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साझेदारी में बिजनेस संभलकर बढ़ाएं कदम

मिलकर कोई व्यापार करना आज आम बात है। इस तरह के काम में सफलता तब मिलती है, जब साझेदारी की समझ भी हो। ऐसे में क्या हो आपकी अप्रोच और किन बातों का रखें ध्यान, बता रहे हैं प्रसन्न प्रांजल आज के समय...

साझेदारी में बिजनेस संभलकर बढ़ाएं कदम
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 16 Nov 2016 08:26 PM
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मिलकर कोई व्यापार करना आज आम बात है। इस तरह के काम में सफलता तब मिलती है, जब साझेदारी की समझ भी हो। ऐसे में क्या हो आपकी अप्रोच और किन बातों का रखें ध्यान, बता रहे हैं प्रसन्न प्रांजल


आज के समय में साझेदारी यानी पार्टनरशिप में व्यवसाय सामान्य बात हो गई है। कभी अनुभव, कभी पूंजी, तो कभी बेहतर संपर्कों के लिए बिजनेस में साझेदार की जरूरत होती है। ऐसी स्थितियों में साझेदारी में बिजनेस शुरू करने से पहले कुछ आवश्यक बातों पर गौर कर लेना साझेदारी के लिए फायदेमंद साबित होगा। आइए जानें ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण बातें-

साझेदार का चुनाव
किसी को सिर्फ इसलिए पार्टनर न बनाएं कि वह परिवार का सदस्य, दोस्त या रिश्तेदार है। आपका पार्टनर भरोसेमंद, समान सोच वाला, विषम स्थितियों में मिलकर चलने वाला होना चाहिए। 15 साल से बिजनेस कर रहे अविनाश कुमार सुमन कहते हैं,‘पार्टनर के चुनाव में भावुकता से फैसले न लें। सोच-समझकर सभी पहलुओं पर ध्यान देकर पार्टनर का चुनाव करना आपको परेशानियों से बचाएगा।

करीबी दोस्त के साथ न करें बिजनेस
बिजनेसमैन अविनाश कुमार सुमन कहते हैं, ‘अपने खास दोस्त के साथ बिजनेस न करें। दोस्त के साथ बिजनेस करने पर मनमुटाव हो जाए तो बिजनेस बंद होने की नौबत भी आ सकती है। ऐसे में बिजनेस में नुकसान उठाने के साथ आप अपने बेस्ट फ्रेंड को भी हमेशा के लिए खो देंगे।’

कैसे कराएं रजिस्ट्रेशन
साझेदारी में बिजनेस की दो कानूनी जरूरतें हैं- एक जुडिशियल स्टांप पेपर पर सामान्य एग्रीमेंट और दूसरा लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के तहत पंजीकरण। चार्टर्ड अकाउंटेंट यशवंत कुमार बताते हैं, ‘दोनों स्थितियों में साझेदारों की जिम्मेदारियों, लाभ और हानि, पूंजी और उस पर लगने वाला ब्याज, वेतन, बैंक से होने वाले लेन-देन और व्यापारिक कामों आदि से जुड़ी बातों का स्पष्ट विवरण दें। सामान्य एग्रीमेंट स्टांप पेपर पर तैयार कराकर उसका सत्यापन कराएं और नोटरी से उसे नोटराइज्ड कराएं। ऐसी पार्टनरशिप में साझेदार की जवाबदेही अनिश्चित होती है। जवाबदेही तय करने के लिए लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) डीड तैयार कराकर कंपनी रजिस्ट्रार के यहां पंजीकृत कराएं। रजिस्ट्रेशन पार्टनरशिप एक्ट 1932 के तहत पंजीकरण होता है।

तय करें एग्जिट स्ट्रैटेजी 
एग्जिट स्ट्रैटेजी के तहत तय किया जाता है कि किसी कारणवश कंपनी बंद होने पर कंपनी का ब्रांड किसके पास जाएगा, फैक्ट्री कौन लेगा, क्लाइंट किसके पास होंगे। इन पर स्पष्टता रखें। साझेदार किन परिस्थितियों में पार्टनरशिप खत्म कर सकता है, इसकी रूपरेखा पहले ही तय कर लें।

