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नौजवानों को चाहिए तेज फैसले

युवा पीढ़ी में देश की राजनीतिक धारा को बदलने की कूवत है, पर वह राजनीति में कितनी रुचि रखती है? यह पीढ़ी उपभोक्तावादी संस्कृति का उदाहरण है, पर बचत के बारे में क्या सोचती है? इसे कार्य-क्षेत्र की...

नौजवानों को चाहिए तेज फैसले
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 16 Sep 2015 10:32 PM
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युवा पीढ़ी में देश की राजनीतिक धारा को बदलने की कूवत है, पर वह राजनीति में कितनी रुचि रखती है? यह पीढ़ी उपभोक्तावादी संस्कृति का उदाहरण है, पर बचत के बारे में क्या सोचती है? इसे कार्य-क्षेत्र की चुनौतियां खूब भाती हैं, किंतु क्या ये हंसी-खुशी के पल ढूंढ पाती है? पेश है एचटी-मार्स पोल यूथ सर्वे-2015

अगर आज चुनाव हो तो देश की करीब आधी युवा आबादी भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को फिर से वोट देगी। पांचवें एचटी-मार्स पोल यूथ सर्वे ने अपने अध्ययन में यह पाया है। इस सर्वे में 18 से 25 साल के 5,200 से अधिक नौजवानों से सवाल पूछे गए। 15 बडे़ शहरों में यह सर्वे किया गया। यह बताता है कि राजग सरकार से मोहभंग के उभरते संकेतों और उम्मीद से कम आर्थिक विकास के बावजूद भाजपा समर्थक बहुत फिक्रमंद नहीं हैं।

इस सर्वे में शामिल 48 फीसदी युवा आज भी भाजपा और उसके सहयोगी दलों के साथ खडे़ हैं। पुणे में 82.5 फीसदी, जयपुर में 78.3 फीसदी और अहमदाबाद में 71.3 फीसदी युवा भाजपा के साथ हैं। ये तीनों भाजपा शासित राज्यों के शहर हैं। महानगरों में मुंबई में 66 फीसदी युवाओं और दिल्ली में 41.4 फीसदी युवाओं ने कहा कि वे फिर से राजग को वोट देंगे। 2014 चुनाव में जिन नौजवानों ने भाजपा और उसके सहयोगी दलों को वोट दिया था, उनमें से 84.8 फीसदी का कहना है कि अगर आज चुनाव होता है तो वे सत्तारूढ़ गठबंधन को ही वोट देंगे। वहीं कांग्रेस व उनके सहयोगियों (यूपीए) को जिन लोगों ने 2014 में वोट दिया था, उनमें से सिर्फ 64.7 आज यूपीए को वोट देने को तैयार हैं। इस सर्वे में यह भी दिखता है कि अगर आज चुनाव हों तो करीब 94 प्रतिशत नौजवान मतदान में हिस्सा तो लेंगे, पर 80.4 प्रतिशत नौजवान राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते। समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन मानते हैं कि सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं, क्योंकि ये देश के महत्वाकांक्षी नौजवानों की इच्छाओं को व्यक्त करते हैं। उनका कहना है कि युवाओं की राजनीति उनके करियर से संचालित होती है। उन्होंने पिछले साल बडे़ राजनीतिक बदलाव (कांग्रेस से भाजपा) के लिए वोट दिया था और वे अभी मौजूदा प्रयासों से सहमत हैं। युवाओं के लिए राजनीति में कुछ भी बड़ा मसला नहीं है। शिव विश्वनाथन आगे कहते हैं कि युवा राजनीति में तेजी चाहते हैं, क्योंकि वे अतीत की राजनीतिक व्यवस्था से छुटकारा पाना चाहते हैं, जो उनके मुताबिक धीमी, भ्रष्ट और दूषित थी। सर्वे में यह भी पाया गया कि ज्यादातर युवा सोचते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकारी कामकाजों को प्रभावित नहीं करता। ऐसा सोचने वाले नौजवान 58.2 प्रतिशत हैं। इसी तरह, 68.3 प्रतिशत युवा सोचते हैं कि कामकाज पर असर डालने वाली ऐसी शक्ति राजग के अंदर कुछ लोगों के पास नहीं है।

शिव विश्वनाथन इन नतीजों को लेकर भी आश्चर्य नहीं जताते। उनका कहना है कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अर्थव्यवस्था में भले ही दिलचस्पी न हो, लेकिन  उदार शासन के संस्कृति जैसे क्षेत्रों को वह प्रभावित कर सकता है। लेकिन इसकी परवाह कौन करता है?' सामाजिक टिप्पणीकार अंतरा देव सेन कहती हैं कि राजनीति के प्रति युवाओं की उदासीनता उन लोगों के लिए चिंतन का विषय है, जो महत्वपूर्ण मसलों पर जागरूकता फैलाते हैं। इसमें मीडिया भी शामिल है।

