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असाध्य नहीं मनोरोग

ऑटिज्म डॉ अरूण कुमार (मनोवैज्ञानिक) अब तक ऑटिज्म का कोई स्थायी इलाज संभव नहीं है। अत: इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अगर बच्चे में दृष्टि, श्रवण दोष या असामान्य व्यवहार की तरफ अनदेखी न करें...

असाध्य नहीं मनोरोग
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 07 Oct 2009 10:42 PM
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ऑटिज्म
डॉ अरूण कुमार (मनोवैज्ञानिक)
अब तक ऑटिज्म का कोई स्थायी इलाज संभव नहीं है। अत: इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अगर बच्चे में दृष्टि, श्रवण दोष या असामान्य व्यवहार की तरफ अनदेखी न करें बल्कि तुरंत मनोचिकित्सक व काउंसलर से मदद लेनी चाहिए ताकि बच्चा सामान्य जीवन जी सके। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस विकार से पीड़ित बच्चों के लिए अलग स्कूल खोले हैं, जहां बीमारी से संबंधित वर्कशॉप, सेमिनार आदि का आयोजन होता है।

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के पालन-पोषण के लिए अभिभावकों व परिजनों की विशेष ट्रेनिंग होती है ताकि स्कूल के बाद भी बच्चे को उपयुक्त माहौल मिल सके। यह एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में अभी काफी जनजागरण की आवश्यकता है।

फोबिया
डॉ समीर पारिख (मनोचिकित्सक)
फोबिया के विकार से गुजर रहे अधिकतर लोग अपने विकार पर पर्दा डाले रहते हैं। उन्हें लगता है कि इसकी चर्चा करने से उनकी जग हंसाई होगी। वे उन हालात से बचने की पुरजोर कोशिश करते हैं जिनसे उन्हें फोबिया का दौरा पड़ता है। लेकिन यह पलायन का रवैया जीवन में जहर घोल देता है।  जीत विकार को परास्त करने में है।

इसके बाद साइकोथेरेपिस्ट की सहायता से मन में बैठे फोबिया को मिटाने की कोशिश की जा सकती है। इसमें फोबिया-प्रेरक स्थिति से सामना कराते हुए मन में उठने वाली आशंका पर कंट्रोल रखने के उपाय सुझाए जाते हैं। जैसे-जैसे रोगी का आत्मविश्वास लौटता जाता है, वैसे-वैसे उसका भय घटता जाता है। यह डीसेंसीटाइजेशन थैरेपी रोगी में फिर से जीने की ललक पैदा कर देती है। अस्वाभाविक भय की हार और जीवन की जीत होती है।

सोशल फोबिया जैसे सभा में बोलने के भय से छुटकारा पाने के लिए भीतरी दुश्चिंता और तनाव पर विजय पाकर स्थिति वश में की जा सकती है। बीटा-ब्लॉकर दवाएँ जैसे प्रोप्रेनोलॉल और एटेनोलॉल और चिंतानिवारक दवाएँ जैसे एलप्रेजोलॉम भी सोशल फोबिया से उबारने में प्रभावी साबित होती हैं।

ऑब्सेशन
डॉ जितेंद्र नागपाल (मनोवैज्ञानिक)
सबसे पहले तो ऑब्सेशन का शिकार होने वाले व्यक्ति से संपर्क में रहिए। उसे एकांगी और आत्मकेंद्रित होने से बचाइए। उससे बातचीत करते रहिए। बातचीत करते रहने से व्यक्ति को उन  लतों के बारे में सोचने का समय नहीं मिलता। ध्यान रखने वाली बात है कि ऐसे मरीज को डांटे नहीं, क्योंकि गुस्से और हताशा में वह गलत कदम भी उठा सकता है।
 
उसे समझाने की कोशिश कीजिए और उसके सोचने के तरीके में बदलाव करें।  परिवार वालों को भी समझदार होना चाहिए। उन्हें ऐसी कोई उम्मीद नहीं लगानी चाहिए जिसे वह व्यक्ति पूरा न कर पाए। किसी के सामने उसकी आदत का मजाक मत बनाइए। न ही उसे उत्तेजित करने की कोशिश कीजिए। उसे बस इतना एहसास दिलाइए कि वह आपका खास है। आजकल बहुत से सामाजिक व्यवहार ऑब्सेशन का रूप ले लेते हैं। चूंकि अब लोगों के पास परिवार के लिए समय नहीं।

