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एक-दो महीने और रहेगा संकट

बाजार के जानकार प्याज के मौजूदा दामों में दस फीसदी और वृद्धि की आशंका जता रहे हैं, वहीं प्याज की खेती से जुड़े संस्थानों का कहना है कि यह संकट अक्तूबर तक बना रह सकता है। डायरेक्टरेट ऑफ अनियन एंड...

एक-दो महीने और रहेगा संकट
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 26 Aug 2015 10:40 PM
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बाजार के जानकार प्याज के मौजूदा दामों में दस फीसदी और वृद्धि की आशंका जता रहे हैं, वहीं प्याज की खेती से जुड़े संस्थानों का कहना है कि यह संकट अक्तूबर तक बना रह सकता है। डायरेक्टरेट ऑफ अनियन एंड गार्लिक रिसर्च के निदेशक डॉ. जय गोपाल से प्रवीण प्रभाकर की बातचीत।

प्याज के भाव अचानक ऊपर क्यों गए?
अचानक नहीं, इसकी आशंका पहले से थी। एक तो मांग और आपूर्ति में अंतर है। इसका बाजार भी असंगठित तरीके से व्यवहार कर रहा है। समाज में मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ी है, इससे बिचौलियों की बन आई है। मौसम ने भी खलनायक की भूमिका निभाई है। रबी प्याज को खेत से निकालने के समय में तेज बारिश हुई थी, जबकि अब खरीफ प्याज को रोपने के बाद से बारिश कम हुई है।
पर सरकार दाम नियंत्रित करने में नाकाम क्यों रही?
विडंबना है। लेकिन सरकार भी क्या करे? सारा मामला उत्पादन से जुड़ा है और जिस देश में खेती पूरी तरह से बरसात पर निर्भर हो, वहां फैसला लेने में थोड़ी सी भी देरी भारी पड़ती है। प्याज की पैदावार कम नहीं हुई है, लेकिन जब अप्रैल-मई में रबी प्याज को निकालने का समय आया, तब महाराष्ट्र में भारी बारिश हो रही थी।

महाराष्ट्र प्याज उत्पादन में नंबर एक राज्य है। ऐसे में काफी प्याज खराब हो गया। भीगने से भंडारण भी मुमकिन नहीं था। गुणवत्ता भी अच्छी नहीं रही। इसलिए किसान इसे भंडारण की बजाय औने-पौने दामों में बेचने लगे। तब कीमत धड़ाम से गिरी, भंडारण भी कम हुआ, गुणवत्ता ठीक न होने के कारण वह बाहर भी नहीं गई। अब प्याज कम है तो दाम उफान पर हैं।

मौसम विभाग का अनुमान था कि इस बार औसत से नौ प्रतिशत कम बारिश होगी। क्या इसका कोई प्रभाव पड़ा?
अभी इसका प्रभाव पड़ना बाकी है। खरीफ प्याज की रोपाई के समय बारिश कम हुई है। इससे पैदावार पर असर पड़ने वाला ही है। अगर पछैती खरीफ प्याज की रोपाई के समय भी बारिश कम हुई तो अक्तूबर के बाद भी इसके दाम अधिक रह सकते हैं।
पिछले पांच-छह वर्षों से प्याज के दाम साल में एक बार 60-70 रुपये प्रति किलो चले ही जाते हैं। क्या भंडारण भी एक कारण है?
हाल-फिलहाल तक भंडारण भी समस्या थी। एक तो भंडारण की व्यवस्था ठीक नहीं थी, ऊपर से सब कुछ राज्य सरकारों के भरोसे था। लेकिन अब हमने भंडारण की एक नई तकनीक विकसित की है, जिसमें पुरानी गलतियां नहीं हैं। जैसे किनारे और नीचे से वेंटिलेशन की व्यवस्था की गई है। दो परतों के बीच भी पर्याप्त जगह रखी गई है। किसान इसे सरकारी रियायतों पर बनवा रहे हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक में यह सब हो रहा है। उम्मीद है, और राज्य भी अपनाएंगे।

मूल्य-नियंत्रण के और क्या तरीके हो सकते हैं?
पैदावार पर जोर सबसे कारगर उपाय है। रकबा बढ़ने वाला नहीं है, उतने में ही पैदावार बढ़ानी है। विपरीत मौसम में होने वाली प्याज की कुछ किस्में हमारे संस्थान ने तैयार की हैं। रबी प्याज मुख्य फसल है, लेकिन अब खरीफ और पछैती खरीफ प्याजों पर भी हमने जोर दिया है। अगर देश के किसी-न-किसी हिस्से में साल भर प्याज होता रहे तो ऐसा संकट नहीं आएगा।

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