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श्री दुर्गा के चौंसठ शक्ति तत्व

तंत्र-शास्त्र कहता है मातृशक्ति ही ब्रह्मांड की जननी है। वही देवी शक्ति या परा शक्ति के नाम से जानी जाती है। श्री दुर्गा विभिन्न स्वरूपों में संकटों की निवारक हैं। स्वयं हमारे अंदर भी कईर् प्रकार की...

श्री दुर्गा के चौंसठ शक्ति तत्व
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 26 Sep 2016 11:26 PM
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तंत्र-शास्त्र कहता है मातृशक्ति ही ब्रह्मांड की जननी है। वही देवी शक्ति या परा शक्ति के नाम से जानी जाती है। श्री दुर्गा विभिन्न स्वरूपों में संकटों की निवारक हैं। स्वयं हमारे अंदर भी कईर् प्रकार की शक्तियां हैं, जैसे- ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति, मन शक्ति, क्रिया शक्ति आदि। वेद में इसे चिन्त शक्ति कहा गया है, जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है। यह शक्ति सभी में होती है, इसलिए शक्ति की उपासना करो। शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा (पहली तिथि) को नित्य कार्य से निवृत्त होकर लाल रंग की धोती धारण कर लाल रंग के आसन पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठें और कलश स्थापित करें। फिर अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित कर श्री दुर्गा मूर्ति का मंत्र षोडशोपचार से विधिवत पूजन करें। फिर कुमकुम से रंगा अक्षत और एक फूलदार लौंग का जोड़ा चौंसठ ता्त्विवक मंत्र के उच्चारण के साथ श्री दुर्गा विग्रह पर नवमी तक प्रतिदिन अर्पित करें।

चौंसठ ता्त्विवक शक्ति मंत्र- ॐ पिं पिंगलाक्ष्यै नम:। ॐ विं विडालाक्ष्यै नम:। ॐ सं समृद्धयै नम:। ॐ वृं वृद्यै नम:। ॐ श्रं श्रद्धायै नम:। ॐ स्वं स्वाहायै नम:। ॐ स्वं स्वधायै नम:। ॐ मं मातृकायै नम:। ॐ वं वन्सुधरायै नम:। ॐ त्रिं त्रिलोक्रत्रायै नम:। ॐ सं सावित्र्यै नम:। ॐ गं गायत्र्यै नम:। ॐ त्रिं त्रिद्शेष्यै नम:। ॐ सुं सुरूपायै नम:। ॐ वं बहुरूपायै नम:। ॐ सं स्कन्दायै नम:। ॐ अं अच्युत प्रियायै नम:। ॐ विं विमलायै नम:। ॐ अं अमलायै नम:। ॐ अं अरुणायै नम:। ॐ पं प्रक्रत्यै नम:। ॐ विं विक्रत्यै नम:। ॐ सं सृत्यै नम:। ॐ स्थिं स्थित्यै नम:। ॐ सं स्नचायै नम:। ॐ मं मात्र्यै नम:। ॐ सत्यै नम:। ॐ हं हंस्यै नम:। ॐ मं मर्दिन्यै नम:। ॐ रं रन्जिकायै नम:। ॐ पं परायै नम:। ॐ दं देवमात्र्यै नम:। ॐ भं भगवत्यै नम:। ॐ दम देवत्यै नम:। ॐ कं कमलासनायै नम:। ॐ त्रिं त्रिमुख्यै नम:। ॐ सं सप्तमुख्यै नम:। ॐ सुं सुरयै नम:। ॐ अं असुर मर्दिन्यै नम:। ॐ लं लम्बोष्ठ्यै नम:। ॐ ऊं ऊर्ध्वकेशिन्यै नम:। ॐ वं बहुशिखायै नम:। ॐ  वृं वृकोदरायै नम:। ॐ रं रथरेखायै नम:। ॐ शं शशिरेखायै नम:। ॐ अं अपरायै नम:। ॐ गं गगनवेगायै नम:। पं पवनवेगायै नम:। ॐ भूं भुवनमलायै नम:। ॐ मं मदनातुरायै नम:। ॐ अं अनंगायै नम:। ॐ अं अनंगमदनायै नम:। ॐ अनंमेगखलायै नम:। ॐ अं अनंकुसुयायै नम:। ॐ विं विश्वरूपायै नम:। ॐ अं असुरायै नम:। ॐ अं अपंगसिद्धयै नम:। ॐ सं सत्यवादिन्यै नम:। ॐ वं वज्ररूपायै नम:। ॐ शं शुचिवृन्तायै नम:। ॐ वं वरदायै नम:। ॐ वं वागीश्वयै नम:।

इसके बाद रुद्राक्ष माला से इस मंत्र की 21 माला जप करें- ‘ऊं हीं क्रीं पूर्ण शक्ति स्वरूपाये क्रीं हीं ऊं फट्।’ फिर माला को गले में धारण कर लें। साधना के अंतिम दिन नवमी को शुद्ध गाय के घी में हवन सामग्री, कपूर, लौंग का जोड़ा रखें और चौंसठ ता्त्विवक मंत्र में ‘स्वाहा’ जोड़ कर उच्चारण करते हुए अग्नि में अर्पित करें। इसके बाद 108 आहुतियां जप मंत्र की दें। हवन पूरा होने के बाद श्री गणेश और श्री वटुक (दो बालक) के साथ दो से 11 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराएं, उन्हें उपहार दें। इसके बाद श्री दुर्गा यंत्र को अपने पूजा स्थल पर स्थापित कर दें। लाल रंग के मोटे कपड़े पर कुमकुम, कपूर, केसर, लाल चंदन, चमेली का मिश्रण कर अनार की 
कलम से यंत्र बनाएं या ताम्र पत्र पर अंकित कराए।

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