इसलिए अगर परिवार में किसी को कोई समस्या होती है तो लोग एक दूसरे से बातचीत करके उसे नहीं सुलझा पाते। इसके अलावा पढ़ाई, नौकरी, टूटते संबंध और दूसरी समस्याएं आ खड़ी होती हैं। कई बार ऑब्सेशन इसलिए भी उत्पन्न होता है क्योंकि लोग दूसरों का ध्यान अपनी तरफ बंटाना चाहते हैं। अगर रिश्ते मजबूत हों तो ऐसी समस्याएं नहीं खड़ी होंगी।

किशोरावस्था की समस्या
डॉ अरुणा ब्रूटा (मनोवैज्ञानिक)
बच्चे की दिन भर में दो तीन बार तारीफ जरूर करें। ध्यान रखें कि बच्चे को कभी भी निकम्मा और मक्कार नहीं कहना चाहिए चाहे बच्चा कितनी भी बड़ी गलती क्यों न करें, इससे बच्चे के अहम को ठेस पहुंचती है। यदि बच्चे की अहम में लगातार ठेस पहुंचती है तो बच्चे की नकारात्मक एप्रोच हो जाती है और बच्चा आपसे मीलों दूर हो जाता है। जहां से उसे वापस ला पाना मुश्किल हो जाता है। 

बच्चे को उसकी गलती पर डांटने के बजाए प्यार से समझाएं, क्योंकि बच्चे को प्यार करने की सबसे ज्यादा जरूरत उस वक्त होती है, जब वह प्यार करने लायक बिल्कुल नहीं हो। आपके व्यवहार से बच्चे को स्पष्ट हो जाएगा कि गलती करने की उसे इजाजत नहीं है, लेकिन उसे अब भी उतना ही प्यार किया जाता है जितना कि पहले किया जाता था। बच्चे की किसी भी बात को लेकर रिश्तेदारों के सामने मजाक नहीं बनाना चाहिए । ऐसे में बच्चे को लगता है कि उसकी पोल खुल गई है और वह शर्मिंदगी महसूस करता है। बच्चे के साथ आपको मधुर संबंध कायम करना है तो उसके दोस्तों के साथ मित्रता करें। इससे  आप हमेशा यंग बने रहेंगे दूसरा आपको बच्चे के बारे में सारी बातें खुद-ब-खुद मालूम होती रहेंगी और आप धैर्यपूवर्क आसानी से अपने बच्चे के सही गलत  से परिचित कराते रहेगें।

डिप्रेशन
डा. नीलम कुमार वोहरा
डिप्रेशन एक घातक रोग है जिसमें मरीज की दिमागी स्थिति और मूड दोनों पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे मरीजों के साथ बहुत सावधानी बरतनी चाहिए और इन प्रमुख बातों पर गौर करना चाहिए। इनका आत्मविश्वास कम रहता है। इसलिए इनको बढ़ावा देना चाहिए जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़े।
-अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए।
-ऐसे मरीज अपनी भावनाओं का व्यक्त नही कर पाते। ऐसे लोगों को अकेला नही छोड़ना चाहिए और बातचीत से इनकी समस्या का समाधान करना चाहिए। ऐसे मरीजों को हमेशा किसी काम में व्यस्त रखना चाहिए।

कुछ सुझाव
(जयश्री मुखर्जी, मूलचंद मेडिसिटी)
ऑटिज्म नर्वस सिस्टम की खराबी दूर करने के लिए सुझाव-
-उन्हें आसपास के माहौल और चीजों से वाकिफ कराने पर वे समझने लगेंगे, और फिर बोल भी सकते हैं। 
-पहले संदेश ग्रहण करने, फिर उसे अभिव्यक्त करने और अंत में बोलने पर फोकस करें।
-ऐसे मरीजों को एक बार में एक ही चीज समझाएं, उससे बिलकुल अलग चीज बीच में न लाएं। जैसे कि रंग के बारे में बात करते समय पहले ब्राइट रंग दिखाएं, और इसके बाद हल्के रंग।
-कोई भी नई चीज उन्हें एकदम से न दिखाएं। पहले उसका आइडिया दें या चित्र दिखाएं।
-ऐसे बच्चों को छूने या दुलारने से परहेज करें। इससे वे उग्र हो सकते हैं। 

