पुराने मुद्दों के साथ मैदान में उतरेंगे उम्मीदवार
नई दिल्ली। कार्यालय संवाददाता। डूसू चुनाव में तमाम छात्र संगठन पुराने मुद्दों को दोहरा रहे हैं। पिछले कई चुनावों में मुफ्त मेट्रो पास, नए कॉलेज व हॉस्टल खोलने, यू-स्पेशल बसों की संख्या बढ़ाने...
नई दिल्ली। कार्यालय संवाददाता। डूसू चुनाव में तमाम छात्र संगठन पुराने मुद्दों को दोहरा रहे हैं। पिछले कई चुनावों में मुफ्त मेट्रो पास, नए कॉलेज व हॉस्टल खोलने, यू-स्पेशल बसों की संख्या बढ़ाने के वादे किए गए। लेकिन सत्ता में आने पर इन पर कायदे काम नहीं किया गया। सभी ने हर बार की तरह इस दफा भी इन मुद्दों को अपने एजेंडे में शामिल किया है। एफवाईयूपी और बीटेक की डिग्री को एआईसीटीई की मान्यता दिलाने का वादा छोड़ दें तो बाकी सभी पुराने हैं।
पिछले पांच चुनावों में पूर्वी कैंपस खोल जाने की मांग की जाती रही है। मगर डूसू ने इस पर कागजी तौर पर भी कोई काम नहीं किया। बहरहाल, 12 सितंबर को होने वाले चुनाव में एबीवीपी, एनएसयूआई और आइसा समेत एसएफआई ने हॉस्टल और कॉलेज को मुख्य मुद्दा बनाया है। इन सभी के बीच एबीवीपी डूसू के जरिये उपलब्धियां गिना छात्रों को रिझाने में लगा है। बता दें कि सत्र 2013-14 के लिए डूसू पैनल में एबीवीपी को तीन सीटें मिली थीं।
अध्यक्ष पद पर संगठन ने कब्जा किया था। डूसू अध्यक्ष अमन अवाना ने एक साल में छात्र हित में बेहतर करने का दावा किया। उन्होंने कहा कि डूसू की कई उपलब्धियां रहीं। एफवाईयूपी को रद्द कराना सबसे बड़ी उपलब्धि रही। नॉर्थ कैंपस में निजी कंपनी के रेस्तरां को बंद करा सरकारी कर्मचारियों द्वारा संचालित कैंटीन खुलवाई। जॉब फेयर से नौकरी दिलाई। पक्षियों के बचाव के लिए कैंपस व कॉलेजों में जागरुकता अभियान शुरू किया। वहीं एनएसयूआई ने कहा कि इन कामों पर एनएसयूआई पहले से काम करता रहा।
ये उपलब्धियां नहीं हैं। 'आइसा से नहीं कोई टक्कर': एबीवीपी के राष्ट्रीय मंत्री रोहित चहल ने कहा कि उनका मुकाबला एनएसयूआई से है। आइसा व अन्य वामपंथी संगठन भले ही एफवाईयूपी पर खुद को श्रेय देकर जीत का दावा ठोक रहे हों मगर एबीवीपी उन्हें मुकाबले से बाहर मानता है। बहरहाल, चुनाव नजदीक आते ही बयानबाजी भी तेज हो गई है। एबीवीपी ने आइसा पर हमला करते हुए कहा कि ये लोग राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होकर छात्रों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं।
उधर, आइसा के सन्नी ने कहा कि हम छत्र हित में लोकतांत्रिक तरीके से लड़ते हैं। एफवाईयूपी हमारे संघर्षों से रद्द हुआ। 17 साल से नहीं खुला कॉलेज: दिल्ली विश्वविद्यालय में 17 सालों से कोई नया कॉलेज नहीं खोला गया है। हर साल सभी छात्र संगठन इस मुद्दे पर छात्रों से वोट मांगते हैं मगर सत्ता में आने के बाद भी सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आते। हर बार की तरह इस दफा भी सभी ने इसे एजेंडे में शामिल किया है।
एनएसयूआई, एबीवीपी और आइसा समेत एसएफआई का कहना है कि कॉलेजों और हॉस्टल की संख्या बढ़ाने पर उनको जोर रहेगा। इसके अलावा यू-स्पेशल बसों की संख्या बढ़ाने और मुफ्त मेट्रो पास की व्यवस्था करने को भी इन्होंने प्राथमिकता में रखा है।