फोटो गैलरी

Hindi Newsदिल्ली का दर्द देश से कम दर्दनाक नहीं

दिल्ली का दर्द देश से कम दर्दनाक नहीं

दिल्ली में कुल 112 गांव बचे हैं। 2.5 प्रतिशत आबादी गांवों में है। यहां बिजली, सिंचाई के साधन, सड़क सब हैं, लेकिन मौसम की मार और सरकारी लालफीताशाही से ये भी नहीं बच पाए हैं। संसद से सिर्फ 30 किलोमीटर...

दिल्ली का दर्द देश से कम दर्दनाक नहीं
ऐप पर पढ़ें

दिल्ली में कुल 112 गांव बचे हैं। 2.5 प्रतिशत आबादी गांवों में है। यहां बिजली, सिंचाई के साधन, सड़क सब हैं, लेकिन मौसम की मार और सरकारी लालफीताशाही से ये भी नहीं बच पाए हैं। संसद से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर के गांवों का हाल ऐसा है तो सुदूर के क्षेत्रों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। पेश है ‘हिन्दुस्तान’ की पड़ताल में दिल्ली के किसानों का दर्द

आज उन किसानों की बात करते हैं,  जिनके जैसी सुविधाओं और संसाधन का सपना सरकारें दिखाती हैं। यानी, 24 घंटे बिजली, उर्वर जमीन, पर्याप्त पानी, माल बेचने के लिए एशिया की सबसे बड़ी मंडी आजादपुर कुल 10 किलोमीटर दूर। संसद से दूरी तो कुल 30 किलोमीटर दूर। अब इनके दुख गिनेंगे तो देश के किसी तबाह हिस्से के किसान से कहीं कम नहीं बैठेंगे। यहां से यह सीख भी ली जा सकती है कि अगर नीतियों और कार्यक्रमों को जमीन पर नहीं उतारा जा सकता तो सारे संसाधन बेमानी साबित होने लगते हैं। जैसा कि दिल्ली-हरियाणा की सीमा के गांव पल्ला की पड़ताल से पता चलता है।

दिल्ली की किसानी की कहानी दो किरदारों की जुबानी। एक वेद प्रकाश, उम्र 62 साल। गांव के सबसे बड़े काश्तकार, छह एकड़ जमीन के मालिक। दूसरे हाशिम, जो  50 हजार रुपये प्रति एकड़ के सालाना किराये ( यहां की बोली में उगाही)  पर खेती करते हैं। इस साल बेमौसम की बारिश से तबाह हुई खेती ने दोनों को एक बराबर ला खड़ा किया है।

गेहूं की बालियां काली हो गई गई हैं। वेद प्रकाश कहते हैं कि फसल खड़ी होती तो खेत काटने के हजार रुपये बीघा लगते, बालियां लेट गई हैं तो डेढ़ हजार रुपये बीघा खर्च आएगा। इस बार अनाज के साथ मिट्टी आएगी तो दाम दो सौ रुपये कुंतल और गिर जाएगा। यूं भी इस साल का मरियल अनाज न फूड कॉरपोरेशन ले रहा है, न बाजार बेहतर भाव देगा। आढ़ती के पास से 11 सौ रुपये कुंतल तक मिल जाए तो बहुत है।

हाशिम अपनी बढ़ी हुई विपत्ति की बात जोड़ते हैं। उन्होंने तो साहूकार से कर्ज लेकर एक लाख रुपये खेत मालिक को एडवांस दे रखे हैं। बीज, पानी, बिजली सब का खर्च 35 हजार रुपये और हो गया है। आठ साल से वह खेतीपाती  कर रहे हैं। उनका कहना है कि इतनी बरबादी की स्थिति कभी नहीं हुई। जो पैदावार है, उसके दाम का हाल यह है कि यहां खीरा पांच रुपये किलो और ककड़ी तीन रुपये किलो बेचनी पड़ती है। यही खुदरा बाजारों तक जाते-जाते 40 से 50 रुपये किलो तक हो जाती है। पालक के साथ तो और बुरा हुआ। इस बार पैदावार ज्यादा थी। मंडी में लेकर गए तो वहां से भगा दिया गया कि कोई ले नहीं रहा। कई किसानों ने राउंडअप नाम का रसायन डाल कर पूरे खेत का पालक जला दिया।