नेतृत्व कौन करेगा
किसी भी कंपनी में लीडर कोई एक ही हो सकता है। सभी पार्टनर मिलकर काम करते हैं, लेकिन कंपनी का चेहरा बनने और उससे जुड़े फैसले लेने का काम लीडर का ही होता है। कंपनी के लिए नेतृत्व का महत्व समझते हुए पहले से लीडर तय कर लेने पर भविष्य में टकराव की स्थिति कम होगी।

विभागों का बंटवारा
बिजनेस में अकाउंटिंग, मार्र्केंटग, क्लाइंट सर्विसिंग जैसे कुछ अहम विभाग निश्चित रूप से होते हैं। बिजनेस शुरू करने से पहले ही यह तय कर लें कि कौन सा सदस्य किस विभाग को देखेगा। विभाग तय हो जाने पर बिजनेस सुचारु रूप से चला पाएंगे।   

लाभ और घाटे में साझेदारी
कंपनी में साझेदार अलग-अलग अनुपात में पूंजी लगा सकते हैं, लेकिन इसी आधार पर उनमें मुनाफे का भी बंटवारा होता है। ऐसे में अनुपात के अनुसार जिस पक्ष की आमदनी कम होगी, उसे ईष्र्या हो सकती है। इसलिए 50-50 फीसदी की हिस्सेदारी कहीं बेहतर है। साथ ही लाभ-हानि में भी बराबर की हिस्सेदारी तय कर लें।

खरीद-बिक्री का स्पष्ट विवरण
बिजनेस से संबंधित खरीदारी और बिक्री का काम कौन करेगा, यह स्पष्ट कर लें। साथ ही यह भी तय कर लें कि जब भी बिजनेस में थोक में सामान आएगा वह सभी पार्टनर की मौजूदगी में आएगा और उसका रिकॉर्ड रखा जाएगा। स्टॉक में कितना माल है या मार्केट में कितनी पूंजी फंसी हुई है, इन सबके बारे में हर हफ्ते या महीने सभी पार्टनर बैठकर हिसाब करें और काम में पारदर्शिता रखें।

प्राथमिकताएं बदल जाना
साझेदारी में कुछ समय बिजनेस करने के बाद साझेदारों को लगता है कि वे काम की बारीकियां समझ गए हैं और खुद का बिजनेस शुरू कर सकते हैं। अपने हित सुरक्षित रखने के लिए कंपनी शुरू करने से पहले यह स्पष्ट कर लें कि कोई साझेदार कंपनी के क्लाइंट के साथ नया बिजनेस शुरू नहीं करेगा और कंपनी के नाम का दुरुपयोग नहीं करेगा।

बिजनेस नहीं चले तो करें खत्म
सीए यशवंत कुमार का कहना है कि बिजनेस की शुरुआत से पहले देख लें कि आप और आपका पार्टनर असफलता सहज तरीके से स्वीकार कर सकते हैं या नहीं। किसी कारणवश सफल न होने पर मिलकर तय करें कि क्या करना है, कितने समय तक फर्म चला सकते हैं। अगर फर्म को चलाना नामुमकिन हो जाए या आप दिवालिया घोषित हो जाते हैं, तो कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए अपनी फर्म बंद कर दें।

पारिवारिक हस्तक्षेप से बचें
साझेदारी के बिजनेस में अक्सर कुछ साल बाद साझेदार उसमें अपने बच्चों या रिश्तेदारों को शामिल करने लगते हैं। इससे भविष्य में तनाव पैदा होने की आशंका रहती है। ऐसे में बिजनेस को पारिवारिक हस्तक्षेप से दूर रखने में ही भलाई है।

