पत्रकार यशपाल
यशपाल मूलत: कथाकार थे, लेकिन वक्त की जरूरत के मुताबिक उन्होंने कथा-साहित्य से इतर भी काफी कुछ लिखा। नवंबर 1938 में उन्होंने ‘विप्लव’ पत्रिका शुरू की, जो अप्रैल 1949 तक छपती...
यशपाल मूलत: कथाकार थे, लेकिन वक्त की जरूरत के मुताबिक उन्होंने कथा-साहित्य से इतर भी काफी कुछ लिखा। नवंबर 1938 में उन्होंने ‘विप्लव’ पत्रिका शुरू की, जो अप्रैल 1949 तक छपती रही। स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम दशक में शुरू हुई इस पत्रिका के लिए सरकार का कोपभाजन बनना स्वाभाविक था, क्योंकि यशपाल ने इसको एक ओर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ जारी आंदोलन का सहभागी बनाया, वहीं दूसरी ओर इसको स्वतंत्रता आंदोलन के वर्चस्वशाले नेतृत्व का सचेत प्रतिपक्षी भी। इसकी नीति स्पष्ट थी- बिना किसी पक्षपात के राष्ट्रहित के उद्देश्य से पेश किए गए सिद्धांतों और कार्यक्रमों की समीक्षा और विवेचना। वस्तुत: यशपाल ने विप्लव को अपने मार्क्सवादी विचारों के अनुकूल परिवर्तनकामी राजनीतिक मूल्यों का एक सशक्त बौद्धिक मंच बनाया। यह किताब विप्लव में यशपाल के लिखे अग्रलेखों का संचयन है।
यशपाल का ‘विप्लव’, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, मूल्य: 600 रु.
सिर्फ नाटक नहीं
व्रात्य बसु ने एक गंभीर नाटककार, निर्देशक और अभिनेता के रूप में सामान्य दर्शकों से लेकर विशिष्ट बुद्धिजीवियों तक के मन- मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। उन्हें चर्चित ग्रुप थियेटर व्रात्यजन के कर्ता-धर्ता के बतौर भी जाना जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में उनके चार नाटक संकलित हैं, विंकल-टुइंकल, मृत्यु ईश्वर यौनता, चतुष्कोण और बबली। बसु बेहद सचेत दृष्टि से अपने इर्द-गिर्द की हलचलों और जड़ताओं की पड़ताल करते हैं। यही वजह है कि उनके नाटकों को ‘प्रतिवाद का स्वर’ कहकर व्याख्यायित किया जाता है। विंकल-टुइंकल स्वतंत्रता के बाद के दौर के विशेषकर राजनीतिक-सामाजिक आलोड़न को आधार बनाकर यह सवाल उठाता है कि समय किसका है, समय क्या है और यह तय कौन करेगा। इसी तरह अन्य नाटकों में भी राजनीतिक टिप्पणियां हैं।
चतुष्कोण एवं अन्य नाटक, व्रात्य बसु, अनुवाद: डॉ. सोमा बंद्योपाध्याय, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य: 450रु.
सुदास का किस्सा
मिथकों और ऐतिहासिक विषयों को आधार बनाकर अंग्रेजी में लोकलुभावन वृत्तांतों की रचना करने वाले अशोक के. बैंकर के ‘टेन किंग्स’ नामक उपन्यास का अनुवाद है 'दशराजन'। संस्कृत साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ के रूप में समादृत ऋग्वेद में दस राजाओं के युद्ध का वर्णन मिलता है। तृत्सु भरत कबीले के राजा सुदास के विरुद्ध दस राजा एकजुट होकर संघर्ष करते हैं, लेकिन सुदास के पराक्रम के आगे परास्त होते हैं। यह लड़ाई जिस भूभाग में लड़ी गई थी उसे अनेक विद्वानों ने वर्तमान पंजाब में चिह्न्ति किया है। ऋग्वेद इस युद्ध के बारे में अधिक जानकारी नहीं देता, मगर जो कुछ बतलाता है उससे हजारों वर्ष पूर्व की किसी विशिष्ट परिघटना का संकेत जरूर मिलता है। परवर्ती दौर में रचे गए महाभारत से परिचित होने के बाद इस युद्ध के बारे में उत्सुकता और बढ़ जाती है।
दशराजन, अशोक के. बैंकर, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल, मूल्य: 195 रु.
मंटो एक बार फिर
उर्दू के मशहूर कथाकार सआदत हसन मंटो ने सामाजिक गजालत की जैसी निर्मम पड़ताल अपनी कहानियों में की है, वह कम ही मिलती है। उनकी अनेक कहानियां समाज के सीमांतों पर पड़े लोगों के असाधारण जीवन संघर्ष का बयान करती हैं। उनके अंदाज में बेलौसपन है, जिस वजह से कई बार उन पर अश्लीलता का बेजा आरोप भी लगा। दरअसल वह पाठक को मनोवैज्ञानिक रूप से बेचैन कर देते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उनकी ज्यादातर कहानियां उस दौर की सच्चाइयों को सामने लाती हैं, जब भारतीय उपमहाद्वीप विभाजन के रूप में इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी से गुजर रहा था।
मंटो की कहानियां, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली-20, मूल्य: 150 रु.