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कश्मीर के इतिहास में

जाने-माने पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार उर्मिलेश की किताब ‘कश्मीर—विरासत और सियासत’ संभवत: हिंदी भाषा में लिखी गई पहली किताब है, जो सरहदी सूबे के आधुनिक राजनीतिक इतिहास के साथ...

कश्मीर के इतिहास में
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 19 Nov 2016 10:53 PM
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जाने-माने पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार उर्मिलेश की किताब ‘कश्मीर—विरासत और सियासत’ संभवत: हिंदी भाषा में लिखी गई पहली किताब है, जो सरहदी सूबे के आधुनिक राजनीतिक इतिहास के साथ न्याय करती है। ठोस तथ्यों की रोशनी में घटनाक्रमों, संगठनों, सरकारों और लोगों की भूमिका का मूल्यांकन करती है। उर्मिलेश ने अपनी मेहनत से उस राजनीतिक त्रासदी को बयान करने में सफलता हासिल की है, जो जम्मू व कश्मीर के कल से लेकर आज तक को जकड़े हुए है।

करीब 32 वर्ष की अपनी पत्रकारिता में उर्मिलेश कश्मीर को लगातार 16 साल कवर करते रहे। किताब में रिपोर्टर के तौर पर अपने अनुभवों का उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया है। उन्होंने उन घटनाओं का भी वर्णन किया है, जिनसे कश्मीर की स्वायत्तता उसके लोगों से छीनी गई, जिससे घाटी में अलगाव बढ़ा। खासतौर से कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री शेख मुहम्मद अब्दुल्ला की बर्खास्तगी (1953) पर उन्होंने खासा जोर दिया है। शेख की जीवनी ‘आतिशे-चिनार’ को उद्धृत करते हुए उर्मिलेश ने बताया है कि कैसे उनकी बर्खास्तगी-गिरफ्तारी से कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य हमेशा के लिए बदल गया! 

1987 के चुनाव में कांग्रेस व नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनवाने के मकसद से की गई धांधली ने घाटी के हजारों युवकों को हथियारबंद संघर्ष की ओर धकेल दिया। उर्मिलेश ने कश्मीर में पैदा हुए आतंकवाद के लिए जिन चार कारणों को चिह्नित किया है, वो इस प्रकार से हैं- 1953 से ही कश्मीर को लेकर केंद्र का पक्षपातपूर्ण रवैया, एक्सेसन के बाद कश्मीर को मिले संवैधानिक विशेषाधिकारों में क्रमश: कटौती, 1987 के चुनावों में हुई भयानक धांधली और शेख की मौत के बाद कश्मीर में किसी सर्वमान्य नेता का अभाव। पहली बार 2006 में प्रकाशित इस किताब में दस साल बाद दो नए अध्याय और जोड़े गए हैं, जिनसे ये किताब और भी प्रासंगिक बन जाती है। इन अध्यायों में लेखक ने उन चार बड़े मौकों का जिक्र किया है, जब कश्मीर संकट का हल हो सकता था। नया जोड़ा गया दूसरा अध्याय कश्मीर को लेकर हिंदू राष्ट्रवादियों के रवैये की पड़ताल करता है।

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