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फिल्म रिव्यू: पिज्जा

करीब पांच साल पहले अभिनेता आर. माधवन की एक फिल्म आई थी, ‘13बी’। इस फिल्म को अपने कंटेंट और ट्रीटमेंट की वजह से न केवल उत्तर भारत में, बल्कि दक्षिण में भी काफी पसंद किया गया था। बॉलीवुड के...

फिल्म रिव्यू: पिज्जा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 19 Jul 2014 09:18 AM
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करीब पांच साल पहले अभिनेता आर. माधवन की एक फिल्म आई थी, ‘13बी’। इस फिल्म को अपने कंटेंट और ट्रीटमेंट की वजह से न केवल उत्तर भारत में, बल्कि दक्षिण में भी काफी पसंद किया गया था। बॉलीवुड के रूटीन भुतहा जॉनर से परे यह एक साइकोलॉजिकल हॉरर फिल्म थी। बाद में खबरें ये भी आईं कि ‘13बी’ का कोरियन रीमेक बन रहा है। इसके बाद हॉरर, सस्पेंस थ्रिलर की चाशनी में डूबी ढेरों फिल्में आयीं, जिनमें बारिश, सस्ते एवं फूहड़ सेक्स सीन्स वगैरह, वह सब कुछ देखने को मिला, जिसके हम आदी रहे हैं। ऐसे में ‘पिज्जा’ एक नई उम्मीद जगाती है। यह एक सुपरनेचुरल थ्रिलर हॉरर फिल्म है। फिल्म का टाइटल कहानी के साथ मैच करता है। वो कैसे, आइये जानें।

कुणाल (अक्षय ओबेराय) एक पिज्जा डिलीवरी बॉय है और उसकी पत्नी निकिता (पार्वती ओमनाकुट्टन) एक लेखिका, जो एक भुतहा कहानी पर काम कर रही है। एक दिन कुणाल अपने मालिक (राजेश शर्मा) का एक पैकेट उसके घर डिलीवर करने जाता है, जहां उसकी पत्नी प्रिया रहस्यमय परिस्थिति में उस पर बरस पड़ती है। उसका मालिक कुणाल को हिदायत देता है कि वो ये बात किसी को न बताए, क्योंकि उसकी पत्नी प्रेग्नेंट है। उधर, घर आकर कुणाल को पता लगता है कि निकिता भी प्रेग्नेंट है। अगले दिन कुणाल एक घर में पिज्जा  डिलीवर करने जाता है। वहां उसे एक प्रेग्नेंट महिला मिलती है। उसके पास खुले पैसे नहीं होते और वह कुणाल को बाहर इंतजार करने को कहती है और खुद पैसे लेने अंदर चली जाती है। थोड़ी देर बाद कुणाल को उस महिला के चीखने की आवाज आती है। कुणाल घर के एक बेडरूम में पहुंचता है तो देखता है कि महिला की लाश दीवार पर लटकी है।

वह वहां से भागने की कोशिश करता है, लेकिन घर के सारे खिड़की-दरवाजे रहस्यमय ढंग से बंद हो जाते हैं। तभी घर में उस महिला के पति की एंट्री होती है और कुणाल को वहां एक बच्ची दिखती है, जो उसे पापा कहने लगती है। फिर घर के लैंडलाइन फोन पर निकिता का फोन आता है और थोड़ी देर बाद निकिता खुद उस घर के बाहर पहुंच जाती है। कुणाल देखता है कि घर के बाहर खड़ी निकिता को कोई मारने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वो इस कदर फंसा है कि कुछ कर नहीं पाता।

अपनी पहली फिल्म में निर्देशक अक्षय अकिनेनी ने उन तमाम बातों से बचने की कोशिश की है, जिसे अब तक हम हॉरर फिल्मों में देखते आये हैं। ऊपर ‘13बी’ फिल्म का उदाहरण भी इसीलिए दिया गया है, क्योंकि इसमें भी इन बातों से बचने की कोशिश की गई थी। फिल्म की कहानी बांधे रखती है। पटकथा बेहद चुस्त है, इसलिए सीट छोड़ने का मन नहीं करता। अंत तक जिज्ञासा बनी रहती है कि ये सब क्यों और कैसे हो रहा है। आखिर निकिता कहां गई, प्रिया पर कौन सी आत्मा सवार है और तीनों प्रेग्नेंट महिलाओं का आपस में क्या संबंध है। इन बातों को निर्देशक ने अच्छे से पिरोया है, पर अभिनय के मामले में अक्षय ओबेराय से अकिनेनी कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा बैठे। फिल्म के बेहद अहम हिस्सों में वह बेबस से नजर आते हैं। एक व्यक्ति जो अनजान घर में कैद हो गया हो, उसके तो होश उड़ जाने चाहिए, लेकिन अक्षय के माथे पर पसीना तक नहीं आता।

3डी इफेक्ट्स का इस्तेमाल केवल डराने के लिए किया गया लगता है। डरावने मेकअप में भी कई कमियां नजर आती हैं। और सबसे जरूरी बात है फिल्म का अंत, जो लगभग निराश करता है। अंत देख कर आपके मुंह से निकलेगा-‘अरे यार ये बात थी। ये बहुत चालाक निकले!’ फिर भी ‘पिज्जा’ टाइमपास के लिए बुरी नहीं है। खासतौर पर उनके लिए, जो हॉरर फिल्मों से न डरने का दम तो भरते हैं,  लेकिन भुतहा सीन आने पर चुपके से आंखें बंद कर लेते हैं।

सितारे: अक्षय ओबेराय, पार्वती ओमनाकुट्टन, राजेश शर्मा, दिपानिता शर्मा, अरुणोदय सिंह, ओंकार दास माणिकपुरी, 
निर्देशक-पटकथा-लेखक:  अक्षय अकिनेनी
निर्माता: सिद्धार्थ राय कपूर, बिजॉय नाम्बियार
बैनर: यूटीवी स्पॉटबॉय, गेटवे फिल्म्स

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