झारखंड की गंवई महिलाओं की कला विदेश में परचम लहरायेगी
झारखंड की सोहराय और कोहबर चित्रकारी कला अब विदेश में अपना रंग बिखेरेगी। प्राकृतिक एवं पशुपक्षियों के संरक्षण को महत्व देती इस कला को हजारीबाग की ग्रामीण महिलाओं ने जिंदा रखा है। जंगली जानवरों,...
झारखंड की सोहराय और कोहबर चित्रकारी कला अब विदेश में अपना रंग बिखेरेगी। प्राकृतिक एवं पशुपक्षियों के संरक्षण को महत्व देती इस कला को हजारीबाग की ग्रामीण महिलाओं ने जिंदा रखा है। जंगली जानवरों, बाग-बगीचों में फूल पत्तियों को देखकर महिलाएं मिट्टी और फूल पत्तियों से बनाये गये रंगों से कैनवास और घरों की दीवारों पर उकेरती हैं।
सोहराय और कोहबर कला की चित्रकारी न सिर्फ सौंदर्य प्रस्तुत करती है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। हजारीबाग के पुरातत्वविद बुलू इमाम के पुत्र जस्टिन इमाम और उनकी पुत्रवधु अलका इमाम ग्रामीण महिलाओं को प्रोत्साहित कर इस चित्रकला को फिर से देश दुनिया के फलक पर लाने में कामयाबी हासिल की है। 1991 में इन दोनों को मंच मिला। इसको पंख लगाया फ्रांस की मशहूर चित्रकार डायडी वॉलशावन ने। डायडी हर छह महीने पर हजारीबाग आती हैं। महिलाओं से मिलती हैं। उनकी पेंटिंग पेरिस ले जाती हैं। उन्हें आर्थिक मदद भी करती हैं।