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नेपाल में शासन बदला, लेकिन मानसिकता नहीं

नेपाल में शासन बदला लेकिन शासकों की मानसिकता नहीं। अभी भी स्वाधीनता और समानता की लड़ाई हम लड़ रहे हैं। भारत हमेशा समानता की लड़ाई लड़ने वालों की मदद करता है। इस लड़ाई में भी हमें भारत से मदद की जरूरत है।...

नेपाल में शासन बदला, लेकिन मानसिकता नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 30 Nov 2016 06:55 PM
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नेपाल में शासन बदला लेकिन शासकों की मानसिकता नहीं। अभी भी स्वाधीनता और समानता की लड़ाई हम लड़ रहे हैं। भारत हमेशा समानता की लड़ाई लड़ने वालों की मदद करता है। इस लड़ाई में भी हमें भारत से मदद की जरूरत है।

नेपाल के सांसदों ने ये उद्गार बुधवार को व्यक्त किए। सभी सांसद ‘नेपाल और पटना की नवम्बर 1950 क्रांति विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में दूसरे दिन बोल रहे थे। कान्फ्रेंस का आयोजन बीपी कोईराला सेन्टर फॉर नेपाल स्टडीज के निदेशक नवल किशोर चौधरी ने किया था। कार्यक्रम का समापन नेपाल के पत्रकार सीके लाल के व्याख्यान से हुआ।

बुधवार को कार्यक्रम के तीसरे सत्र की शुरुआत करते हुए नेपाल के सांसद लक्ष्मण लाल कर्ण ने कहा कि नेपाल में कई भाषाएं हैं। सबको जोड़ने वाली भाषा हिन्दी है। लेकिन हिन्दी को दूसरी भाषा का दर्जा देने के लिए संघर्ष अब भी जारी है। इसी तरह नागरिकता के लिए भी वहां के लोग संघर्ष कर रहे हैं। वर्षों से रहने वालों को नेपाल की नागरिकता नहीं मिली है। लिहाजा वहां के विश्वविद्यालय उन्हें डिग्री भी नहीं देते हैं। इतना ही नहीं भारत की किसी लड़की की शादी नेपाल में होगी तो उसे प्रमुख पद नहीं मिल सकता है। हम पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में भारत की मदद बहुत सहायक होगी।

दिल्ली से ज्यादा पटना ने काठमांडू को पहचाना

नेपाल के एमपी अजय द्विवेदी ने कहा कि दिल्ली से ज्यादा पटना ने काठमांडू को पहचाना है। नेपाली जनता की मुक्ति की लड़ाई का केन्द्र पटना रहा है। समय के साथ संविधान भी बदलता है। नेपाल ने भी इसकी शुरुआत कर दी है। सांसद लाल बाबू गद्दी ने कहा कि नेपाल सरकार की मानसिकता नेपाल में संकट का बड़ा कारण है। संशोधन की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वहां के संविधान में बहुत कमजोरी है। कार्यक्रम को नेपाली कांग्रेस के सदस्य अजय चौरसिया, सांसद लाल बाबू रावत, जितेन्द्र स्वामी और पत्रकार चन्द्रकिशोर झा ने भी संबोधित किया।

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