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झारखंड की अदालतों में महिलाओं के एक लाख से अधिक मामले लंबित

झारखंड की अदालतों में महिला अत्याचार के एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें दहेज हत्या और प्रताड़ना के सबसे अधिक मामले हैं, जबकि बाल विवाह से संबंधित केवल पांच मामले ही हैं। महिलाओं के मामले की...

झारखंड की अदालतों में महिलाओं के एक लाख से अधिक मामले लंबित
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Apr 2017 10:08 PM
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झारखंड की अदालतों में महिला अत्याचार के एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें दहेज हत्या और प्रताड़ना के सबसे अधिक मामले हैं, जबकि बाल विवाह से संबंधित केवल पांच मामले ही हैं। महिलाओं के मामले की सुनवाई के लिए देश की दूसरी महिला विशेष अदालत की शुरुआत झारखंड में पांच जनवरी 2013 को हुई थी। रांची सिविल कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस एमवाई इकबाल ने इसका उद्घाटन किया था।

महिलाओं के मामले, खासकर दुष्कर्म से से संबंधित मामलों की सुनवाई इसमें होनी थी। लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। राज्य की अदालतों में महिलाओं से जुड़े एक लाख 13 हजार 910 मामले लंबित हैं। राज्य में कुल लंबित मामलों की संख्या तीन लाख 67 हजार 744 है। हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है। सभी प्रधान जिला जजों को इन मामलों का निष्पादन तेजी से करने को कहा है। राज्य की महिलाएं दुष्कर्म, यौन शोषण, घरेलू हिंसा और डायन-बिसाही के नाम पर मारी जा रही हैं, लेकिन दहेज की मांग को लेकर उनके साथ मारपीट और अन्य अत्याचार सबसे अधिक हो रहे हैं, लेकिन दहेज को लेकर महिलाएं सबसे अधिक प्रताड़ित हो रही हैं।

महिलाओं से संबंधित लंबित मामलों में 50 फीसदी दहेज प्रताड़ना को लेकर हैं। दहेज के बाद दुष्कर्म और यौन शोषण के मामले हैं। राज्य में बाल विवाह की घटनाएं अक्सर होती हैं। ग्रामीण इलाकों में समय-समय पर इस तरह के मामले उजागर होते हैं, लेकिन मामले दर्ज नहीं होते। राज्य की अदालतों में बाल विवाह के सिर्फ पांच मामले ही लंबित हैं। कानून का भी हो रहा दुरुपयोग

विधि विशेषज्ञों का मानना है कि दहेज प्रताड़ना कानून का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। अधिवक्ता राजेश शुक्ल का कहना है कि कई मामलों में ऐसे देखा गया है कि आपसी विवाद में दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए अदालतों में केस किया जा रहा है। ऐसे मामलों में घर के बुजुर्ग और बच्चों को भी प्रतिवादी बनाया जा रहा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई निर्देश आने के बाद अदालतें भी इस मामले पर गौर कर रही हैं और इसका दुरुपयोग रोकने का प्रयास किया जा रहा है। एमके प्रसाद का कहना है कि झारखंड हाईकोर्ट ने 2002 में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इसमें कहा गया है कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है। इस कारण सिर्फ प्राथमिकी दर्ज कर दिए जाने के बाद ही सभी की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। ऐसे मामले में जमानत देने में भी लचीला रवैया अपनाने को कहा गया है।

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