सरकारों ने घोषणा की थी कि किसानों को फसल बेचने का अधिकार होगा। वेद प्रकाश कहते हैं कि सारे आढ़तिये रिकार्ड में किसान बन गए हैं। किसान की हालत तो मजदूर से भी गई बीती है। बैंक लोन की बार-बार बात होती है। इतनी लिखा-पढ़ी है और किसान पहले से कर्जदार हैं, सो साहूकार ही एक सहारा है, जो दो प्रतिशत प्रतिमाह के ब्याज पर कर्ज देता है। दिल्ली की पिछली सरकार के जमाने से किसान का दर्जा गायब है,  इसलिए इन्हें ज्यादा बिल चुकाना पड़ता है।

राज्य सरकार ने 20 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने की बात कही है। यह राशि यूं तो देश के किसी राज्य में मिलने वाली राशि से अधिक है। किसान हैं कि उन्हें मुआवजे से ज्यादा एक बेहतर व्यवस्था चाहिए, जिससे उपज के दाम, बैंक से कर्ज और फसल को मंडियों में दलालों के चंगुल में फंसे बिना बेचने की सहूलियत मिल जाए तो ऐसी आंधी-बारिश से वे खुद लड़ लेंगे।

ताजा स्थिति
- बेमौसम बारिश के कारण गेहूं और सरसों की फसल को हुआ है सबसे ज्यादा नुकसान। आंधी-पानी से जमीन में गेहूं गिर गया। इस कारण भूसा भी खाने लायक नहीं।
- खराब मौसम की वजह से गेहूं की फसल पकी नहीं। गेहूं के दाने काले और पतले हो गए हैं। दानों का स्वाद भी कुछ कसैला-सा है। लिहाजा इनकी कीमत मिलना मुश्किल है।
- आंधी-पानी के कारण सरसों की फलियां भी गिर गईं। जहां पर फलियां बची हैं, वहां सरसों के दाने पूरी तरह से विकसित नहीं हुए।
- ओलावृष्टि के कारण गोभी जैसी सब्जियों की फसल भी खराब हुई है, जबकि गेंदे के फूल भी ठीक से नहीं पनप सके।
- जमीन पर गिरे हुए गेहूं की वजह से उन्हें काटने में दिक्कत हो रही है। मशीनों से कटाई तो संभव नहीं, हाथों से भी काटने में दोगुनी-चौगुनी मेहनत लग रही है।
- खेतों में जरूरत से ज्यादा नमी होने से खीरा, ककड़ी और भिंडी में बीमारियां लग रही। नरेला विधानसभा क्षेत्र के पल्ला गांव में लागत वसूल नहीं होने से किसान पालक के खेत को कीटनाशकों से नष्ट कर रहे हैं।

दुश्वारियां
1- फसलों की सिंचाई के लिए मुख्यत: भूमिगत जल और नहरों पर निर्भरता। भूमिगत जल स्तर गिरने से सिंचाई बड़ी समस्या बन गई है। ट्यूबवेल के कारण खेती की लागत बढ़ी है।
2- खेती की बढ़ती लागत के मुकाबले कृषि पैदावार की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई।
3- बैंकों से कर्ज मिलने में दिक्कत होती है। जरूरी दस्तावेजों को पेश नहीं कर सकने से किसान मजबूरी में साहूकारों से लेते हैं कर्ज।
4- नजफगढ़ के नजदीक बसे पपरावट जैसे गांव के ग्रामीणों की शिकायत है कि बरसात होने पर नहर का पानी किनारा तोड़ कर खेतों में घुस जाता है और फसल बरबाद हो जाती है।

