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सात जिलों में कभी नहीं जीतीं महिलाएं

महिलाओं को बराबरी का हक देने की बातें सियासी पार्टियां खूब उठाती हैं। पर उत्तराखंड की राजनीति में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे हैं। प्रदेश के सात जिलों में आज तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई...

सात जिलों में कभी नहीं जीतीं महिलाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 31 Jan 2017 05:54 PM
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महिलाओं को बराबरी का हक देने की बातें सियासी पार्टियां खूब उठाती हैं। पर उत्तराखंड की राजनीति में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे हैं। प्रदेश के सात जिलों में आज तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई है। प्रदेश के गठन के बाद से अब तक सामान्य और उप चुनावों में नौ महिलाएं ही जीतीं हैं। प्रदेश विधानसभा में उनकी भागीदारी 10 फीसदी भी नहीं है।

साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। प्रदेश में तीन बार विधानसभा के सामान्य चुनाव हुए और 10 सीटों पर उप चुनाव कराए गए। 2002 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 72 महिला प्रत्याशियों ने दावेदारी की, लेकिन चार महिलाएं ही चुनाव जीतीं। साल 2007 के विधानसभा चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या घटकर 56 रह गई। इस बार  भी चार महिला विधायक ही जीतीं। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में 63 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा, पर केवल पांच ही जीत सकीं। 2014 में सोमेश्वर और 2015 में भगवानपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भी महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। अब तक हुए चुनावों में नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, हरिद्वार, चंपावत और अल्मोड़ा जिलों से महिला प्रत्याशी जीती हैं। देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, चमोली, बागेश्वर, उधमसिंह नगर और पिथौरागढ़ जिलों को अब तक महिला विधायक का इंतजार है।

पौड़ी और रुद्रप्रयाग जिले से ही हर बार सामान्य चुनाव में महिला विधायक चुनी गई हैं। यमकेश्वर व केदारनाथ ही वे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां की जनता ने हर बार महिलाओं को अपना विधायक चुना। हल्द्वानी ने भी दो बार इंदिरा हृदयेश को अपना विधायक चुना।

अमृता तीन बार जीतीं  
अमृता रावत : दो बार बीरोखाल और एक बार रामनगर सीट से जीती हैं। 
विजया बड़थ्वाल: तीनों बार यमकेश्वर सीट से जीती हैं।
इंदिरा हृदयेश और आशा नौटियाल दो बार विधायक   रही  हैं।
बीना महराना, सरिता आर्य, रेखा आर्य, शैलारानी रावत और ममता राकेश एक-एक बार विधानसभा चुनाव जीती हैं।

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