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असली बरबादी का तूफान तो अब आया

मौसम के बिगड़े मिजाज ने सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही तबाही नहीं मचाई। इसकी मार से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड-मध्य उत्तर प्रदेश के किसान भी बुरी तरह प्रभावित हुए। इस क्षेत्र में मौसम की...

असली बरबादी का तूफान तो अब आया
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 13 Apr 2015 12:19 PM
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मौसम के बिगड़े मिजाज ने सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही तबाही नहीं मचाई। इसकी मार से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड-मध्य उत्तर प्रदेश के किसान भी बुरी तरह प्रभावित हुए। इस क्षेत्र में मौसम की दोहरी मार पड़ी है। पहले समुद्री तूफान हुदहुद के कारण खरीफ की फसल बरबाद हुई तो हाल की बेमौसम की बारिश और ओलों ने रबी की फसल को नुकसान पहुंचाया। इससे तकरीबन 28 लाख किसान प्रभावित हुए हैं। इनमें से 82 फीसदी कर्ज के जाल में जकड़े हुए हैं। पेश है किसानों के दर्द के सफरनामे की अगली कड़ी


हम तबाह हो गए। बाप ने खेत में फांसी लगा ली। बहन की शादी टूट गई। मां को टीबी है। घर में फांके हैं। ये दर्द है 22 साल के दृगपाल का। बीते दिनों आए तूफान ने सब कुछ बरबाद कर दिया। खेत उजड़ गए। जिंदगी बिखर गई है। गांव खाली हो रहे हैं। बुंदेलखंड इलाके में हमीरपुर के गांव कमुआपुर की यह तस्वीर है। कमोबेश पूर्वी उत्तर प्रदेश का भी यही हाल है। बुंदेलखंड में तबाही का मंजर बहुत खौफनाक है। हर घर में मातम और हर घर में भूख है। दृगपाल के आंसू सूख चुके हैं। चेहरे पर मायूसी है। गला अंदर धंस रहा है। हड्डियां बदन से झांकने की कोशिश कर रही है। हमें देख कर उसे लगा कि शायद हम कोई मदद बांटने आए हैं। आसपास गांववालों का घेरा बन जाता है।

दृगपाल की बूढ़ी मां को टीबी है। इलाज पर हर महीने एक हजार खर्च होता है। सरकारी डाट को यहां कोई नहीं जानता। डाट में टीबी का मुफ्त इलाज होता है। दवा भी मुफ्त मिलती है, सिर्फ सरकारी विज्ञापनों में। टीवी गांव में है नही। अखबार यहां तक पहुंचता नहीं। राजाराम 14-15 मार्च की रात को आए तूफान से हुई बरबादी को सह नहीं सका। वह घर से गायब हो गया। एक दिन बाद खेत में पेड़ से लटकती लाश मिली। राजाराम चला गया। अब बेटा दृगपाल सरकारी मदद का इंतजार कर रहा है। तीन बेटियां है। एक बेटी की शादी की बात चल रही थी। अब टूट गई है। सरकारी मदद की आस भी टूट गई है। गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा है। हां इस सन्नाटे को चीरते हुए ट्रक हर 10 मिनट में यहां से गुजरते हैं। इन ट्रकों से बेतवा नदी से रेत का खनन हो रहा है।

गांव के प्रधान उमाशंकर प्रजापति एक आह छोड़ते हैं - ‘बस इन्हीं के मजे हैं। गांव में तो भुखमरी है। किसान मजदूरी  कर सकता है। मजदूरी ना हो तो खेत के भरोसे तो केवल मौत है। या फिर भूख है।’  गेहूं की फसल खड़ी तो है मगर उसमें दाने नहीं है। कोई मुफ्त में भी फसल काटने को तैयार नहीं है। पशुओं को खेत में रोकने के जतन अब कोई नहीं कर रहा। पशु चर रहे हैं। खलिहान खाली हैं। घर में मातम है। आंसू भी कितने आएंगे। कौन देख रहा है। कौन सुन रहा है। दृगपाल सुबकने लगता है। पास में ही खड़ा एक और किसान कहता है- ‘तूफान तो अब आया है। हम तो हर साल बरबादी देखते हैं। पिछले साल के मुआवजे के चेक अब मिले हैं। प्रधान उमाशंकर कहते हैं- मुआवजा तो खेत के मालिक को मिलेगा। किसान को नहीं। खेत किसानों को बंटाई पर देते हैं। फसल हो या ना हो। किसान ये दोहरी मार नहीं झेल पाता और मौत को गले लगा लेता है।

कोई नेता आया?  यह सवाल मानों और गहरे घाव कर गया.. एक किसान बोला- वोटन के टेम पर आत हैं। अब कोऊ ना आवेगो। काह करेगो ..? दृगपाल अब भी देख रहा है। उसकी शादी हो चुकी है। एक बच्चा भी है। मगर हम कोई मदद नहीं कर पा रहे थे। मलाल है हमें..। शायद इस व्यथा यात्रा से कोई जागे। काश यहां तक मदद पहुंचे। सरकारी मकड़जाल और आंकड़ों की बजाय कोई इनके घर जाकर देखे। हर किसी की आंख नम होगी। गांवों की तस्वीर वो नहीं, जो भाषणों में सुनाई देती है। गावों की तस्वीर किसान के घर में है। उनकी सिसकियों में है जो सुनाई नहीं देतीं।


गांवों से पलायन
- हमीरपुर ही नहीं उरई, महोबा, बांदा आदि इलाकों में गांवों से पलायन हो रहा है। किसान मजदूरी की तलाश में पूरे परिवार के साथ पलायन कर रहे हैं।
- हमीरपुर जिले के कई इलाकों में किसानों ने गांव में पशुओं को छोड़ दिया है। फसलें पशु चर रहे हैं। किसानों के मुताबिक हालात इतने खराब है कि फसल कटाई का ही खर्चा नहीं निकल सकता।
- अधिकांश गांवों में किसान बंटाई पर खेती करते हैं, अर्थात वह मजदूर की भूमिका में है। ऐसे में मुआवजे का असली लाभ भू-स्वामी के खाते में जा सकता है।
- मुआवजे का खेल पूरी तरह से लेखपालों पर निर्भर है। लेखपालों का आकलन ही किसानों को पारिवारिक-सामाजिक स्थिति को दिशा देगा।
- किसान क्रेडिट कार्ड पर किसानों ने ऋण तो ले लिया है,  लेकिन उसे चुकाना आसान नहीं होगा। कर्ज का ब्याज उन्हें परेशानी में डालेगा।


तीनों जोन की प्रमुख फसलें
रबी-  गेहूं, जौ, चना, मटर, मसूर, आलू, सरसों।

खरीफ-  धान, ज्वार, बाजरा, मूंग, उरद, मक्का, गन्ना तथा तिल।
गेहूं पैदावार की स्थिति-  कहीं प्रति हेक्टेयर10 से 14 कुंतल तो कहीं 25 से 28 कुंतल।
लागत-  प्रति हेक्टेयर 27 से 28 हजार रुपये।   

खेती से प्रति वर्ष औसत आय
- किसानों को आम तौर पर नुकसान ही होता है। चार से पांच हजार रुपये की औसत आय है इनकी।
- लगातार हो रहे नुकसान से हर कृषक परिवार के एक से दो सदस्य शहर में नौकरी या मजदूरी करते हैं।


मौतें
अपुष्ट खबरों के अनुसार क्षेत्र में लगभग 400 किसानों की मौत हुई है, जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 26 किसानों ने दम तोड़ा है। सरकार का दावा है कि ये मौतें दुर्घटनावश हुई हैं।

यूं टूटा कहर
बहुतायत में किसान प्रभावित

28 लाख किसान प्रभावित हुए हैं सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूर्वांचल, बुंदेलखंड और मध्य उत्तर प्रदेश में आई आंधी-पानी और ओलावृष्टि से।

कर्ज का मकड़जाल
82 फीसदी किसान किसी न किसी रूप में कर्ज से दबे हैं।
35 प्रतिशत सेठ-साहूकारों से कर्ज लेकर उनके चंगुल में फंसे हैं।

