल सकती है। मसलन, उसके संक्रमित रक्त से मल-मूत्र से, या यौन संबंध स्थापित करने से। लार एवं पसीने से थोड़ी बहुत संभावना है। काफी हद तक यह बीमारी एड्स जैसी है। संक्रमित व्यक्ति से बात करने में, उसके आसपास से गुजरने में यह बीमारी नहीं फैलती, जबकि स्वाइन फ्लू ऐसे भी फैल सकता है।

लेकिन अफ्रीकी देशों से काफी लोग यहां आते हैं। हमारे जो लोग वहां हैं, वे भी आ रहे हैं, ऐसे में बीमारी को कब तक देश में आने से रोका जा सकता है?
इबोला का संक्रमण एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में तभी होता है, जब रोगी को तीव्र बुखार हो। बीमारी विकसित होने की अवधि में इसका संक्रमण नहीं होता। इसलिए बुखार के रोगियों पर नजर रखी जा रही है। यदि किसी व्यक्ति को बुखार है तो उसे हवाई जहाज में यात्रा की अनुमति नहीं दी जा रही, लेकिन कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि यात्रा शुरू करते समय बुखार न हो और हवाई जहाज में बैठने के बाद बुखार आ जाए। ऐसे लोगों को एयरपोर्ट पर चेक किया जा रहा है तथा बुखार पाए जाने पर उन्हें जांच के लिए सीधे अस्पताल भेजने की व्यवस्था की गई है। वहां इबोला की जांच होगी। जांच नेगेटिव पाए जाने या फिर उपचार होने के बाद ही उन्हें छुट्टी दी जाएगी। एक स्थिति यह हो सकती है कि अफ्रीकी देशों से वापस लौटे व्यक्ति को एयरपोर्ट से घर पहुंचने के बाद बुखार आए, क्योंकि संक्रमण के बाद बीमारी के लक्षण विकसित होने में दस दिन लग जाते हैं। ऐसे में उस व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह स्वास्थ्य अधिकारियों को सूचित करे और तय अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराए। वैसे संक्रमित देशों से आने वाले यात्रियों के स्वास्थ्य पर सरकार भी दस दिनों तक नजर रखेगी।

इबोला वायरस कब से सक्रिय है और कितना खतरनाक है?
अफ्रीकी देशों में यह 1976 से सक्रिय है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर इसका फैलाव पहली बार देखा गया है। इसके पांच उप प्रकार हैं और अब तक के अध्ययन बताते हैं कि इसके संक्रमितों की मृत्यु दर 90 फीसदी तक है, लेकिन इस बार जिस उप प्रकार के वायरस का संक्रमण है, उसकी मृत्यु दर करीब 50-55 फीसदी के बीच होने का अनुमान है। यानी पहले की तुलना में यह थोड़ा कम घातक है, लेकिन यह दर भी बेहद खतरनाक है। खतरे का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि डेंगू में मृत्यु का खतरा महज एक फीसदी होता है।
 
इस बीमारी में मौत की असल वजह क्या होती है?
शरीर के भीतर अत्याधिक रक्तस्राव मौत की सबसे बड़ी वजह है। ज्यादा रक्तस्राव होने के कारण मरीज एक समय के बाद बेहोशी में चला जाता है, जो अंतत: मौत का कारण बनता है।

क्या देश में इस विषाणु की जांच और उपचार की सुविधाएं मौजूद हैं?
जांच की सुविधाएं उपलब्ध हैं। दो प्रयोगशालाओं में जांच के इंतजाम किए गए हैं। इनमें दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी है। जहां तक इलाज का प्रश्न है, वह अभी कहीं नहीं है। रोगी का इलाज उसके लक्षणों के आधार पर किया जाता है। मसलन, बुखार का इलाज बुखार रोकने की दवाओं से और रक्तस्राव रोकने का इलाज आदि। फिर भी यदि यह इलाज भी समय पर मिले तो मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। तमाम प्रयासों के बावजूद इसकी कोई दवा या टीका अभी तक नहीं निकल पाए हैं।

सरकार अपना प्रयास कर रही है, लोगों को क्या करना चाहिए?
अभी लोगों को कुछ करने की जरूरत नहीं, क्योंकि अभी देश में बीमारी नहीं है। वैसे इस बीमारी के प्रति लोगों का जागरूक रहना सबसे ज्यादा जरूरी है।

 

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