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गुरु है जीव व शिव के बीच की कड़ी

आनन्दसूत्रम में कहा गया है कि 'ब्रह्मैव गुरुरेक: नापर:।' ब्रह्म का रहस्य, उनके भूमा मन का रहस्य मात्र उनको ही ज्ञात है। और जब तक वे स्वयं किसी भौतिक माध्यम से अपने को अभिव्यक्त न करें, तब तक उनके...

गुरु है जीव व शिव के बीच की कड़ी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 01 Aug 2015 05:47 PM
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आनन्दसूत्रम में कहा गया है कि 'ब्रह्मैव गुरुरेक: नापर:।' ब्रह्म का रहस्य, उनके भूमा मन का रहस्य मात्र उनको ही ज्ञात है। और जब तक वे स्वयं किसी भौतिक माध्यम से अपने को अभिव्यक्त न करें, तब तक उनके रहस्य दूसरों को कैसे ज्ञात होंगे! इसीलिए कहा गया है कि 'ब्रह्मैव गुरुरेक: नापर:।' अर्थात ब्रह्म स्वयं गुरु हैं। दूसरा कोई अन्य गुरु नहीं हो सकता। उनका रहस्य उनको ही ज्ञात है। वे ही अपने को एक संरचना, एक रूप के माध्यम से अभिव्यक्त  करते हैं।
गुरु ही जीव और शिव के बीच की कड़ी है। यह कड़ी शिव का ही अंग है अर्थात् शिव ही गुरु हैं। यह कड़ी वास्तव में तात्विक दृष्टि से परमपुरुष है, तारक ब्रह्म है। वही सत्ता है, जिसका अनुगमन करना चाहिए। सभी अणु सत्ताएं उसी तात्विक सत्ता का अंश हैं। उसी परमसत्ता का अंग हैं यानी अंश हैं, किन्तु अज्ञान के कारण वे यह नहीं देख पातीं कि कौन क्या है? इसके लिए अध्यात्म का अंजन (काजल) चाहिए।

जब यह अध्यात्म ज्ञान रूपी अंजन आंखों में लग जाता है तो आंखें खुल जाती हैं। तब साधक कह उठता है- मेरी सभी अभिव्यक्तियां, मेरी सम्पूर्ण कर्मनिपुणता- जो मेरी दसों इन्द्रियों द्वारा अभिप्रकाशित होती है- एक बिन्दु में समाहित हो गई है और मैं अपनी पूरी शक्ति-सामर्थ्य के साथ तुम्हारे चरणों में समर्पित हूं। अर्थात् गुरु ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर के समान है, जो सृष्टि के निर्माणकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। गुरु यानी परम ब्रह्म की वह अभिव्यक्ति विशेष, जो तुम्हारे सभी आध्यात्मिक अंधकार को नष्ट कर देती है, वह परमब्रह्म ही है। अर्थात् परमब्रह्म ही गुरु रूप में तुम्हारे अध्यात्म क्षेत्र में अज्ञान के घने बादलों को छांट देने के लिए, तुम्हें तुम्हारी गहन निद्रा से जगाने के लिए स्वयं को प्रदर्शित कर देते हैं। 'तस्मै श्रीगुरवै नम:'- मैं इस गुरु को प्रणाम निवेदित करता हूं। 
प्रस्तुति: दिव्यचेतनानन्द अवधूत

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