लंबी अवधि के लिए रणनीति
सीए यशवंत के अनुसार, ‘दीर्घ अवधि की साझेदारी के लिए व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान दें। लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के तहत रजिस्ट्रेशन कराने से पार्टनर की जिम्मेदारी तय रहती है। साथ ही कंपनी के लीडर, विभागों का बंटवारा, शेयरिंग इन सब बातों पर नजरिया साफ होना चाहिए। हर तीन या छह महीने पर हिसाब-किताब की जांच करें। कैपिटल रेशियो और प्रॉफिट रेशियो में संतुलन बनाए रखें और पूंजी में कमी न आने दें। पार्टनर की तनख्वाह तय करना भी फायदेमंद साबित होगा। रोजमर्रा के काम में अपनी भूमिका बनाए रखें। देनदारों का हिसाब-किताब, आय-व्यय व अन्य सभी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता रखें।’

समझें कानूनी पक्ष
पटना हाईकोर्ट के वकील रविशंकर चौधरी का कहना है कि पार्टनरशिप डीड बनवाते वक्त बिजनेस और पार्टनरशिप से संबंधित सभी बातों का स्पष्ट विवरण दें मसलन किसकी क्या जिम्मेदारी होगी, किन स्थितियों में साझेदार करार तोड़ सकता है या किन स्थितियों में उसे बाहर निकाला जा सकता है, किन कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य होगा आदि। पार्टनर की मृत्यु, दिवालिया होने या अलग होने की स्थिति में आगे की प्रक्रिया क्या होगी, इसका भी स्पष्ट विवरण जरूरी है। किसी अच्छे वकील से परामर्श लेकर आवश्यक नियम और शर्तें शामिल कर पार्टनरशिप डीड तैयार कराएं। डीड पर सभी साझेदारों के हस्ताक्षर और दो गवाहों की मौजूदगी जरूरी हैं, ताकि उनकी रजामंदी प्रमाणित हो जाए।

जरूरी है पार्टनरशिप डीड
पार्टनर कितना ही करीबी और भरोसेमंद क्यों न हो, चार्टर्ड अकाउंटेंट और लीगल एक्सपर्ट की मदद से पार्टनरशिप डीड (लिखित करारनामा) जरूर तैयार करा लें। साझेदारी में कौन कितना निवेश कर रहा है, किसका कितना हिस्सा होगा, किस हिसाब से लाभ और हानि का बंटवारा होगा- इन सभी बातों का डीड में स्पष्ट विवरण जरूरी है। साथ ही पार्टनर की भूमिका, जिम्मेदारियां, एग्जिट स्ट्रैटजी जैसी चीजों पर भी स्पष्टता आवश्यक रूप से होनी चाहिए। छोटे-छोटे मतभेद भी जमी-जमाई पार्टनरशिप खत्म कर सकते हैं। ऐसे में पहले से लिखित करारनामा तैयार करने से भविष्य में आपको इससे जुड़ी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

आवेदन में ये जानकारियां होनी चाहिए
- फर्म का नाम और व्यापार का स्थान 
- किसी अन्य स्थान का नाम, जहां फर्म का व्यापार होता है
- बिजनेस में साझेदार बनने की तिथि
- साझेदारों का पूरा नाम और स्थायी पता
- फर्म की अवधि (अगर नियत काम या अवधि के लिए हो)
- सभी साझेदारों के हस्ताक्षर और इनका सत्यापन

विवाद का समाधान
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील प्रवीण कुमार कहते हैं, ‘विवाद होने पर उसे आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करें। जब आप अपनी तरफ से मुद्दा सुलझाने में नाकाम रहें, तब आखिरी विकल्प के तौर पर न्यायालय की शरण लें। ऐसी स्थिति में किसी कानूनी सलाहकार से मशविरा जरूर करें। डीड तैयार कराए जाने के वक्त उसमें उस इलाके का जिक्र आता है, जिसके क्षेत्राधिकार के तहत मामला आता है। ऐसे में संबंधित न्यायालय में जाकर मदद की फरियाद कर सकते हैं।’

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