अंतरा बताती हैं, 'यह चिंता की बात है, क्योंकि मतदाताओं में नौजवान भी हैं, जो राजनीति को प्रभावित करते हैं। राजनीति में दिलचस्पी के बगैर उनके पास राजनीति की धारा बदलने का अधिकार है।'
अंतरा देव सेन के मुताबिक, युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मीडिया व समाज के दूसरे हिस्सों को अधिक काम करने की जरूरत है। जिस दुनिया में वे रह रहे हैं, उसके बारे में सही जानकारी मिलनी चाहिए।

व्यावहारिक जरूरत या बेकार का दबाव
भारतीय नौजवानों की जिंदगी उपभोक्तावादी है। 20 साल की उम्र में उनका मासिक खर्च 5,000 से 10,000 रुपये के बीच मुमकिन है। वे अपने लिए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट चुन और खरीद सकते हैं। उच्च मध्यवर्गीय परिवार के लड़के या लड़कियां अपनी निजी कार होने के तर्क अपने माता-पिता को दे सकते हैं। और 30 की उम्र तक यह संभव है कि वे अपनी कार चला रहे हों।

तो क्या इसका मतलब यह माना जाए कि भारतीय युवा एक ऐसा उपभोक्ता है, जो खर्च करेगा ही? इसका जवाब मिला-जुला है। स्पष्ट राय इसलिए नहीं मिलती, क्योंकि भारतीय युवा कमोबेश दो कारणों से खरीदारी करते हैं। एक है, उनकी व्यावहारिक जरूरत और दूसरी है, हमउम्रों का दबाव। उनके अंदर खर्च और बचत, दोनों क्षमताएं हैं। जैसे, जयपुर में पढ़ने वाले दिल्ली के आयुष मुखर्जी का कहना है कि भले ही उनके पास दो मोबाइल फोन और एक गेमिंग कंसोल है, लेकिन किंडल खरीदने के लिए उन्होंने अपने मासिक खर्च से पैसे बचाए हैं।
पांचवें एचटी-मार्स यूथ सर्वे के अनुसार, 58.6 फीसदी युवा कहते हैं कि वे ई-कॉमर्स खरीदारी के लिए इंतजार कर सकते हैं, बजाय आवेग में आकर बाजार से कुछ भी खरीद लें, जबकि लड़कियों में यह आंकड़ा 50.2 फीसदी है। एस भास्कर नाम की महिला बताती हैं कि आज के युवाओं पर हमउम्रों का दबाव भी काफी ज्यादा है। उधर नौजवानों में ब्रांड को लेकर भी काफी लगाव है।

महत्वाकांक्षा की दौड़ कहां तक
आज की युवा पीढ़ी इस बात पर एकमत है कि उसे तेजी से तरक्की चाहिए। वह कामकाजी क्षेत्रों के तरीकों से अड़चनें महसूस करती है। तो क्या वह हिम्मत हार चुकी है या फिर उसने किसी तरह का समझौता किया है? नहीं, ऐसा नहीं है। नौजवान जानते हैं कि मुश्किलों से पार पाने के लिए अथक प्रयास करने होते हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि वह जिंदगी क्या, जिसमें चुनौतियां न हों।

चित्रा सिंह यहां उदाहरण हैं। इस इंजीनियर ने एक छोटी-सी फर्म के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छोड़ दी। वह कहती हैं, 'ऐसा इसलिए कि इसमें ज्यादा चुनौतियां हैं। इसने मुझे कम्फर्ट जोन से निकाला, यहां मेरी क्षमताओं की परीक्षा हुई और ज्यादा संतोष मिला।' एचटी मार्स यूथ सर्वे उनके फैसले को सही ठहराता है। सर्वे के अनुसार, 56.3 फीसदी का कहना है कि यह पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से अधिक महत्वाकांक्षी है, लेकिन सिर्फ 38.9 फीसदी का मानना है कि अगर आप में कौशल है तो आगे बढ़ने के ज्यादा अवसर हैं। 61.6 फीसदी मानते हैं कि हम चीजों को अलग तरीके या बेहतर तरीके से नहीं कर पा रहे हैं।

लेकिन युवाओं को अपनी क्षमताओं पर भरोसा है और वे अपने तथा देश के भविष्य को लेकर सकारात्मक नजरिया रखते हैं। 25 वर्षीय इंजीनियर ऋषभ कश्यप का कहना है कि 'हमारे पास पुराने लोगों की तुलना में अधिक अवसर हैं। हां, प्रतिस्पर्द्धा ज्यादा है, अलग सोचना पड़ता है, पर हम सही दिशा में हैं।'


72.3%
फीसदी युवाओं ने कहा कि वे मोबाइल के जरिए ऑनलाइन खरीदारी करते हैं। इसमें लड़के (80.4 प्रतिशत) आगे दिखे, जबकि लड़कियों (64.3 फीसदी) की दिलचस्पी कम नजर आई।

80.4%
प्रतिशत युवाओं ने कहा कि राजनीति में उनकी कोई रुचि नहीं है।  इस सर्वे में 85.6 फीसदी युवतियों और 75.3 प्रतिशत युवकों ने राजनीति से खुद को दूर रखने की  बात कही।
Hindustan Times

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