आत्महत्या की प्रवृत्ति 
(डॉ. मोनिका छिब)
-होशियारी और समझदारी के साथ व्यक्ति की निराशा के संकेत पता लगाना।
-निराशा और हताशा से गुजर रहे लोगों पर ध्यान दें, उन्हें किसी भी कीमत पर नजर अंदाज न करें।
-त्रासद अनुभव- जैसे ब्रेक अप, परीक्षा में फेल होना, आदि की ठीक से पहचान और जांच करना।
-ऐसे लोगों को ढांढ़स बंधाना वाकई कारगर साबित होता है।

एंग्ज़ायटी
(डॉ. गौरव गुप्ता)
-अपनी अपेक्षाएं ज़मीनी रखें। ज्यादा ऊंची ख्वाहिशों पर काबू रखने से बेफिक्र रहेंगे।
-हल्की कसरत भी कारगर होती है। जैसे हल्के-फुल्के योगासन या टहलना।
-निर्धारित दिनचर्या, जैसे समय पर खाना, सोना आदि।
-जीवन के जटिल मुद्दों को निकट सहयोगी या मित्र के साथ बांटना और उनकी राय से उनका हल निकालना।
-आपसी बातचीत से मसला हल न हो, तो प्रोफेशनल मदद लेना।

खान-पान पर ध्यान
डॉ भावना बर्मी(मनोवैज्ञानिक)

-संतुलित भोजन लें।
-नियमित हल्का व्यायाम, योग करे।
-सिगरेट, शराब व अन्य नशे से बचें।
-तुरंत मनोचिकित्सक या काउंसर से सम्पर्क करें।
-समस्या के बारे में बिना डॉक्टर से परामर्श किए कोई भी दवा न लें।

मनोरोगों से जुड़ी कुछ गलत धारणाएं और तथ्यात्मक सच्चाई
गलत धारणा

-मानसिक विकार कोई रोग नहीं हैं बल्कि बुरी आत्माओं की वजह से पैदा होते हैं
-दवाओं के सेवन से बचना चाहिए
-आपको यह रोग अपनी कमजोरी से हुआ है, और इससे बचाव करना चाहिए
-दवाएं नुकसानदायक होती हैं, ये निर्भरता बढ़ाती हैं और ं जीवनभर लेनी पड़ती हैं
-ज्यादातर मनोविकारों का कोई इलाज नहीं होता
-बच्चों को दवाएं नहीं दी जानी चाहिएं
-इलाज के लिए नींद की गोलियां दी जाती हैं
-अवसाद जैसे मर्ज अपने आप ठीक होते हैं या प्रभावित व्यक्ति के प्रयासों से

सच्चाई
-यह चिकित्सा विज्ञान है और मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है।
-मनोरोग चिकित्सक द्वारा दवाएं बतायी गई हैं तो इनका सेवन अवश्य करना चाहिए
-दूसरी बीमारियों की तरह यह रोग भी आंतरिक स्तर पर जैविक असंतुलन की वजह से होता है
-निगरानी में दवाएं लेना कारगर होता है, अब तो नई दवाओं के उपलब्ध होने के बाद लंबी अवधि तक दवाएं लेने के मामले कम हो रहे हैं
-दवाओं के सेवन से मनोविकारों में काफी कमी होती है, खासतौर से तब जबकि इलाज शुरूआती चरण में आरंभ हो जाए
-यदि चिकित्सक ने दवा लेने की सलाह दी हो तो यह अवश्य लेनी चाहिए
-मनोविकारों के उपचार में दी जाने वाली दवाएं रासायनिक असंतुलन को बहाल करती हैं, कुछ दवाओं से नींद आती है लेकिन वे नींद की गोलियां नहीं होतीं
-अवसाद जैसे मनोविकार भी मधुमेह या उच्च रक्तचाप की तरह के रोग ही होते हैं, और इनके लिए भी विषेशज्ञ की देखरेख में इलाज कराने की आवश्यकता होती है।

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