दिल्ली:  किसान नहीं मानती सरकार

हरियाणा से ब्लैक में खरीदते हैं खाद
खाद-बीज की सब्सिडी जैसा कुछ दिल्ली में नहीं है,  इसलिए यहां के किसान पड़ोसी राज्य हरियाणा से ब्लैक में खाद खरीद कर ले आते हैं। इससे उनकी खेती की लागत बढ़ जाती है। यहां की आबादी में खेती पर जीवन-यापन करने वालों की संख्या बेहद कम है। इसके कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में किसानों को अलग से महत्व भी नहीं मिलता। किसान तो यहां तक शिकायत करते हैं कि शीला दीक्षित की पिछली सरकार ने तो दिल्ली में भी किसान हैं,  यह मानने से ही इनकार कर दिया था।

नहीं है अलग से कृषि विभाग
दिल्ली में अलग से कृषि विभाग नहीं है। विकास विभाग के अंतर्गत कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन और ग्रामीण विकास को शामिल किया जाता है। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने हाल ही में किसानों को ट्यूबवेल पर सब्सिडी और सस्ती बिजली देने की बात कही है। इससे यह माना जा रहा है कि दिल्ली सरकार अब फिर से किसानों को अलग पहचान देने जा रही है।

दिल्लीनामा
- 4.19 लाख लोग रहते हैं दिल्ली के गांवों में, कुल आबादी का यह है केवल 2.50 प्रतिशत
- 25 फीसदी हिस्सा ग्रामीण है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का, बाकी 75 फीसदी हिस्सा शहरी
- 1981 में गांवों की संख्या थी 214, वर्ष 2011 में घट कर केवल 112 गांव रह गए

- 35178  हेक्टेयर में खेती की जाती है। शहरीकरण से खेती का क्षेत्र लगातार कम हो रहा है
- 1483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 369.35 ग्रामीण व 1113.65 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शहरी

प्रमुख फसलें
- रबी: गेहूं, सरसों, प्याज और दड़ू (प्याज का बीज) और सब्जियां
- खरीफ: धान, ज्वार, बाजरा और सब्जियां

गेहूं की पैदावार की स्थिति
- सामान्य मौसम में एक एकड़ में पैदा होता है 25 से 30 कुंतल
- इस बार 05 कुंतल गेंहू की भी एक एकड़ में नहीं हुई पैदावार

- 04 हजार एकड़ क्षेत्र की खेती के नुकसान होने का अनुमान
- 50 फीसदी तक गेहूं की फसल को बेमौसम बारिश से हुआ है नुकसान

- पल्ला गांव का दौरा मैंने भी किया था। किसानों की क्षति हुई है। यह बेहद दुखद है। उनके नुकसान का आकलन किया जाना चाहिए। इसके लिए तहसीलदार और अधिकारियों को सर्वे करने को कहा गया है। मोदी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए कई उपाय किए हैं।
- उदित राज, सांसद, उत्तर पश्चिम दिल्ली

- बेमौसम बारिश के चलते दिल्ली के किसानों की हालत बेहद खराब हो गई है। उनके नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने पहले ही मुआवजे की घोषणा कर दी है। दिल्ली सरकार द्वारा की गई मुआवजे की घोषणा मूल समस्याओं की ओर से ध्यान भटकाने की कोशिश है।
-विजेन्द्र गुप्ता, नेता विधायक दल, भाजपा

- दिल्ली में किसानों को 100 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। गांव-गांव में बैठक कर किसानों के नुकसान का आकलन किया जाएगा और जमीन जोतने-बोने वाले को मुआवजा दिया जाएगा। हमारा मुख्य मकसद है किसानों के नुकसान की ज्यादा से ज्यादा भरपाई करना।
- शरद चौहान, विधायक नरेला (राजस्व मंत्री के संसदीय सचिव)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें