हर मुश्किल में हम आपके साथ
‘हिन्दुस्तान’ ने बेमौसम बारिश से किसानों पर टूटे कहर का जायजा लेने की कोशिश की तो दर्द का पूरा सैलाब उमड़ पड़ा। बिहार हो या झारखंड, यूपी हो या उत्तराखंड या फिर दिल्ली। सब जगह वही बेबसी का...
‘हिन्दुस्तान’ ने बेमौसम बारिश से किसानों पर टूटे कहर का जायजा लेने की कोशिश की तो दर्द का पूरा सैलाब उमड़ पड़ा। बिहार हो या झारखंड, यूपी हो या उत्तराखंड या फिर दिल्ली। सब जगह वही बेबसी का आलम। न खाने का इंतजाम और न जीने का ठौर। नौ दिन तक चले इस दर्द के सफरनामे को आज हम विराम दे रहे हैं। इस अंतिम कड़ी में पेश है किसानों की मुश्किलों पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से ‘हिन्दुस्तान’ के विशेष संवाददाता अरविंद सिंह की खास बातचीत।
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से रबी फसल का कितना नुकसान हुआ है। केंद्र ने प्रभावित किसानों की मदद के लिए क्या उपाय किए हैं?
- सभी प्रभावित राज्यों से फसलों के नुकसान से संबंधित आकलन रिपोर्ट नहीं आई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 85 लाख हेक्टेयर में रबी की फसल बरबाद हुई है। प्रभावित किसानों को त्वरित मदद देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेमौसम बारिश-ओलावृष्टि को राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा में शामिल करने की पहल की है। इसके तहत राज्य सरकारें राज्य राहत आपदा कोष (एसडीआरएफ) के बजट का 10 फीसदी तुरंत किसानों को आर्थिक सहायता के रूप में दे सकेंगी। इतना ही नहीं, राज्य सरकारें आकस्मिक फंड किसानों के लिए जारी कर सकती हैं। फिर भी धन राशि कम पड़ती है तो राज्य केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज कर अग्रिम कोष की मांग कर सकता है।
राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) के मापदंड में क्या बदलाव किए गए हैं?
- एनडीआरएफ के तहत प्रभावित किसानों को दी जाने वाली धनराशि में 50 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी गई है। साथ ही प्राकृतिक आपदा में 33 फीसदी फसल नष्ट होने पर किसान को राहत दी जाएगी। इसके पूर्व 50 फीसदी फसल बरबाद होने पर किसानों को राहत मिल पाती थी।
बारिश-ओलावृष्टि से फसल पैदावार में गिरावट आएगी। क्या इससे सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना पर असर पड़ेगा?
- इससे पांच फीसदी फसल कम होने की आशंका है। सरकार के पास अनाज का बफर स्टॉक है। प्राकृतिक आपदा का सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
क्या राज्यों के पास एसडीआरएफ मद में पर्याप्त धन है। यदि हां तो किसानों को राहत मिलने में क्या अड़चन है?
- केंद्र सरकार 2014-15 में एसडीआरफ मद में 5685.95 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है। राज्यों से अपील की गई है कि वे एसडीआरएफ मद से प्रभावित किसानों को मुआवजा बांटने में तेजी लाएं। साथ ही फसल नुकसान संबंधी आकलन को शीघ्र केंद्र के पास भेजें। इससे अंतर मंत्रालय दल प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर अपनी रिपोर्ट दे सकेंगे। 2015-16 के एसडीआरएफ मद में पहली किस्त के तहत राजस्थान को 413.50 करोड़ और जम्मू-कश्मीर को 1145.5 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश को जल्द ही राशि जारी कर दी जाएगी।
जलवायु परिवर्तन को देखते हुए सरकार के पास फसलों को बचाने की क्या योजना है? क्या इस दिशा में कोई शोध चल रहा है?
- देश के 100 जिले जलवायु पर्वितन की समस्या से जूझ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक परिषद बनाई है, जो राष्ट्रीय स्तर पर इससे निपटने के उपाय खोज रही है। राष्ट्रीय कृषि सतत मिशन इसका एक हिस्सा है। इसमें आधुनिक खेती, सिंचाई के लिए बेहतर प्रबंधन, सॉइल हेल्थ कार्ड, उन्नत बीज, मिनी सॉइल टेस्ट प्रयोगशालाएं आदि शामिल हैं। सॉइल हेल्थ कार्ड सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। इस योजना में 14 करोड़ किसानों को शामिल किया जाएगा।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना क्या है। इसे देश भर में कैसे लागू किया जाएगा?
- इसमें देश भर के कृषि क्षेत्र को शामिल करने की योजना है। चालू वित्तीय वर्ष में इस मद के लिए 5300 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। कृषि जलवायु स्थितियों व जल स्रोतों की उपलब्धता के आधार पर व्यापक जिला और राज्य सिंचाई योजना तैयार की जाएगी। पानी के बेहतर इस्तेमाल पर जोर होगा। हर खेत को पानी पहुंचाने के तहत जमीन की सिंचाई के बजाय फसलों की जड़ों तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
इस बार अधिक आलू पैदा होने के कारण किसान को उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। आलू सड़क पर फेंका जा रहा है। सरकार किसानों के लिए क्या कर रही है?
- कृषि मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल सहित सभी राज्यों को पत्र लिखा है। इसमें राज्यों को आलू, प्याज, टमाटर जैसी जल्द खराब होने वाली फसलों की खरीद करने के लिए कहा गया है। इससे बाजार में कृषि उपज की मूल्यों में गिरावट को रोका जा सकेगा। कृषि मंत्रालय ने मूल्य स्थिरीकरण कोष के लिए इस साल 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।
किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने के लिए सरकार की क्या योजना है?
- मैं किसानों को भरोसा दिलाता हूं कि हर मुश्किल में सरकार आपके साथ है। केंद्र सरकार किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए संगठित राष्ट्रीय कृषि मंडी (यूएनएएम) योजना लागू करने जा रही है। इसके तहत किसान उपज अपनी पंसदीदा स्थान पर बेच सकेंगे। इसमें केंद्र सरकार भी उनकी मदद करेगी। यह योजना राज्यों के भीतर और राज्यों के बीच बाजार के बिखराव को दूर करेगी। खरीदारों को राज्य में व्यापार करने के लिए केंद्र मल्टीपल लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त करेगा। इससे एक राज्य के खरीदार को दूसरे राज्यों के किसानों से जोड़ा जा सकेगा।
- 25 वर्षों में पहली बार इस साल हुई ऐसी वर्षा से फसलों को सबसे ज्यादा क्षति पहुंची है।
- 14 राज्यों में खड़ी फसल को नुकसान पहुंचा है बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से
- 90 प्रतिशत किसान ऐसे हैं, जिनकी मासिक औसत आय 3078 रुपये से कम
मौसम भरोसे खेती
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि कृषि क्षेत्र लम्बे वक्त से संकट में फंसा हुआ है। यह क्षेत्र अब भी पूरी तरह मौसम की मेहरबानी पर टिका हुआ है। इस बार की बेमौसमी बारिश ने इस क्षेत्र को गंभीर संकट में धकेल दिया है। दरअसल कृषि की प्राथमिक समस्या ढांचागत है। कृषि का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महज 14 प्रतिशत योगदान है, लेकिन 49 प्रतिशत लोगों को यह क्षेत्र रोजगार देता है। देश के लगभग 80 फीसदी किसान छोटे और मझौले हैं। इस नतीजा यह होता है कि उनकी उपज की लागत ज्यादा बैठती है। भारतीय कृषि की समस्या दीर्घावधि समाधान की मांग करती है।
- भारत में किसान
- 11.8 करोड़ कृषक 2011 की जनगणना में
- 48.1 करोड़ कामगारों में 24.6% किसान
- आंकड़ों की मानें तो भारत की आधी से ज्यादा जनसंख्या खेती पर निर्भर करती है।
- 1951 से 2011 तक देश में किसानों की संख्या 50 फीसदी तक कम हो गई है। हां, बीच के वर्षों में यह घटती-बढ़ती जरूर रही।
- 1951 से खेतिहर मजदूर की संख्या लगातार बढ़ी है। यह 19 फीसदी से बढ़ कर 2011 में 30 प्रतिशत हो गई है।
- 2001 में ग्रामीण क्षेत्र में कृषकों की संख्या 40 प्रतिशत थी। यह घट कर 2011 में 33 फीसदी पर आ गई है।
खुदकुशी
- 17 साल में 23 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
- अनुमान है कि इस साल फसल को पहुंचे नुकसान के कारण सदमे में 150 किसानों ने खुदकुशी कर ली।
- किसानों के पास कोई आर्थिक सुरक्षा तंत्र नहीं होता। इनमें आधे से ज्यादा कर्ज में डूब कर अवसाद में चले जाते हैं।
कम हुईं खेती से जुड़ीं महिलाएं
- लैंगिक आधार पर देखें तो महिला कृषकों की संख्या पुरुषों के मुकाबले तेजी से गिर रही है। 2001 में जहां खेती से 37 प्रतिशत महिलाएं जुड़ी हुई थीं, वहीं 2011 के जनसंख्या में इनकी तादाद आठ फीसदी घट कर 29 प्रतिशत रह गई है।
- धनी किसानों को मिलता है नीतियों का लाभ- 10 साल में कुछ खाद्यान्नों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 100 प्रतिशत तक बढ़ गया है, लेकिन इसका फायदा पूर्वी और मध्य भारत के कृषकों को नहीं मिला है। 2012 में हुए सर्वे के मुताबिक 62 प्रतिशत कृषक इस बारे में नहीं जानते हैं।
- पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़कर देश के अन्य भागों में स्थिति काफी खराब है। यहां किसानों को समय से पर्याप्त मूल्य नहीं मिलता है।
- स्टडी फॉर डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के सर्वे के निष्कर्ष से साफ है कि सरकार की कृषि नीतियों का फायदा पूरी तरह धनी किसानों को मिलता है। यह सर्वे 18 राज्यों के 137 जिलों के 11000 किसानों पर किया गया था।
- 45 दिन में हो बीमा का निपटारा
केंद्र सरकार ने बीमा कंपनियों को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में बरबाद हुई फसलों के बीमा दावे का निपटारा 45 दिन में करने का निर्देश दिया है। इससे किसानों को जल्द राहत पहुंचाई जा सकेगी, लेकिन फसल बीमा लागू करना अथवा नहीं करना पूरी तरह से राज्यों पर निर्भर करता है। पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों ने दो सालों से फसल बीमा को लागू नहीं किया है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में फसल बीमा लागू नहीं है। फसल बीमा के जटिल नियमों ने किसानों को इस योजना से दूर रखा है।
अजब है फसल बीमा के नियम
- कुछ राज्यों में प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, ओलावृ़ष्टि, तूफान, भू-स्खलन, सूखा आदि की स्थिति में अगर ब्लॉक स्तर पर असर होता है तो बीमा का क्लेम मिलता है। कई राज्य तालुका स्तर पर प्रभाव को देखते हुए बीमा क्लेम देते हैं। इसमें हजारों गांव शामिल होते हैं। ब्लॉक-तालुका के कुछ हिस्सों (सैकड़ों गांव) में प्राकृतिक आपदा आती है तो किसानों को फसल बीमा क्लेम नहीं दिया जाता है। यानी जिलों में बड़े सामूहिक रूप से फसलों के प्रभावित होने पर किसानों को फसल बीमा का लाभ मिल पाता है। यह पूरी तरह से राज्य सरकारें तय करती है कि कितनी फसलों के लिए बीमा अधिसूचना जारी करे। प्राकृ़तिक आपदा होने पर बीमा कंपनियां किसानों की पिछले दस साल की उपज व आय का औसत आकलन करती हैं। इसके आधार पर बीमा क्लेम तय किया जाता है। बीमा कंपनियां विभिन्न फसलों के मुताबिक किसानों से 1.5 से 3.5 फीसदी प्रीमियम वसूलती हैं। इसके बावजूद किसानों को पूरा क्लेम नहीं मिल पाता है। निजी क्षेत्र की कई बीमा कंपनियां किसानों से 10-20 फीसदी प्रीमियम वसूलती हैं।