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बिना जूते के दौड़ी पिंकी, मण्डलीय रेस प्रतियोगिता में अव्वल

पीटी उषा से प्रेरित मोहननगर निवासी  पिंकी (9) दौड़ खेल में अपने परिवार, कोच व देश का सपना पूरा करना चाहती है। पिंकी तीसरी कक्षा से ही खेल में पहचान बनाने का सपना देख रही है। माता-पिता को अपने...

बिना जूते के दौड़ी पिंकी, मण्डलीय रेस प्रतियोगिता में अव्वल
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 28 Nov 2016 08:08 PM
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पीटी उषा से प्रेरित मोहननगर निवासी  पिंकी (9) दौड़ खेल में अपने परिवार, कोच व देश का सपना पूरा करना चाहती है। पिंकी तीसरी कक्षा से ही खेल में पहचान बनाने का सपना देख रही है। माता-पिता को अपने बच्चों से कोई मतलब नहीं होने के बाद भी वह उन पर किसी तरह की कोई रोक नहीं लगाते है। पिंकी प्राइमरी स्कूल करहड़ा में पांचवी कक्षा की छात्रा है।

हरसांव पुलिस लाइन में सोमवार को दो दिवसीय 32वीं मण्डलीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता में पिंकी बिना जूते के 400, 200 व 50 मीटर की दौड़ में बिना जूतों के दौड़ी और पहला स्थान प्राप्त किया। अपने लक्ष्य पर ध्यान देते हुए पिंकी ने अपने पैरों पर भी ध्यान नहीं दिया और दौड़ती रही। दौड़ते वक्त उसके नंगे पैर के निचे छोटे पत्थर व कांटे आए लेकिन वह रुकी नहीं। दौड़ प्रतियोगिता में पिंकी सभी छात्राओं के लिए एक मिसाल बन गई।

दौड़ के साथ योग में भी महारथ है पिंकी
तीसरी कक्षा से खेल में सपना देख रही पिंकी योगासन में भी आगे है। पिंकी ने 2015 में जिला स्तरीय क्रिडा प्रतियोगिता में 400, 200 व 50 मीटर रेस में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 2015 अगस्त में मेरठ मण्डल राज्य क्रिडा प्रतियोगिता में रेस में द्वितीय स्थान व योगा प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल कर अपने जिले का नाम रौशन किया था। पिंकी ने बताया कि वह स्कूल जाने से पहले वह रोज सुबह पांच बजे उठकर दौड़ व योग करती है।

सात भाई बहनों में सबसे छोटी है पिंकी
मोहननगर निवासी पिंकी सात भाई बहनों में सबसे छोड़ी है। बचपन से ही पिंकी को खेलकुद का बेहद शोक रहा। पिंकी के माता-पिता नोएडा की प्राइवेट कंपनी में कर्मचारी है। दोनों का वेतन मिलाकर के वह कुल नौ हजार रुपए कमाते है। पिंकी ने बताया कि दो दिन पहले पिंकी का एक जूते फट गए थे। घर में आर्थिक तंगी के कारण उसने अपने माता-पिता से जूते की मांग नहीं की थी। 

गुरु व माता-पिता है पिंकी के कोच
पिंकी के कोच राजकुमार ने बताया कि वह प्राइमरी स्कूल करहड़ा में 2011 में आए थे। जब स्कूल में खेल की कक्षाएं नहीं चलती थी। कोच राजकुमार सभी बच्चों को खाली मैदान में खेलते हुए देखते थे। उन्होंने स्कूल के सभी बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया था। पिंकी अन्य बच्चों के मुकाबले योगा में सबसे चुस्त व आगे रहती थी।

कोच ने पिंकी को उत्साह किया और उसे दौड़ के लिए प्रेरित किया। खेल निरीक्षक राजकुमार ने बताया कि पिंकी के माता-पिता को अपने बच्चों से कोई मतलब नहीं है। वह क्या पढ़ते है खेल के लिए कहा जाते है क्या प्राप्त करते है। उनकों कोई फर्क नहीं पढ़ता है। कोच ने बताया कि उसके मां-बाप को उसकी उपलब्धि के बारे में बताया जाता है। लेकिन उन्हें कोई खास खुशी नहीं होती है। न ही व उसे खेलने से रोकते है। पिंकी अपने कोच को अपना गुरु व माता-पिता मानती है। अपनी दिल की सभी बाते उनको ही बताती है। पिंकी की दो बड़ी बहन भी खेल में है। 

पैर में कांटा लगने के बाद भी दौड़ी पिंकी
प्रतियोगिता में 200 मीटर रेस में पिंकी के पैर में दौड़ते वक्त कांटा चुब गया था। कांटा चुबने के बाद भी वह नहीं रुकी दौड़ती रही। और प्रथम स्थान प्राप्त किया। 50 मीटर रेस में पिंकी के कांटा लगे पैर में पिट्टी बंधी हुई थी। इसके बावजूद भी वह दौड़ी और प्रथम आई। 
 

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