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कार्तिकेय की आराधना का पर्व

देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय (जिन्हें दक्षिण भारत में सुब्रह्ण्यम,  मुरुगन स्वामी भी कहा जाता है)  मंगल ग्रह और षष्ठी तिथि के स्वामी हैं। यह श्रीशैल मल्लिकाजरुन ज्योतिर्लिंग में निवास...

कार्तिकेय की आराधना का पर्व
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 24 Nov 2014 07:15 PM
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देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय (जिन्हें दक्षिण भारत में सुब्रह्ण्यम,  मुरुगन स्वामी भी कहा जाता है)  मंगल ग्रह और षष्ठी तिथि के स्वामी हैं। यह श्रीशैल मल्लिकाजरुन ज्योतिर्लिंग में निवास करते हैं। मल्लिका का मतलब है माता पार्वती और अर्जुन का अर्थ तो है ही शिव। जहां शिव,  वहां शक्ति। जनश्रुति के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा में अपने बेटे कार्तिकेय से मिलने पार्वती-शिव खुद यहां आते हैं। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से करीब 200 किलोमीटर दूर इस प्राचीन मंदिर को ‘दक्षिण भारत का कैलाश’  भी कहा जाता है। यहां माता परांभरा देवी का मंदिर भी है। प्रवेश द्वार पर गणेश जी का मंदिर है।

भगवान शिव के बड़े पुत्र देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने अपने माता-पिता और छोटे भाई गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़ दिया था और यहां आ गए थे। वजह थी कार्तिकेय और गणेश का विवाह। गणेश चाहते थे कि उनका विवाह पहले हो और कार्तिकेय चाहते थे कि उनका विवाह पहले हो। शिव और पार्वती ने पहले तो दोनों को समझाने का प्रयास किया,  पर जब विवाद ज्यादा बढ़ गया तो उन्होंने यह आदेश दिया कि दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा,  उसी का विवाह पहले किया जाएगा। यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर बैठ कर धरती माता की परिक्रमा करने चले गए।

गणेशजी शर्त सुन कर चौंके। अपने वाहन मूषक पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा तो बड़ा दुरूह कार्य था,  परंतु अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का प्रयोग कर उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा कर डाली। असल में गणेशजी को यह ध्यान आ गया कि माता-पिता ही संतान के लिए धरती माता होते हैं। शिव और पार्वती प्रसन्न हो गए और गणेश का विवाह विश्वरूप प्रजापति की दो बेटियों- ऋद्धि और सिद्धि से कर दिया। हम लोग जिन क्षेम और लाभ को बार-बार स्मरण करते हैं, वे दोनों गणेश जी के पुत्र हैं। इधर कार्तिकेय जी जब परिक्रमा करके लौटे तो गणेश का विवाह हुआ देख कर बहुत नाराज हुए और माता-पिता को प्रणाम कर क्रौंच पर्वत पर चले गए। शिव और पार्वती जब उस पर्वत पर आए तो कार्तिकेय जी वहां से दूर चले गए। माता पार्वती और शिव के वहीं रहने के कारण ज्योर्तिलिंग की स्थापना हो गई। 27 नवंबर को दोपहर 12 बज कर 58 मिनट पर मंगल अपनी उच्चराशि मकर में प्रवेश करेंगे और 4 जनवरी 2015 की मध्य रात तक उसमें रहेंगे। अगर आपकी जन्मकुंडली में मंगल मकर,  मेष या वृश्चिक राशि में है तो आप पर कार्तिकेय प्रसन्न हैं,  लेकिन अगर कुंडली में मंगल अपनी नीच राशि कर्क में है तो निश्चित रूप से आप पर उनका कोप है।   

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