क्रोध को क्षमा से जीतो, घृणा से नहीं
तिरुवल्लुवर स्वभाव से संत थे और पेशे से जुलाहे। एक समय की बात है। गांव के हाट में बैठे वे अपनी बुनी हुई धोतियां बेच रहे थे। तभी हंसी-ठिठोली करती युवकों की एक टोली उनके पास से गुजरी। तिरुवल्लुवर को...
तिरुवल्लुवर स्वभाव से संत थे और पेशे से जुलाहे। एक समय की बात है। गांव के हाट में बैठे वे अपनी बुनी हुई धोतियां बेच रहे थे। तभी हंसी-ठिठोली करती युवकों की एक टोली उनके पास से गुजरी। तिरुवल्लुवर को देखते ही एक युवक बोल उठा, ‘ये आदमी तो विलक्षण है। कोई तिरुवल्लुवर से कुछ भी कहे, पर इन्हें कभी क्रोध नहीं आता।’ ‘असंभव।’ दूसरे ने कहा, ‘अभी देखना यह आदमी मुझे मारे क्रोध के गालियां देता दिखाई देगा।’ युवक तिरुवल्लुवर के पास पहुंचा। धोतियों के ढेर से उसने एक धोती उठाई और पूछा, ‘क्या कीमत है इस धोती की?’ ‘ दो रजत मुद्राएं।’ तिरुवल्लुवर ने उत्तर दिया। ‘महंगी है। कुछ कम करके बताओ। ’ युवक ने कहा। ‘मैंने सत्य कहा है। मूल्य न कम हो सकता है, न अधिक।’ तिरुवल्लुवर बोले। ‘अच्छा! मूल्य कम करना तो मैं अच्छी तरह जानता हूं।’ युवक ने हंसते हुए कहा और धोती फाड़ कर उसके दो टुकड़े कर दिए। ‘अब बताओ, इस एक टुकड़े का क्या मूल्य है?’ ‘एक रजत मुद्रा।’ संत मुस्कराते हुए बोले। युवक ने आधे टुकड़े को भी पुन: टुकड़े करते हुए पूछा, ‘इसका मूल्य?’ ‘आधी रजत मुद्रा।’ संत ने अविचलित भाव से उत्तर दिया। युवक इसी प्रकार टुकड़ों के टुकड़े करता चला गया और मूल्य पूछता गया।
संत मूल्य घटा-घटा कर बताते गए। जब धोती के इतने छोटे टुकड़े हो गए कि किसी एक टुकड़े का मूल्य बताना संभव नहीं रह गया तो संत मुस्कराते हुए बोले, ‘इसका मूल्य अब यही है कि तुम बिना कुछ दिए इसे ले जाओ।’ धोती पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी। युवक समझ चुका था कि वास्तव में यह व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व है। क्रोध को इन्होंने जीत लिया है। उसे दुख हुआ कि उसने व्यर्थ ही एक गरीब आदमी के हाथों बुनी धोती नष्ट कर दी। दो रजत मुद्राएं निकाल कर संत को देते हुए युवक ने कहा, ‘मैंने आपकी धोती तार-तार कर दी है। कृपया आप इसका मूल्य ले लीजिए और मुझे क्षमा कीजिए।’ ‘खेल-खेल में बच्चे बहुत कुछ नष्ट कर देते हैं वत्स! पिता नष्ट हुई वस्तुओं का मूल्य बच्चों से कभी नहीं लेता। सदैव क्षमा करता है वह। घर से दो रजत मुद्राएं जिस काम के लिए तुम लेकर निकले हो, वह काम करो और अपने घर जाओ। धोती की चिंता न करो। यह तो और बुन लूंगा मैं।’ संत तिरुवल्लुवर से यह सुन कर युवक की आंखें डबडबा गईं। मानो कह रही हों, ‘इतनी शांति.. इतना धैर्य.. इतनी क्षमा.. तुम धन्य हो संत तिरुवल्लुवर.. तुम धन्य हो!’