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जनगण का सच

सुपरिचित कवि कथाकार वीरेंद्र सारंग का यह उपन्यास जनगणना को विषय बनाकर एक बस्ती के खुरदरे जनजीवन को प्रस्तुत करता है। वैसे यह उपन्यास देवी प्रसाद नामक एक सरकारी कर्मी के व्यक्तिगत जीवन का मार्मिक...

जनगण का सच
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 24 Jan 2015 07:04 PM
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सुपरिचित कवि कथाकार वीरेंद्र सारंग का यह उपन्यास जनगणना को विषय बनाकर एक बस्ती के खुरदरे जनजीवन को प्रस्तुत करता है। वैसे यह उपन्यास देवी प्रसाद नामक एक सरकारी कर्मी के व्यक्तिगत जीवन का मार्मिक वृत्तांत भी है। उपन्यास यह सवाल उठाता है कि क्या किसी समाज या व्यक्ति का वजूद महज कुछ सूचनाओं और संख्याओं तक सीमित होता है या हो सकता है?  यह इसका जवाब भी देता है कि आंकड़ों की बाजीगरी किसी समाज की वास्तविक स्थिति को उजागर होने नहीं देती। जबकि विडंबना यह है कि ज्यादातर सरकारी योजनाएं आंकड़ों के आधार पर ही बनती हैं और लोगों की तकदीर तय करती हैं। बेशक हाता रहीम के लोग अभावग्रस्त हैं, लेकिन उपन्यास हमें उनके अदम्य जीवन संघर्ष की झांकी भी दिखलाता है। देवी के रूप में उपन्यासकार ने एक ऐसा चरित्र पेश किया है जो अपनी निष्ठा से सामाजिक उत्कर्ष का संदेश देता है।
हाता रहीम, वीरेंद्र सारंग, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य:  400 रुपये

महानगर में माफिया

अपराध और आतंकवाद से जुड़ी खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में चर्चित नाम एस. हुसैन जैदी ने खासकर मुंबई के माफियाओं पर कई किताबें लिखी हैं। प्रस्तुत पुस्तक इसी सिलसिले की नवीनतम कड़ी है। यह किताब इनकी पूर्व प्रकाशित पुस्तक ‘डोंगरी टु दुबई: सिक्स डिकेड्स ऑफ मुंबई माफिया’  की अगली कड़ी है। इस किताब में दाऊद के बाद के सहयोगियों या गिरोहबाजों की कहानी बयां की गई है। यह मुंबई की शहरतली में पैदा हुए उन लड़कों की कहानी कहता है, जो अपराध की दुनिया की तरफ बढ़ गए। छोटा राजन, अरुण गवली, अमर नाइक, अश्विन नाइक, सुरेश मंचेकर ऐसे ही लड़के थे। इसमें पुलिस के साथ उनकी भयानक मुठभेड़ों की दास्तान भी है। पुस्तक बतलाती है कि किसी भी शहर का विकास तब तक मुमकिन नहीं है, जब तक यह विकास उसके निवासियों के विकास के नतीजे के तौर पर नहीं होता।
बायकला टु बैंकॉक, एस हुसैन जैदी,  अनुवाद: मदन सोनी, मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड, भोपाल, मूल्य: 295 रुपये


जैसा यह जीवन है

युवा कवि प्रभात का यह पहला कविता संग्रह है,  जो साहित्य अकादेमी की नवोदय योजना के तहत प्रकाशित किया गया है। उसकी भूमिका में वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने लिखा है कि प्रभात ने जीवन के उन तत्वों से कविता बनाई है, जो प्रत्यक्षत: स्वाभाविक रूप से काव्योचित नहीं लगते। वस्तुत: प्रभात की कविता आम भारतीय खासकर ग्रामीण जनजीवन के उन प्रसंगों, वस्तुओं को अपना विषय बनाती है, जो पीछे छूटते जा रहे हैं और उनके छूटने से जीवन में एक रिक्ति बनती जा रही है। ये समवेत रूप से आदमी के असहाय और अकेले पड़ते जाने का गीत हैं। इनमें सीधे-सीधे कोई राजनीतिक वक्तव्य नहीं दिखता,  परन्तु इन कविताओं का अंतर इससे अचेत नहीं है कि यह बदहाली किनकी देन है। इस रूप में यह बेहद करीने से प्रतिरोध भी करती हैं।
अपनों में नहीं रह पाने का गीत, प्रभात, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, मूल्य: 100 रुपये

सुनो भई साधो


‘यथार्थ से संवाद’ समसामयिक घटनाओं और मुद्दों पर लिखी गई टिप्पणियों का संकलन है। इसके लेखक देश के सुपरिचित उद्योगपति हैं,  जो एक अखबार भी निकालते हैं। इस पुस्तक में उनके चिंतक व्यक्तित्व का दर्शन होता है। बेशक इस किताब को कोई व्यक्तिगत डायरी भी मान सकता है,  लेकिन इसमें सुनो भई साधो का भाव ही मुखर होता प्रतीत होता है। गौड़ ईमानदारी से अपनी राय जाहिर करते हैं और किसी दबाव को स्वीकार नहीं करते। इनकी टिप्पणियों में गांधी से लेकर अन्ना हजारे और रामदेव तक, सब पर बेबाकी से विचार किया गया है।
यथार्थ से संवाद, बी.एल. गौड़, किताबघर प्रकाशन,  नई दिल्ली, मूल्य:  400 रुपये

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