दलहन-तिलहन पर ज्यादा मार
- 67 फीसदी दलहनी फसलों को नुकसान पहुंचा है अब तक के आकलन के अनुसार पूर्वांचल, बुंदेलखंड और मध्य यूपी में, जबकि 42 प्रतिशत तिलहनी फसलें चौपट हुईं हैं।
- गेहूं की 35 प्रतिशत फसल आंधी-पानी और ओलावृष्टि में इन इलाकों में तबाह हुई है। 
- 50 फीसदी से अधिक दलहनी फसलें अकेले बुंदेलखंड क्षेत्र में हो गई हैं बरबाद।

ताजा स्थिति
- पूर्वांचल एवं मध्य यूपी में खरीफ के फसल के वक्त में हुदहुद तूफान ने तबाही मचाई। रबी में आंधी-पानी और ओलावृष्टि से किसानों का सब कुछ बरबाद हो गया।
- मौसम की मार के कारण गेहूं के दाने कहीं पतले तो कहीं काले पड़ गए हैं। इससे बाजार में सही मूल्य मिलना मुश्किल है। 
- सरकारी मदद के नाम पर बुंदेलखंड व मध्य यूपी में सरकार की तरफ से कुछ किसानों को नाम मात्र की आर्थिक सहायता, मसलन 10 से 12 हजार रुपये के चेक प्राप्त हुए हैं।
- पुराने मानक के हिसाब से 50 फीसदी से अधिक नुकसान पर ही आर्थिक सहायता का प्रावधान था। इसके बढ़ाए जाने के बाद से किसान बढ़ी हुई सहायता की बाट जोह रहे हैं।


इलाके की पांच मुख्य दुश्वारियां
1. सूखा और बाढ़ बार-बार:  कहीं सूखा तो कहीं बाढ़, साल दर साल आपदा का रूप लेती जा रही है। किसान दोनों से बेहाल।
2. खाद-बीज की किल्लत:  खाद-बीज की कमी हमेशा रहती है। ये समय से नहीं मिलते। नकली खाद और कीटनाशक की बिक्री धड़ल्ले से जारी है।
3.  बेहाल सिंचाई व्यवस्था:  नहरें कम हैं। जो हैं, उनमें पानी नहीं होता। बिजली संकट के कारण नलकूप भी नहीं चलते।
4. बढ़ी लागत, कीमत कम:  लगातार बढ़ती लागत के बीच किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा। जटिल सरकारी खरीद प्रक्रिया के कारण किसान औने-पौने दामों पर फसल बेचने को मजबूर।
5. बैंक नहीं देते कर्ज:  80 फीसदी से अधिक लघु-सीमांत किसान हैं। इनकी माली हालत देख बैंक कर्ज नहीं देते।




- पूर्वांचल में ऐसा पहली बार है कि किसान भी आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार के पास उनके आंसू पोंछने का वक्त नहीं। जब प्रधानमंत्री ने कदम उठाया, तब राहत के आसार बने। सरकार को दस हजार रुपये एकड़ से कम मुआवजा नहीं देना चाहिए।
योगी आदित्य नाथ, सांसद, गोरखपुर



- प्रदेश सरकार किसानों के हित के प्रति चिंतित है। हर किसान को राहत मिले, इसके लिए प्लॉटवार सर्वे कराया गया है। केंद्र की गाइडलाइन से आगे बढ़ते हुए प्रदेश सरकार ने किसानों को दी जाने वाली सहायता को दोगुना किया है। जल्द ही राहत राशि बांटी जाएगी।
नारद राय, खादी ग्रामोद्योग मंत्री, यूपी




- फसलों की बरबादी के आकलन में लगे लेखपाल शासन को गलत रिपोर्ट दे रहे हैं। 35 फीसदी नुकसान पर मुआवजा दिया जाना है, लेकिन रिपोर्ट में मात्र 20 से 30 फीसदी नुकसान दिखाया जा रहा है। गलत रिपोर्ट के मामले में व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा।
दीपक पटेल, बसपा विधायक, करछना



- नुकसान आंकने के लिए सर्वे चल रहा है। मंडल के चारो जिलों में मुआवजा बांटा जा रहा है। केंद्रीय टीम के साथ किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने की रणनीति बनी है। किसान की हरसंभव मदद की जाएगी। जरूरत पड़ी तो और मदद के लिए शासन को लिखेंगे।
कल्पना अवस्थी, कमिश्नर, बांदा

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