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त्रासद प्रेम गाथा

दालिया रवीन्द्रनाथ ठाकुर की स्मरणीय कहानी है। हृषीकेश सुलभ का यह नाटक उसी पर आधारित है। इतिहास में युद्ध और सत्ता संघर्ष जितना पुराना है, प्रेम, विश्वास और समर्पण भी उतना ही पुराना है। ठाकुर ने इस...

त्रासद प्रेम गाथा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 13 Sep 2014 07:28 PM
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दालिया रवीन्द्रनाथ ठाकुर की स्मरणीय कहानी है। हृषीकेश सुलभ का यह नाटक उसी पर आधारित है। इतिहास में युद्ध और सत्ता संघर्ष जितना पुराना है, प्रेम, विश्वास और समर्पण भी उतना ही पुराना है। ठाकुर ने इस अनुभूत सत्य के उद्घाटन के लिए मुगल सम्राट औरंगजेब के भाई शाहशुजा की अभिशप्त जीवन-कथा को आधार बनाया है। औरंगजेब से हार कर शाहशुजा अपनी तीन बेटियों के साथ अराकान चला जाता है। वहां का राजा उसकी बेटियों के साथ अपने बेटों का विवाह करना चाहता है। शाहशुजा यह प्रस्ताव ठुकरा देता है, जिसके बाद छल और घात-प्रतिघात का एक नया सिलसिला शुरू होता है। अंतत: कथा अप्रत्याशित मोड़ लेती है, जब शुजा की तीसरी बेटी अमीना दालिया नामक एक युवक के प्रति प्रीति का अनुभव करती है। बाद में पता चलता है दालिया अराकान राजकुल का राजकुमार है।

दालिया, हृषीकेश सुलभ, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली-2, मूल्य: 150 रु.

यादों का लेखा-जोखा

जिन साहित्यकारों को हम अपनी भाषा और साहित्य का गौरव मानते हैं, उनकी निजी जिंदगी के बारे में जानने की उत्सुकता प्राय: होती है। इस संदर्भ में संस्मरणों का महत्व असंदिग्ध है, चाहे वे खुद उन साहित्यकारों द्वारा लिखे गए हों या उनके संपर्क में आने वाले लोगों द्वारा। उद्भांत की यह किताब दूसरी श्रेणी की है। इसमें उन्होंने अमृतलाल नागर, हरिवंशराय बच्चन, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, यशपाल, शिवमंगल सिंह सुमन, भगवती प्रसाद वाजपेयी, मुंशी प्रताप नारायण श्रीवास्तव, अमृत राय, हरिनारायण व्यास, वीरेंद्र मिश्र, रामानंद दोषी, शिवकुमार मिश्र आदि के संस्मरण लिखे हैं। एक पूरा अध्याय अपने अध्यापकों पर केंद्रित किया है, जिसमें डॉक्टर सतीशचंद्र चित्रे जैसे साहित्यानुरागी और फिराक गोरखपुरी जैसे साहित्यकार के प्रसंग भी हैं।
स्मृतियों के मील-पत्थर, उद्भ्रांत, अनुराग प्रकाशन, वाराणसी, मूल्य: 130 रु.


देशप्रेम की बात

यह उपन्यास हमारे समय के ज्वलंत सामाजिक-राजनीतिक मसलों पर एक गंभीर टिप्पणी है। यह उपन्यास इस अंतर्दृष्टि से लिखा गया है कि देश धर्म और मजहब से, धन-दौलत से, पद-पदवी से और आसन-सिंहासन से बड़ा होता है। देश प्रेम बाहर से जितना निर्मल और कल्याणकारी लगता है, वास्तव में उतना होता नहीं है, क्योंकि यह हर बार अपने औचित्य के लिए किसी शत्रु को चिन्हित करता है। नसीम साकेती ने इस उपन्यास में जिस राष्ट्रीय भावना को आधार बनाया है, उसके मूल में है देश के जन सामान्य की दुरावस्था से उपजा क्षोभ। उपन्यास का नैरेटर विभिन्न प्रसंगों के जरिए देश की घोषित आजादी की नाकामी या अपर्याप्तता को उजागर करते हैं। कहना न होगा उनके देश में उदात्तता और गंभीरता है।
बोल कि लब आजाद हैं, नसीम साकेती, शिल्पायन पब्लिशर्स, दिल्ली-32, मूल्य: 175 रु.

वन का रक्षक

लोककथाओं के बाघ मामू से लेकर देवी दुर्गा के वाहन तक न जाने कितने-कितने रूपों में बाघ हमारे बीच मौजूद रहा है। वैज्ञानिक रूप से पर्यावरण के किसी भी घटक का विनाश अंतत: पृथ्वी पर संपूर्ण जीव-जगत के अस्तित्व के विनाश की कड़ी है। बाघ पारिस्थितिक तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। वास्तव में वह वन का रक्षक है। किताब भारतीय बाघ के जीवन और पर्यवास के बारे में ऐसी अनेक सारगर्भित जानकारियां उपलब्ध कराती है।
भारतीय बाघ, नरेशचंद्र मधवाल, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली-3, मूल्य :105 रु.

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