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खांसी: क्यों नहीं जाती

डॉक्टर कहते हैं कि खांसी कोई बीमारी नहीं है, यह शरीर में हो रही किसी और परेशानी का संकेत है। रोगों के बारे में चेताने के लिए दी गई शरीर की प्रतिक्रिया। वजह जो भी हो, पर खांसी का ना जाना दिन का सुकून...

खांसी: क्यों नहीं जाती
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 06 Jan 2017 12:43 AM
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डॉक्टर कहते हैं कि खांसी कोई बीमारी नहीं है, यह शरीर में हो रही किसी और परेशानी का संकेत है। रोगों के बारे में चेताने के लिए दी गई शरीर की प्रतिक्रिया। वजह जो भी हो, पर खांसी का ना जाना दिन का सुकून और रात की नींद छीन लेता है। खांसी के कारण और उपचार के बारे में बता रही हैं इंद्रेशा

सामान्य खांसी वह है, जो रोजमर्रा के खानपान में अचानक हुई गड़बड़ियों की वजह से शुरू हो जाती है। अचानक सर्दी लग जाए, गले की नली में सूजन हो जाए, टांसिल बढ़ जाए तो अकसर खांसी आने लगती है। खांसी आने का एक मतलब यह है कि शरीर के भीतर रोगों से बचने की एक जंग जारी है। जो भी हो, किसी भी तरह की खांसी में फेफड़े और गले की नलियां संक्रमण का शिकार होती ही हैं। सामान्य खांसी थोड़ी सावधानी के साथ चार दिन में ठीक हो जाती है, पर दो हफ्ते से अधिक रहने वाली  खांसी को ‘क्रॉनिक कफ’ कहा जाता है।

लंबे समय तक रहने वाली खांसी दमा, टीबी, स्वाइन फ्लू, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, न्यूमोनिया, फेफड़ों के संक्रमण का भी संकेत हो सकती है। फेफड़ों के कैंसर की स्थिति में भी खांसी लंबे समय तक बनी रह सकती है। जिन्हें धूल, धुआं, मिट्टी, वातावरण में दिन-ब-दिन बढ़ रही रासायनिक गैसों से एलर्जी होती है, उनकी भी खांसी आसानी से नहीं जाती। लंबी खांसी के मामले में डॉक्टर से मिलना जरूरी है। खासकर बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो, वह जल्दी-जल्दी सांस खींच रहा हो तो यह न्यूमोनिया का संकेत हो सकता है। दुनिया भर में इस संक्रमण के कारण हर साल एक लाख दस हजार बच्चे मौत के शिकार हो जाते हैं।  

आयुर्वेद की नजर में
आयुर्वेद की नजर में खांसी की जड़ में वात, पित्त और कफ का प्रकोप है। इस हिसाब से कुल पांच तरह की खांसी है। वातज, पित्तज और कफज सीधे त्रिदोष से संबधित हैं, पर क्षतज और क्षयज दूसरे कारणों से होती हैं और ज्यादा खतरनाक हैं।
- वातज खांसी में कफ बेहद कम निकल पाता है या बिल्कुल नहीं निकलता। कफ निकालने की कोशिश में खांसी लगातार परेशान करती है। पसलियों, पेट, छाती वगैरह में दर्द होने लगता है।
- पित्तज खांसी में कफ का स्वाद कड़वा होता है। खांसते-खांसते उल्टी हो जाए तो पीला, कड़वा पित्त निकलता है। प्यास लगती है। शरीर में जलन होती है।
- कफज खांसी में कफ ढीला होकर आसानी से निकलता रहता है। कफ का स्वाद मीठा और मुंह का स्वाद फीका हो जाता है। भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है, आलस्य छाया रहता है।
- क्षतज खांसी अलग कारणों से पैदा होती है, मसलन भारी बोझ उठाने, शारीरिक वेगों को बलपूर्वक रोकने, ज्यादा क्रोध करने आदि।
- क्षयज खांसी इन सबसे ज्यादा घातक होती है। यह संक्रामक है। इसमें शरीर को नुकसान होने लगता है। यह टीबी रोग का शुरुआती संकेत है। इसमें शरीर में बुखार और दर्द रहने लगता है। दुर्बलता बढ़ जाती है। इसके इलाज में देरी ठीक नहीं।

