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कानून मंत्रालय: गर्द झाड़ने में ही बीत गया एक साल

मोदी सरकार का एक साल कानून मंत्रालय की गर्द झाड़ने में ही गुजर गया। न नई अदालतें खुलीं, न जजों के खाली पड़े पदों को भरने में तेजी आई। हर रोज एक गैरजरूरी कानून जरूर रद्द होना शुरू हो गया। सरकार का...

कानून मंत्रालय: गर्द झाड़ने में ही बीत गया एक साल
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 18 May 2015 10:33 PM
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मोदी सरकार का एक साल कानून मंत्रालय की गर्द झाड़ने में ही गुजर गया। न नई अदालतें खुलीं, न जजों के खाली पड़े पदों को भरने में तेजी आई। हर रोज एक गैरजरूरी कानून जरूर रद्द होना शुरू हो गया। सरकार का दावा है कि धैर्य रखिए, हम काम कर रहे हैं,  नतीजे सामने आएंगे। पेश है श्याम सुमन की रपट।

एक वर्ष के दौरान कानून मंत्रालय ने काम तो बहुत किया,  लेकिन सारा काम मंत्रालय को ठीकठाक करने का ही रहा। यानी मंत्रालय ने अपने घर की व्यवस्था को ही दुरुस्त किया,  जिससे आम जनता को न्याय मिलने की सहूलियत में कोई इजाफा नहीं हुआ। चाहे वह उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को बदलने के लिए लाया गया राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून, 2014 (एनजेएसी) हो या पुराने पड़ चुके कानूनों को खत्म करने के लिए निरस्तीकरण कानूनों के निर्माण का। ये आम जनता के लिए फायदेमंद नहीं रहे।

मुकदमों में देरी
जनता से सीधे जुड़े चुनाव सुधार पर कुछ नहीं किया गया। बस विधि आयोग की रिपोर्ट और उस पर निर्वाचन आयोग द्वारा बुलाए गए सर्वदलीय परामर्श के दौर के अलावा सब ‘ढाक का तीन पात’ ही रहा। देश की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा लम्बित मुकदमों की संख्या 10 वर्षों से ज्यों की त्यों है। इन मुकदमों में सरकार का हिस्सा 15 फीसदी से ज्यादा है। निचली अदालतों में जजों के 4,000 पद रिक्त हैं। एक भी नई अदालत इस दौरान नहीं खुली। सरकारी मुकदमों को सीमित करने के लिए कानून मंत्री लगातार राष्ट्रीय वाद नीति बनाने की बात करते रहे, लेकिन यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी। विभागों के इस बारे में गहरे मतभेद रहे।

एनजेएसी
जजों की नियुक्ति प्रणाली बदलने के लिए बनाया गया एनजेएसी कानून सरकार की उपलब्धि थी, क्योंकि पिछली सरकारें 24 वर्षों से इसके लिए प्रयास कर रही थीं,  लेकिन सफल नहीं हो सकीं। हालांकि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लिया और इसकी संवैधानिक वैधता जांचने का फैसला किया।

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने इसके मद्देनजर एनजेएसी का अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक कानून सर्वोच्च अदालत में लम्बित है, वह इसमें नहीं बैठेंगे। कानून के अनुसार, देश के मुख्य न्यायाधीश एनजेएसी के पदेन अध्यक्ष होंगे और सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज इसके सदस्य होंगे। यह अब पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष विचाराधीन है।

इसके कारण हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया ठप हो गई है। एक तरह से देखा जाए तो इस कानून का जनता को नुकसान ही हुआ, क्योंकि जजों की रिक्तियों के न भरने से न्याय की प्रक्रिया उच्च न्यायालयों में थोड़ी सुस्त हो गई है। कानून मंत्रालय ने दिल्ली हाईकोर्ट का आर्थिक अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के लिए एक संशोधन बिल राज्यसभा से पारित करवाया, लेकिन इसका भी जनता को कोई फायदा नहीं हुआ। उल्टे हाईकोर्ट के वकील इससे नाराज हो गए और उन्होंने इसके खिलाफ हड़ताल भी की।

हर दिन समाप्त होगा एक कानून
प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी देश में बिजनेस को आसान बनाने के लिए पुराने पड़ चुके जटिल कानूनों को समाप्त किया जाएगा। कानून मंत्रालय ने 757 पुराने कानूनों को समाप्त भी किया। इनमें से 700 कानून लेखानुदान मांग अधिनियम के थे, जिन्हें समाप्त करने का जनता की सहूलियत से कोई लेना-देना नहीं हैं।

पुराने कानून प्रयोग में नही
अन्य समाप्त किए गए 57 कानूनों का भी जनता पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि ये प्रयोग में ही नहीं थे। इनकी जगह नए कानून आ गए थे। जैसे हाथी संरक्षण कानून-1879, जिसकी जगह अब वन्य जीव संरक्षण कानून-1972 आ चुका है। वहीं सराय एक्ट, 1867 कानून था जिसके तहत हर होटल मालिक को ग्राहक को होटल में आते ही मुफ्त पेयजल देना जरूरी था, पर ऐसा सुनने में नहीं आया कि यह कानून इस्तेमाल हुआ हो।

