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चंद्रशेखर का व्यक्तित्व और वक्तृत्व

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भारतीय राजनीति में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रख्यात हैं, जिसने अपनी शर्तों पर राजनीति की है। वे हर बात साफ-साफ कहने के कायल थे। एक विराट नेता होने के साथ-साथ वे शानदार...

चंद्रशेखर का व्यक्तित्व और वक्तृत्व
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 23 Jul 2016 11:32 PM
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पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भारतीय राजनीति में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रख्यात हैं, जिसने अपनी शर्तों पर राजनीति की है। वे हर बात साफ-साफ कहने के कायल थे। एक विराट नेता होने के साथ-साथ वे शानदार वक्ता भी थे। प्रस्तुत पुस्तक संसद में दिए गए उनके भाषणों का संकलन है। इन भाषणों के विषय व्यापक हैं। इसमें पेटेंट बिल का विरोध, किसानों को सब्सिडी, भ्रष्टाचार, सिख विरोधी दंगे, लोकतंत्र में सेकुलरिज्म व सहिष्णुता और खाड़ी क्षेत्र में युद्ध जैसे विषय शामिल हैं। यह पुस्तक चंद्रशेखर के व्यक्तित्व और विचार प्रक्रिया को समझने में मदद करती है। अगर पुस्तक में संकलित भाषणों की तिथि भी दी गई होती तो ज्यादा बेहतर होता।  स्पीचेज इन पार्लियामेंट बाई चंद्रशेखर द ग्रेट, संकलनकर्ता- यशवंत सिंह एवं सुरेश बहादुर सिंह, श्री चंद्रशेखर जी स्मारक ट्रस्ट, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश, मूल्य- 495 रुपये।
राजीव रंजन

उलगुलान का नायक
बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास के उन अग्रणी नायकों में से एक हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की गुलामी और अपने समाज की प्रतिगामी नीतियों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाया था। वरिष्ठ लेखक विक्रमादित्य ने इस पुस्तक में इन्हीं बिरसा मुंडा के जीवन और संदेशों की गाथा प्रस्तुत की है। ब्रिटिश शासन और दिकुओं, जमींदारों ने आदिवासियों के जीवन को संकट में डाल दिया था। ऐसे में बिरसा ने ‘उलगुलान’(क्रांति) का ऐलान किया। वह ब्रिटिश दासता के खिलाफ संघर्ष के नेता बने। साथ ही सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने ‘बिरसा धर्म’ शुरू किया। उनके इन प्रयासों ने न सिर्फ आदिवासियों को सबल-सक्षम बनने की राह दिखाई, बल्कि संसार के किसी भी उत्पीड़ित समाज के लिए प्रेरक बनने की क्षमता इनमें है। बिरसा के प्रेरणास्पद जीवन की गाथा की यह प्रस्तुति बिल्कुल प्रासंगिक और प्रशंसनीय है। रचनाकार ने इसमें न केवल बिरसा की जीवन कथा दी है, बल्कि आदिवासी समाज में प्रचलित सृष्टि कथा का भी वर्णन किया है।
बिरसा काव्यांजलि, विक्रमादित्य, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 250 रुपये।

अनुभव का ताप
रामपुर (उत्तर प्रदेश) के महेंद्र प्रसाद गुप्त आधी सदी से पीटीआई के संवाददाता हैं। पत्रकारिता में उनका लंबा अनुभव है, लगभग छह दशक का। उनका बचपन ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के तूफानी दौर में गुजरा, जबकि युवावस्था में उन्होंने आजादी मिलते और उसके बाद नवनिर्माण के सपनों को पर लगते देखा। फिर जब स्वयं 1959 में पत्रकारिता में प्रवेश किया, तब से आज तक उनका यह कार्य जारी है। उन्होंने 1959 में ‘सहकारी युग’ नामक साप्ताहिक अखबार निकालना शुरू किया था। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदुत्ववादी विचारधारा से ताल्लुक रखते थे। लेकिन एक संपादक अथवा पत्रकार के रूप में उन्होंने हमेशा वही लिखा, जो उनको अपने विवेक के अनुकूल लगा। इसमें गुप्त के संस्मरण और अनुभव के साथ-साथ उनके बारे में कुछ अन्य लोगों के संस्मरण  और आलेख भी हैं, जो पुस्तक को दिलचस्प बनाते हैं।
मेरी पत्रकारिता के साठ वर्ष, महेंद्र प्रसाद गुप्त, उत्तरा बुक्स, दिल्ली, मूल्य- 395 रुपये।

सुभद्रा-सुयश
सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी की उन रचनाकारों में हैं, जिनकी कविताएं जन-गण की जुबान पर रहती आई हैं। हिंदी क्षेत्र के पढ़े-लिखे लोगों में कम ही ऐसे होंगे, जिनका परिचय ‘यह कदंब का पेड़...’ और ‘...वह तो झांसी वाली रानी थी’ जैसी कविताओं से न हो। इन्हीं सुभद्रा की संक्षिप्त जीवनी राजेंद्र उपाध्याय ने लिखी है। यह पुस्तक सुभद्रा जी के व्यक्ति रूप के बारे में जानने का एक जरिया हो सकती है। सुभद्रा लेखन के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय थीं। उन्होंने जबलपुर से चुनाव भी लड़ा था और निर्विरोध जीत कर विधानसभा पहुंची थीं। निरंतर सक्रियता का प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ा और सिर्फ 44 साल की उम्र में वह चल बसीं। लेकिन इतनी-सी उम्र में ही उन्होंने जो रचा, उसने उनकी कीर्ति को सदा के लिए स्थापित कर दिया। उनकी रचनाएं एक ओर राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं तो दूसरी ओर देश के जनसाधारण के जीवन की छवियों से परिपूर्ण।
सुभद्रा कुमारी चौहान, राजेंद्र उपाध्याय, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली, मूल्य- 18 रुपये।
धर्मेंद्र सुशांत


 

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