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हिंदी में गीतों की समृद्ध परम्परा रही है। छायावादी कवियों ने उत्कृष्ट गीतों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, तो शील और गोरख पांडेय ने एक भिन्न धरातल पर गीतों की रचना की। नवगीत लिखने वाले कवियों की...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 17 Sep 2016 08:15 PM
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हिंदी में गीतों की समृद्ध परम्परा रही है। छायावादी कवियों ने उत्कृष्ट गीतों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, तो शील और गोरख पांडेय ने एक भिन्न धरातल पर गीतों की रचना की। नवगीत लिखने वाले कवियों की परम्परा भी रही है। प्रताप अनम के गीतों की इस किताब को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों की संगति ने भी गीतों का स्वरूप तय करने में अहम भूमिका निभाई है। कई कवियों ने जनसामान्य की समस्याओं को सामने लाने के लिए अथवा जनता को राजनीतिक-सामाजिक तौर पर जागृत करने के मकसद से गीत लिखे हैं। अनम के गीतों में भी ये विशेषताएं मौजूद हैं। इनके गीतों का स्वरूप और भाषा स्वाभाविक ही लोकलय से प्रभावित है। उनके कई गीत जीवन के उल्लास और उम्मीदों को स्वर देते हैं।       
डूबे गगन तरैया, प्रताप अनम, शब्दालोक, दिल्ली, मूल्य- 150 रुपये।


स्वत्व का संघर्ष
हिंदी की जिन लेखिकाओं का रचना-संसार प्रत्यक्षत: स्त्री-विमर्श से जुड़ा हुआ है, उनमें गीताश्री भी शामिल हैं। ‘स्वप्न, स्त्री और साजिश’ उनका दूसरा कहानी संग्रह है, जिसमें उन्होंने समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव के परिप्रेक्ष्य में स्त्रियों के प्रति अपनी पक्षधरता को नए सिरे से पुष्ट किया है। संग्रह की कहानियों में अपनी-अपनी परिस्थितियों से जूझती स्त्रियां विवशता में घिरी पछताने वाली नहीं हैं, वे सपने देखती हैं और संघर्ष करती हैं। दिलचस्प यह है कि इन कहानियों की स्त्रियां बिहार के गांव से लेकर अमेरिका के मैनहट्टन शहर तक को अपनी परिधि में समेटे हुए हैं। वे अक्सर पूछती हैं- ‘जिंदगी इतनी अंधेरों से क्यों घिर आई है? ... कोई कड़ा फैसला तो लेना ही पड़ेगा। ... कहां तक भागोगी खुद से?’ संग्रह की अंतिम कहानी है ‘अनलिमिटेड’। इसकी आखिरी पंक्तियां हैं- ‘स्त्रियां जब खुलती हैं तो पास ही आती हैं। सारे विषाद, सारे ठगने वाले कारक उस खुलने में ध्वस्त हो जाते हैं।’ ये पंक्तियां मानो इस संग्रह का निहितार्थ हैं।
स्वप्न, साजिश और स्त्री, गीताश्री, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 300 रुपये।


असम गाथा
कोई पांच दशक पहले देवेंद्र सत्यार्थी ने ‘ब्रह्मपुत्र’ नाम का एक उपन्यास लिखा था। अब इतने दिनों बाद अनिता सभरवाल ने अपने इस उपन्यास में ब्रह्मपुत्र के बहाने असम के जनजीवन को पेश करने की कोशिश की है। लोहित ब्रह्मपुत्र का ही नाम है। उपन्यास के आरंभ में ही लेखिका ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘अतीत के इतिहास रचयिताओं ने राजा-महाराजाओं की कथा लिखी, लेकिन आज के रचयिता मानव मुक्ति की कथा लिखते हैं।’ स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी लेखनी से असम और उसके लोगों के जीवन की सुंदरता को उकेरा है तो उसके साथ ही जातिप्रथा, बलिप्रथा और उग्रवाद जैसी समस्याओं पर भी रोशनी डाली है, जो असम के स्वाभाविक जीवन-प्रवाह को बाधित कर रही हैं। उपन्यास का शिल्प भी दिलचस्प है।  इसमें अतीत की रहस्यमय पौराणिक-तांत्रिक कहानियां भी हैं और वर्तमान में मोहभंग से पीड़ित युवा पीढ़ी के बहिर्गमन का दुखांत भी।
लोहित, अनिता सभरवाल, परमेश्वरी प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 400 रुपये।


सफलता का शास्त्र
वर्तमान युग प्रबंधन का युग है। स्वाभाविक ही आज अनेक विशेषज्ञ हमारे सामने हैं, जो कार्य तो कार्य, मस्तिष्क तक के प्रबंधन का गुर सिखाते हैं, ताकि आप जो कार्य करें, उनकी सफलता सुनिश्चित हो सके। ‘एनएलपी’ भी ऐसी ही एक गूढ़ चीज है, जिसके बारे में इस पुस्तक में बतलाया गया है। लेखक के अनुसार विज्ञान से व्यक्ति सरल बन सकता है, अपनी बुद्धिमत्ता और सोच के स्तर को विकसित क र सकता है, जिससे उसका जीवन उन्नत बन सकता है। पुस्तक पढ़ते हुए समझा जा सकता है कि इसका बड़ा हिस्सा वस्तुत: उद्बोधन है, जिसे आकर्षक ‘वैज्ञानिक’ शब्दावली और उदाहरणों के जरिये प्रस्तुत किया गया है। बेशक यह पुस्तक मस्तिष्क और विवेक के प्रबंधन के बारे में है, लेकिन इस प्रबंधन का लक्ष्य निरा मानसिक कतई नहीं है। इसका लक्ष्य अपने विचार और व्यवहार को अनुशासित कर भौतिक लाभ कमाने के लिए पाठक को प्रेरित करना है।
एनएलपी द्वारा 100 प्रतिशत आत्मविश्वास और सफलता, अशोक गुप्ता, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 125 रुपये।

 

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