इसी तरह के अन्य कई कानून,जैसे- गंगा सेस एक्ट, राजा महेंद्र प्रताप एक्ट, अवध सब-सेटलमेंट एक्ट, फॉरेन रिक्रूटिंग एक्ट, बंगाल सेपरेशन ऑफ टेरेरिस्ट आउटरेज एक्ट, बेरार एक्ट आदि समाप्त किए गए हैं। आजादी के बाद ये कानून कभी इस्तेमाल में नहीं आए। वहीं टेलीग्राफ एक्ट भी बेकार रहा, क्योंकि भारत में दो वर्ष पूर्व ही टेलीग्राफ सेवाएं बंद कर दी गई हैं। कहने का अर्थ यह है कि कानून मंत्रालय की यह कवायद लोगों के मतलब की नहीं रही। यह ठीक है कि इन्हें कानूनों की किताब से हटाना आवश्यक था, क्योंकि उसके बिना यह कानून खत्म नहीं हो सकते थे, लेकिन मंत्रालय इसे उपलब्धि नहीं कह सकता।


विचाराधीन कैदियों की सुध लेनी जरूरी
13 साल पुराने हिट एंड रन मामले में सलमान खान की तुरत-फुरत जमानत को लेकर देश में बहस छिड़ गई। संसद में भी यह मुद्दा उठा। एक सांसद ने कहा मुल्क की जेलों में 2,50,000 से ज्यादा विचाराधीन कैदी बंद हैं। जानकारों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर छोटे-मोटे आरोपों में कई सालों से बंद हैं। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने विचाराधीन कैदियों के मामले में कहा था कि 1 अक्तूबर, 2014 से सभी मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायाधीश जेलों का दौरा करेंगे। वे अपनी रिपोर्ट में संबंधित उच्च न्यायालय को बताएंगे कि कितने ऐसे विचाराधीन कैदी हैं, जो दी जाने वाली सजा की अधिकतम सीमा की आधी अवधि जेल में काट चुके हैं।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने सरकार से कहा था कि ये कैदी सिर्फ इसलिए जेलों में बंद हैं, क्योंकि वे मुकदमों की पैरवी कराने में समर्थ नहीं हैं, लिहाजा तुरंत कार्रवाई जरूरी है। 25 अप्रैल, 2015 को फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कैदियों को सिर्फ इसलिए जेल में नहीं रखा जा सकता कि वे जमानत का मुचलका नहीं दे सके।


देशभर में लम्बित मामलों की संख्या
- 2,6 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लम्बित हैं फिलहाल देश भर की निचली अदालतों में।
- 1500 जज उच्च न्यायालयों और 23 हजार जज निचली अदालतों के लिए जरूरी हैं।
- 44 लाख मामले हाईकोर्ट में लम्बित हैं। इनमें करीब 34 लाख दीवानी व 10 लाख फौजदारी के हैं।
- 906 से बढ़ाकर 998 की गई है उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या।

लोक अदालतें हैं उम्मीद
- 2014 के दिसम्बर माह में पूरे देश में एक साथ राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया। इससे पहले 2013 में राष्ट्रीय स्तर पर लोक अदालत लगाई गई थी। दोनों ही आयोजनों में बड़ी संख्या में लम्बित मुकदमे निपटाए गए थे।
- दिसंबर 2014 में लोक अदालतें, 24 हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और मुल्कभर के जिला न्यायालयों में लगाई गईं। इनमें एक ही दिन में सवा करोड़ मामलों का निपटारा हो गया। साथ ही, तीन हजार करोड़ रुपये की समझौता राशि भी चुकाई गई। इस व्यापक कार्यक्रम के कारण देश भर में लम्बित मामलों में नौ फीसदी की कमी आई। नवंबर 2013 में राष्ट्रीय लोक अदालत में 71 लाख मुकदमे निपटाए गए थे।


चार उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीश नहीं

पंजाब-हरियाणा, गुवाहाटी, गुजरात और छत्तीसगढ़ में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश काम कर कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश राज्य की निचली अदालतों में न्याययिक अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश की निचली अदालतों में 4,000 से ज्यादा रिक्तियां हैं जबकि स्वीकृत संख्या 19,726 है।


- हर दिन एक कानून को समाप्त करेंगे जिससे कानूनी जटिलताएं दूर हों सकें। कानूनों को बनाने के लिए भी विशेष ट्रेनिंग की जरूरत है क्योंकि स्पष्ट और सटीक कानून बनने से कोर्ट को उसे लागू करने में आसानी होगी।
 नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री  (मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन में, 4 अप्रैल, 2015)


- वर्ष 2016 से लेखानुदान कानूनों में निरस्तीकरण का प्रावधान कर दिया जाएगा, जिससे वित्तीय वर्ष के साथ वे स्वयं समाप्त हो जाएंगे। अब हर कानून में उसकी समाप्ति की सीमा का भी उल्लेख होगा। यह सीमा 20 से 30 वर्ष की होगी।
- डीवी सदानंद गौड़ा, केंद्रीय कानून एवं न्यायमंत्री


- एक वर्ष के काम पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। जजों की नियुक्ति का कानून सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में है, जिस पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
- शांति भूषण, वरिष्ठ न्यायविद एवं पूर्व कानून मंत्री

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