रात में परेशानी क्यों बढ़ जाती है
दिन में हम सक्रिय रहते हैं, जिससे कफ इकट्ठा नहीं हो पाता। बलगम बनता है तो आसानी से बाहर निकाल दिया जाता है, पर रात में बलगम इकट्ठा होकर गले में फंसता है और खांसी का वेग बढ़ जाता है। जो लोग रात में ज्यादा मात्रा में खाते हैं या अस्थमा के शिकार होते हैं, उन्हें भी रात में खांसी अधिक रहती है। 
विशेषज्ञ: डॉ. सुरेश, प्रमुख, आरोग्य निकेतन, अंबेडकर नगर।
डॉ. सच्चिदानंद, प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ, हाथरस।    
डॉ. दिनेश प्रसाद, होमियोपैथ, इलाहाबाद।
वैद्य अनुराग विजयवर्गीय, शिमला।

उपचार का तरीका
डॉक्टरों के अनुसार विटामिन-ई की उचित मात्रा न्यूमोनिया से बचाए रखने में मदद करती है। खांसी की तमाम दवाएं हैं, जिन्हें डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए। एंटीबायोटिक दवाओं या सिरप अपने आप या लंबे समय तक लेना ठीक नहीं। डॉक्टर कहते हैं कि सीने में संक्रमण की वजह से आने वाली खांसी में अकसर एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं, पर यह सही नहीं है। उल्टे कई बार इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता पर खराब असर पड़ता है। सामान्य स्थितियों में सीने के ज्यादातर संक्रमणों को कुछ दिनों में शरीर अपने आप ठीक कर लेता है। सिट्रीजन, बेंजोनेटेट ओरल, म्यूसीनेक्स, एलेग्रा जैसी  दवाएं हैं, पर डॉक्टर की सलाह से ही इन्हें लें।

ये उपाय भी देंगे राहत

आयुर्वेद
- कासमर्दन वटी, लवंगादि वटी या खदिरादि वटी की एक-दो गोलियां चूसते रहने से सामान्य खांसी में आराम मिलता है।
- सितोपलादि चूर्ण शहद के साथ लेना भी राहत देता है। 
- हल्दी, गुड़ और पकी फिटकरी का चूर्ण बनाकर मटर के दाने बराबर गोलियां बना कर रख लें। दो-तीन गोलियां रोज लेना आराम देता है।
- वैद्य की सलाह से कुछ पेटेंट दवाओं, कफ सिरप वगैरह का सेवन किया जा सकता है।

प्राकृतिक चिकित्सा
- प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले शरीर की शुद्धि करने पर ध्यान दिया जाता है। खौलते पानी में तुलसी के कुछ पत्ते डाल कर भाप लेते रहें। भाप खांसी में राहत देती है।
- सिर व पेड़ू पर आधे घंटे के लिए मिट्टी की पट्टी रखना भी फायदा पहुंचाता है।
- सवेरे शौच से निवृत्त होने के बाद नीबू मिले गुनगुने पानी का एनिमा लेना चाहिए। कई बार, दो-तीन दिन लगातार एनिमा लेने मात्र से खांसी काबू में आ जाती है। फलों का सेवन भी फायदा पहुंचाता है। 
- नई खांसी में दो दिन का उपवास या रसाहार करके गुनगुने पानी का एनिमा लेना चाहिए। इसके बाद दो-तीन दिन तक फलाहार या उबली हुई साग-सब्जियों का सेवन करें।
- पुरानी खांसी में तीन दिनों तक रसाहार करके दस दिनों तक फलाहार की सलाह दी जाती है। 
- नीबू पानी समय-समय पर पीते रहना चाहिए। एक भ्रम है कि इससे खांसी बढ़ जाती है, पर ऐसा नहीं है।

होमियोपैथी
खांसी की कोई एक पेटेंट दवा नहीं बताई जा सकती, पर होमियोपैथी में इलाज संभव है। हूपिंग खांसी में खुसखुसी खांसी हो तो ‘कार्बोलिक एसिड’ से लाभ हो सकता है। सूखी खांसी के साथ गले में घड़घड़ हो, पर कुछ निकले नहीं तो ‘इपीकाक’ की सलाह दी जाती है। इसी तरह बोरेक्स,  कोनियम, बेलाडोना, ड्रॉसेरा स्पांजिया, र्यूमेक्स, आर्सेनिक, स्पाइजीलिया, हायोसायमस, फॉस्फोरस कई दवाएं हैं। काम के घरेलू नुस्खे

