पंजाब का ग्रामीण जीवन
पंजाबी भाषा के मशहूर उपन्यासकार रामसरूप अणखी की अखिल भारतीय ख्याति का आधार है उनका उपन्यास 'कोठे खड़क सिंह'। हिंदी में इसका अनुवाद 'कहानी एक गांव की' नाम से हुआ था। 'दुल्ले की ढाब' का कथाफलक भी...
पंजाबी भाषा के मशहूर उपन्यासकार रामसरूप अणखी की अखिल भारतीय ख्याति का आधार है उनका उपन्यास 'कोठे खड़क सिंह'। हिंदी में इसका अनुवाद 'कहानी एक गांव की' नाम से हुआ था। 'दुल्ले की ढाब' का कथाफलक भी ग्रामीण जीवन पर आधारित है। यह स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से शुरू होता है और हाल-फिलहाल तक आकर समाप्त होता है। ग्रामीण जीवन के सुख-शोक, बदलते सामाजिक मूल्य, धर्म व सियासत के पेच- ये तमाम मसले इसमें समाहित हैं। पंजाब में उभरी आतंकवाद की समस्या और विघटन के इस क्षण में युवाओं के भटकाव और निराशा को भी इसमें समेटा गया है। यह ग्रामीण जनजीवन का महाकाव्यात्मक लेखा-जोखा है, जो स्वाभाविक ही एक त्रासद अंत में पूर्ण होता है। जसविंदर कौर बिंद्रा का अनुवाद काफी अच्छा है।
दुल्ले की ढाब, रामसरूप अणखी, अनुवाद: जसविंदर कौर बिंद्रा, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, मूल्य- 650 रुपये
सांस लेने की छटपटाहट
जटिल से जटिलतर होते जाते समय में यह समझना मुश्किल नहीं है कि कविता लिखना कितना कठिन काम है। यह कठिनाई उस समय और ज्यादा बढ़ जाती है, जब कवि के लिए कविता लिखना स्वांत सुखाय भर न हो। लेकिन पंकज इस कठिन-कठोर समय में कविता लिख रहे हैं और उन लोगों का हाल बयान कर रहे हैं, जिनके लिए 'लीला' से ज्यादा जरूरी सानी-पानी है- लीला बाद में भी हो जाएगी/ पर सानी-पानी का समय हो गया है।
वह समाज के विद्रूपों को मारक व्यंग्यात्मकता से उजागर करते हैं। मसलन 'पुरुषत्व एक उम्मीद' में मोबाइल फोन के संभावित खतरों के बहाने वह लिखते हैं- पुरुषत्व एक उम्मीद है समाज की/
जिसके पास दिल नहीं रहा।
संग्रह की शीर्षक कविता में रक्तचाप को वह बिल्कुल अलहदा नजरिये से परिभाषित करते हैं- रक्तचाप बंद संरचना वाली जगहों में/ चाहे वे वातानुकूलित ही क्यों न हों/ सांस लेने की छटपटाहट है।
रक्तचाप और अन्य कविताएं, पंकज चतुर्वेदी, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 325 रुपये
भीतर की आंच
युवा कवयित्री अनुप्रिया का पहला कविता संग्रह है 'कि कोई आने को है'। भावों और बिम्बों की सहजता इसका प्राण है और स्त्री-दृष्टि से दुनिया का अवलोकन इसकी विशेषता। इनके स्वर में निश्छल गंभीरता है, जो इन कविताओं की विश्वसनीयता बढ़ाती है। अनुप्रिया उस संसार का उद्घाटन करती हैं, जहां सबसे छिप कर चूल्हे की राख पर अधूरी कविताएं लिखी जाती हैं और नमक की डिबिया में आंसुओं को अक्सर बंद कर रख दिया जाता है। कहना न होगा कि यह संसार स्त्रियों का संसार है, जिसे एसिड फेंक कर बदरूप करने की बार-बार कोशिश की जाती है। अनुप्रिया इसका प्रतिकार एक व्यापक सृजन बोध से करती हैं, जहां आग संहारक नहीं, बल्कि सर्जक की भूमिका में आती है- हम गिरेंगी/ फिर फिर उठेंगी/ अपने भीतर की आंच से/दुनिया के किसी भी कोने में/ सुलगा देंगी/ जीने की आग।
कि कोई आने को है, अनुप्रिया, लेखालेखि, भुवनेश्वर, मूल्य- 200 रुपये
सत्ता तंत्र का सच
युवा लेखक रामकुमार सिंह का यह उपन्यास हमारे वर्तमान समय के विद्रूप का दिलचस्प तरीके से उद्घाटन करता है। हमारे समय में सियासत का ऐसा रूप प्रकट हुआ है, जो लोकतांत्रिक और जनोन्मुख काम की बजाय एक विशाल आपराधिक तंत्र का संचालक प्रतीत होती है। ऐसे में हैरत नहीं कि कोई सामान्य जन सियासी चक्कर में पड़ कर अपना वजूद खो देने को विवश हो जाता है। इस उपन्यास में एक मामूली इनसान असलम की कहानी है, जो संयोगवश सियासत के माहिर लोगों की चपेट में आकर जेड प्लस सुरक्षा का भोक्ता बन जाता है, लेकिन इस सुरक्षा की कीमत उसे अपनी आजादी खोकर चुकानी पड़ जाती है। इससे निजात पाने की कोशिश अंतत: उसे जहां ले जाती है, वह लेखक के शब्दों में 'आजाद भारत में आम आदमी से निर्वाचित हुए विधायक के रातोंरात गायब होने की अनहोनी घटना' थी।
जेड प्लस, राजकुमार सिंह, सार्थक (राजकमल प्रकाशन), नई दिल्ली, मूल्य- 125 रुपये