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भ्रष्टाचार का खात्मा करने को चुनी आईएएस बनने की राह

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमफिल करने के साथ आईएएस का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली पूजा अवाना अपनी अलग पहचान बना चुकी...

भ्रष्टाचार का खात्मा करने को चुनी आईएएस बनने की राह
Tue, 16 Oct 2012 10:34 PM
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दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमफिल करने के साथ आईएएस का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली पूजा अवाना अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं। नोएडा स्थित अट्टा गांव में रहने वाली पूजा इस गांव की पहली सदस्य हैं, जिन्होंने आईएएस की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करके नोएडा का नाम रोशन किया है। वह सन् 2011 में आईएएस की प्रवेश परीक्षा के साथ नेट में भी सफल रहीं। एक ही वर्ष में दो बड़ी सफलताओं को छूने वाली पूजा ने देश की सेवा के लिए आईएएस को चुना है।

दसवीं से लेकर स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने आईएएस के लक्ष्य को भेदकर अपने गांव में रहने वाली लड़कियों के लिए एक मिसाल पेश की है। इन दिनों मसूरी में आईएएस का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली पूजा बताती हैं कि देश में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए उन्होंने इस पेशे को चुना है। इस पेशे का चयन करने का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को खत्म करना भी है। पूजा उन छात्रओं व महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं, जो प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हैं। सन 2011 में आयोजित हुई आईएएस की प्रवेश परीक्षा को 370वीं रैंकिंग के साथ उत्तीर्ण करने वाली पूजा नोएडा को विकास की राह में बढ़ते शहर के रूप में देखती हैं। उनका मानना है कि विकास की राह में बढ़ते इस शहर में महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे प्रमुख हो रहे हैं।

इंसाफ की दुनिया में ‘लौह महिला’ जैसी हैं कामिनी
बड़े-बड़े फैसलों को सुनाने वाली यह महिला न्यायाधीश न्याय के लिए समर्पित हैं। बुलंद हौसलों वाली यह निडर महिला आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। मुकदमे की सुनवाई से लेकर दोषियों को सजा सुनाने तक उन्होंने नई पहल भी की। पढ़ाई और काबिलियत की सीढ़ियां चढ़ने वाली यह महिला आज जिस मुकाम पर है, वह आमजन के लिए एक सीख भी है।

रोहिणी कोर्ट में एडिशनल जिला जज के पद पर कार्यरत 48 वर्षीय कामिनी लॉ की परवरिश दिल्ली के एक कानूनविद् परिवार में हुई है। हालांकि बुलंद हौंसले वाली कामिनी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हांसिल की थी। लेकिन उनका रुझान कानूनी प्रक्रिया की तरफ था। इसीलिए उन्होंने राजनीति शास्त्र में मास्टर ऑफ आर्ट्स (एम ए) किया। कानून में पीएचडी की और फिर दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। वर्ष 1992 में वह दिल्ली न्यायिक सेवा में चुनी गईं। वर्ष 2006 तक अपने बेहतरीन कार्यों की बदौलत उन्होंने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के पद पर पदोन्नति पाई।

हालांकि उनके जीवन का एक दूसरा पहलु भी है। अदालत में सख्त निर्णय देने वाली लॉ पशु प्रेमी भी हैं। खासतौर पर गाय और कुत्तों की दशा पर वे कई गंभीर आदेश जारी कर चुकी हैं। यहां तक की पहले वे अपने घर पर पशु पालन भी करती थीं। पवित्र कुरान का हवाला देते हुए बिना मध्यस्थ के तीन बार तलाक कहकर पत्नी से अलग होने के फैसले को गैर इस्लामिक ठहराने का ऐतिहासिक फैसला इन्हीं का था।

दिखाया, महिलाओं से बेहतर कुशल प्रबंधक कोई नहीं है
इंडपेंडेंट स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया की सदस्या व महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. कल्पना कपूर ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की सीसीई और ग्रेडिंग प्रणाली को सबसे पहले कारगर तरीके से लागू कर सफलता के नए आयाम रचे। उन्होंने  शहर के तमाम बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए किए नए-नए प्रयोगों से अपनी एक अलग पहचान बनाई।

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के दिशा-निर्देशों को कारगर तरीके से लागू करके उन्होंने कुशल प्रबंधक होने का सम्मान भी हासिल किया। उनके इन्हीं प्रयासों से प्रभावित होकर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने उन्हें कई अन्य जिम्मेदारियां भी सौंपी। अभी भी डॉ. कल्पना सीबीएसई के कई अन्य प्रोजेक्ट्स में वह अहम भूमिका निभा रही हैं। स्कूल की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को कारगर तरीके से निभाने के लिए उन्हें रोटरी क्लब ने बेस्ट शिक्षिका के अवार्ड से भी नवाजा।

फिलहाल डॉ. कल्पना सीबीएसई बोर्ड के कामों के साथ-साथ इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन की सदस्या के रूप में स्कूलों में बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए जरूरी कदम उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सामाजिक कार्यों में भी  बढ़-चढ़ कर भागीदारी करना उनके जीवन का प्रमुख हिस्सा है। उनका मानना है कि महिलाओं से अच्छा कोई कुशल प्रबंधक नहीं हो सकता। घर और बाहर दोनों जगह महिलाओं ने अपनी काबिलियत के झंडे गाड़े हैं।

अक्षरज्ञान से रोजगार तक की पाठशाला बनी महिला पायलट
एशिया की पहली महिला कॉमर्शियल पायलट इंद्राणी सिंह शिक्षा, रोजगार व महिला सशक्तिकरण के लिए मुहिम चला रही हैं। इंद्राणी बताती हैं कि जब मैं स्कूल लेट पहुंचती थी तो मैडम नाराज होकर पूछती थीं कि ऐसी कौन सी फ्लाइट पकड़ी थी जो इतनी लेट हो गई। मैडम का कहा सच हो गया और मैं पायलट बन गई। साल 1987 में इंडियन एयरलाइंस का हिस्सा बनी इंद्राणी ने 1989 में फ्रांस में प्रशिक्षण लेने के बाद एयर बस 320 में उड़ान भरी। इसी के साथ  एशिया महाद्वीप की पहली कॉमर्शियल पायलट बन गई। साल 1995 में एयर बस 300 उड़ाकर दुनिया की पहली महिला कमांडर बनी। कोलकाता में झु़ग्गियों में कई नन को काम करते हुए देख प्रेरित हुई तो जिंदगी के मायने खोजने के लिए निकल पड़ीं।

वर्ष 1996 में लिटरेसी इंडिया ट्रस्ट बनाकर पांच बच्चों को साक्षर करने की मुहिम अब 25 हजार निरक्षरों की संख्या को पार कर गई है। उनकी पहली छात्र अब इंजीनियरिंग पढ़ रही है। उन्होंने वेस्ट पेपर रिसाइकलिंग यूनिट से रोजगार भी पैदा किए। वहीं स्वरोजगार के लिए सक्षम बनाने व डिजिटल शिक्षा देने के लिए ज्ञानतंत्र-डिजिटल दोस्त योजना भी शुरू की। करीब 1300 महिलाओं को हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण दिया। साथ ही ज्ञानतंत्र के जरिए  चाइल्ड एब्यूज व एड्स के प्रति जागरूक करने का अभियान भी जारी है। वह हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल व पश्चिम बंगाल में कार्यक्रम चला रही हैं।

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