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झारखंड का सिद्धपीठ रजरप्पा: दस महाविद्या में एक रूप है मां छिन्नमस्तिका का

प्रकृति की गोद में बसा झारखंड का महान तीर्थ स्थल रजरप्पा एक जागृत सिद्धपीठ है। यह तंत्र साधना के लिए विख्यात है। यहां मां छिन्नमस्तिका (प्रचंड चंडिका) देवी की प्रतिमा प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को...

झारखंड का सिद्धपीठ रजरप्पा: दस महाविद्या में एक रूप है मां छिन्नमस्तिका का
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 30 Sep 2016 11:50 PM
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प्रकृति की गोद में बसा झारखंड का महान तीर्थ स्थल रजरप्पा एक जागृत सिद्धपीठ है। यह तंत्र साधना के लिए विख्यात है। यहां मां छिन्नमस्तिका (प्रचंड चंडिका) देवी की प्रतिमा प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को खींच लाती है और वात्सल्य रस का अमृत पान कराती है। यहां देवी दर्शन, पूजा-अर्चना और पर्यटक पर्यटन के लिए दूरदराज से आते हैं। मां छिन्नमिस्तका देवी के प्रादुर्भाव के संबंध में कहा जाता है कि महाशक्ति की दस महाविद्याएं क्रमश: काली, तारा , षोड्शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावति, बगलामुख, मांतंगी और कमला हैं।

क्या है दस महाविद्या का महत्व?

महाभागवत में कथा आती है कि राजा दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव को निमंत्रित नहीं किया। इसलिए अपमानित अनुभव कर शिव ने सती को यज्ञ में जाने से रोक दिया, लेकिन सती ने कहा कि मैं यज्ञ में अवश्य जाउंगी और वहां मैं अपने प्राणेश्वर के लिए यज्ञभाग प्राप्त करूंगी या यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी। यह कहते हुए सती के नेत्र लाल हो गए। देवी का रूप विकराल हो गया। इस भयानक रूप को देखकर शिव भाग चले। भागते हुए रुद्र को दसों दिशाओं में रोकने के लिए देवी ने अपनी अंगभूता दस देवियों को प्रकट किया। यही शक्तियां दस महाविद्याएं हैं। इनमें से पांचवी महाविद्या में मां छिन्नमस्तिका हैं।

पंडितों के अनुसार परिवर्तनशील जगत का अधिपति चेतन कबंध है। उसकी शक्ति मां छिन्नमस्ता हैं। विश्व में ह्रास व बृद्धि (अपचय व उपचय ) सदैव होता है। लेकिन ह्रास की मात्रा कम व वृद्धि की मात्रा अधिक होती है तो मां भुवनेश्वरी का प्राकट्य होता है। इसके विपरीत जब ह्रास अधिक और वृद्धि कम होती है तब छिन्नमस्ता का प्राधान्य होता है। छिन्नमस्ता भगवती छिन्न शीर्ष(कटा सिर) कर्तरी(कृपान) और खप्पर लिए हुए स्वयं दिगंबर रहती है। कटे हुए सिर में नागबद्धमणि विराज रहा है। सफेद खुले केशोंवाली नीलनयना और हृदय में उत्पल (कमल) की माला धारण किए हुए देवी रक्तासक्त मनोभाव के उपर विराजमान रहती है। जब-जब असुरों के आतंक से धरती त्राहि-त्राहि हुयी तब-तब इन विकट परिस्थितियों में देवी दुर्गा ने अवतार लेकर असुरों का बध किया। इसी प्रकार देवी दुर्गा ने छिन्नमस्ता के रूप में दानव निशंुभ का अंत कर मानवता का कल्याण किया। छिन्नमस्ता देवी के चरण में विपरीत रति में लिन काम व रति अर्थात काम व रति के आबद्ध की भांति रजरप्पा में दो नदियों का संगम स्थल है, जहां भैरवी नदी रति के रूप में व दामोदर नदी (देवनद) काम के रूप में जलप्रपात का दृश्य उत्पन्न करते मिलती हैं।

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