- सूखी खांसी है तो सौ मिलीलीटर पानी में दस ग्राम मुलहठी चूर्ण उबालें। आधा रह जाए तो ठंडा करके सोते समय पी लें। चार-पांच दिन लगातार ऐसा करने पर भीतर का जमा हुआ कफ ढीला होकर निकल जाता है।
- अदरक का रस, तुलसी  के पत्तों का रस, शहद तथा मिश्री का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इसे एक बड़े चम्मच की मात्रा में दिन में चार बार सेवन करना चाहिए। बच्चों को उम्र के हिसाब से कम मात्रा में दें।
- एक गिलास गरम दूध में एक चम्मच पिसी हल्दी और थोड़ा-सा गुड़ डाल कर सवेरे और रात को लें। इससे सर्दी-खांसी दोनों में आराम मिलता है।  
- आधा चम्मच पिसा नमक तथा इतनी ही पिसी हल्दी  मिला कर उसका रात में सोने से पहले एक गिलास गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इसके बाद ठंडा पानी न पिएं। खांसी में यह काफी कारगर है। बच्चों को कम मात्रा में दें।

अलग-अलग तरह की खांसी 
पोस्ट नेजल ड्रिप (गले की खांसी): यह खांसी सूखी या तर, दोनों तरह की हो सकती है। कई बार गले में खराश भी होती है। यह सर्दी लगने और एलर्जी की वजह से होती है। रात में ज्यादा परेशान करती है।
अस्थमा: इसमें बलगम बड़ी मुश्किल से निकलता है। गले से सीटी बजने की आवाज आती है। खुसखुसाहट होती रहती है। इसमें श्वास नलिकाओं में सूजन हो जाती है और सांस लेने में काफी तकलीफ होती है।
एसिडिटी वाली खांसी: इसमें आमाशय में पाचक अम्ल की गड़बड़ी होती है और ज्यादा बनने पर कई बार यह गले की तरफ श्वास नलिकाओं में चढ़ जाता है, जिससे खांसी आती है। पाचन की खराबी इसकी मुख्य वजह है।
सीओपीडी: इस खांसी में सवेरे काफी मात्रा में बलगम निकलता है। सवेरे ही खांसी अधिक रहती है। कभी-कभी सीने में दबाव महसूस होता है और सांस लेने में परेशानी होती है। धूम्रपान करने वाले इसके ज्यादा शिकार होते हैं।
न्यूमोनिया: न्यूमोनिया का मुख्य कारण स्ट्रेप्टोकॉकस न्यूमोनिया नामक एक बैक्टीरिया है, जो हमारे फेफड़ों को संक्रमित करके श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर देता है। इसे प्राय: सामान्य सर्दी-खांसी समझ कर अनदेखा किया जाता है। बच्चों की असमय मृत्यु का यह सबसे बड़ा कारण है। इसमें खांसी, बुखार, तेज सांस चलना, सीने में दर्द, मतिभ्रम जैसे लक्षण आते हैं। कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चे इसके अधिक शिकार होते हैं।

काली खांसी या हूपिंग कफ: यह संक्रमण के कारण होती है और तेजी से बढ़ती है। रात और दिन, दोनों समय परेशान करती है। कुत्ते की तरह हुप-हुप की आवाज आती है, इसीलिए इसे कूकर खांसी भी कहते हैं। शुरू में हल्का बुखार होता है, फिर खांसी तेजी से बढ़ने लगती है। आंखें लाल होने लगती हैं। कई बार खांसते-खांसते उल्टी हो जाती है। संक्रमण के कारण आसपास के लोग भी चपेट में आ सकते हैं।
दवाओं के दुष्प्रभाव से खांसी: हाई ब्लडप्रेशर के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएं कुछ लोगों में सूखी खांसी का कारण बन जाती हैं। श्वसन तंत्र पर असर डालने वाली कई और दवाएं भी खांसी का कारण बन सकती हैं।

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