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मुक्त हो जाने की कला है ध्यान

ध्यान से लोगों को परमानंद का अनुभव मिल सकता है। हमारी चेतना की तीन अवस्थाएं हैं- जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति। एक चौथी अवस्था भी है, जिसमें हम न ही जागते हैं, न ही सपना देखते हैं और न ही सोते हैं। ऐसा...

मुक्त हो जाने की कला है ध्यान
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Apr 2015 11:32 PM
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ध्यान से लोगों को परमानंद का अनुभव मिल सकता है। हमारी चेतना की तीन अवस्थाएं हैं- जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति। एक चौथी अवस्था भी है, जिसमें हम न ही जागते हैं, न ही सपना देखते हैं और न ही सोते हैं। ऐसा ध्यान में अनुभव होता है।

हमारी प्रवृत्ति है कि हम सुखद मनोभावों को छोड़ कर दुखद भावनाओं से चिपक जाते हैं। निन्यान्वे प्रतिशत लोग यही करते हैं। परंतु चेतना जब ध्यान द्वारा मुक्त और संवर्धित होती है, तब नकारात्मक मनोभावों को पकड़े रखने की प्रवृत्ति सहज ही मिट जाती है। हम वर्तमान क्षण में जीना शुरू कर देते हैं और इस काबिल हो जाते हैं कि अपने अतीत से मुक्त हो सकें।

लोग कितने ही अच्छे क्यों न हों, किसी भी रिश्ते  में गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं। यहां तक कि एक छोटी सी गलतफहमी हमारी भावनाओं को विकृत करके नकारात्मक रुख ले सकती है। परंतु यदि हम अपने आप को मुक्त कर सकें और चेतना के प्रत्येक क्षण के वैभव  में मस्त हो जाने की क्षमता पर केंद्रित हो सकें तो इससे हमारा बचाव हो सकता है। इससे यह सत्य उजागर होता है कि प्रत्येक क्षण हमारे विकास में सहायक है। चेतना की उच्चतर अवस्था  को प्राप्त करने के लिए किसी जटिल उपाय की आवश्यकता नहीं होती। व्यक्ति को सिर्फ मुक्त हो जाने की कला सीखने की जरूरत है, और यही ध्यान है।
ध्यान है अतीत और अतीत की घटनाओं के प्रति क्रोध से मुक्त हो जाना तथा भविष्य के लिए योजनाओं को छोड़ देना। जब तुम योजनाएं बुनते हो तो वह तुम्हें स्वयं की गहराई में डूबने से रोकता है। वर्तमान क्षण को स्वीकार करना और प्रत्येक क्षण को पूरी गहराई से जीना ध्यान है। बस इस समझ और कुछ दिनों तक लगातार ध्यान के अभ्यास से तुम्हारे जीवन की गुणवत्ता में बदलाव आ सकता है।

ध्यान आनंद, पूर्ण संतुष्टि और वृहत्तर अंतज्र्ञान की ओर ले जाता है। दैनंदिन जीवन में ध्यान के एकीकरण से चेतना के पांचवें स्तर, जिसे ब्रह्मांडीय चेतना कहा जाता है, का उदय होता है। ब्रह्मांडीय चेतना का अर्थ है संपूर्ण ब्रह्मांड को अपना ही अंग समझना। जब हम पूरी दुनिया को अपना समझते हैं तो हमारे और संसार के बीच प्रेम शक्तिशाली रूप से प्रवाहित होता है। यह प्रेम हमें हमारे जीवन के विरोधाभासों और उपद्रवों को सहन करने में समर्थ बनाता है। क्रोध और मायूसी क्षणिक भावनाएं बन जाते हैं, जो उत्पन्न होकर पल में छू-मंतर हो जाते हैं।

ज्ञान, समझ और अभ्यास का संगम जीवन को पूर्णता देता है। जब चेतना के उच्चतर स्तर तक तुम्हारा विकास होता है तो तुम पाते हो कि अलग-अलग परिस्थितियों और उपद्रवों से अब तुम डगमगाते नहीं। तुम खूबसूरत, शक्तिशाली बन जाते हो- एक सौम्य, कोमल सुंदर फूल, जो  जीवन के विभिन्न मूल्यों को बेशर्त अपनाने की क्षमता रखता है।
ध्यान एक बीज के समान है। जितने अधिक जतन से बीज को उगाया जाएगा, उतना ही वह फलेगा-फूलेगा। ठीक उसी तरह जितना हम ध्यान में उतरने का अभ्यास करेंगे, उतना ही यह हमारे शरीर और स्नायु तंत्र का संवर्धन करेगा। हमारे शारीरिक क्रिया धर्म (फिजियोलॉजी) एक परिवर्तन से गुजरते हैं और शरीर के प्रत्येक कोश में प्राण का संचार होता है तथा जैसे-जैसे शरीर में प्राण का स्तर ऊपर उठता है, हम  खुशी से लबालब भर जाते हैं।

ध्यान करते समय तीन नियमों को याद रखना है- मैं कुछ भी नहीं हूं (अकिंचन), मुझे किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है  (अचाह), और मैं कुछ भी नहीं करने जा रहा (अप्रयत्न)। यदि तुम्हारे पास ये तीनों गुण हैं तो तुम ध्यान में उतर सकोगे। अतीत और अतीत की घटनाओं के प्रति क्रोध तथा भविष्य के लिए योजनाओं से मुक्त हो जाना ध्यान है। योजनाएं तुम्हें स्वयं की गहराई में डूबने से रोकती हैं। वर्तमान क्षण को स्वीकार करना और प्रत्येक क्षण को पूरी गहराई से जीना ध्यान है।


 

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