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Hindi Newsबेटे के कातिलों को सजा दिलाने के लिए 20 साल लड़ी बूढ़ी मां,मिला इंसाफ

बेटे के कातिलों को सजा दिलाने के लिए 20 साल लड़ी बूढ़ी मां,मिला इंसाफ

भोजपुर फर्जी मुठभेड़ कांड के पीड़ितों को 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद इंसाफ मिला। अपने बेटों को पुलिस के हाथों खोने के बाद चारों परिवार ने हिम्मत जुटाकर कातिलों को सजा दिलाने की कसम खाई थी। इसी मकसद...

बेटे के कातिलों को सजा दिलाने के लिए 20 साल लड़ी बूढ़ी मां,मिला इंसाफ
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Feb 2017 11:27 AM
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भोजपुर फर्जी मुठभेड़ कांड के पीड़ितों को 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद इंसाफ मिला। अपने बेटों को पुलिस के हाथों खोने के बाद चारों परिवार ने हिम्मत जुटाकर कातिलों को सजा दिलाने की कसम खाई थी। इसी मकसद से सभी परिवारों ने जमीन, गहने, मकान आदि बेचकर अदालत में इंसाफ की जंग शुरू की। हालांकि दो दशक तक चली इंसाफ की लड़ाई में तीन परिवारों में कई की मौत हो गई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

चार निर्दोषों की निर्मम हत्या से आसपास के गांवों में भी पुलिस के प्रति आक्रोश था। मुकदमे की पैरवी के दौरान आरोपियों ने कई बार उन्हें डराया धमकाया। यहां तक की मोटी रकम का लालच भी दिया, लेकिन एक भी परिवार नहीं झुका। मुकदमे की पैरवी के लिए किसी परिवार को अपना मकान गिरवी रखना पड़ा तो किसी को बेचना पड़ा।

अशोक के पिता किशन सिंह की वर्ष 2008 में मौत हो गई, जिसके बाद मां शीला को पैरवी करनी पड़ी, जलालुद्दीन के पिता मंसूर अली की भी वर्ष 2012 में मौत हो गई, जिसके बाद उसकी बूढ़ी मां और भाई शमसुद्दीन ने पैरोकारी की कमान संभाली। मृतक जसवीर की मां ब्रह्मकौर की भी पैरवी के दौरान तीन वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है, जिसके बाद उसके भाई वीर सिंह ने केस की पैरवी की।

मेरे बेटे की तरह आरोपी मारे जाते तो सुकून मिलता : शीला

इस पूरे मामले में सर्वाधिक पीड़ा 68 वर्षीय शीला पत्नी किशन सिंह ठाकुर को ङोलनी पड़ी। पहले ही बड़ी बेटी बबली के ससुराल के साथ चल रहे विवाद से पूरा परिवार परेशान चल रहा था। ऐसे में वर्ष 1996 में इकलौते पुत्र अशोक की निर्मम हत्या के बाद तो शीला और किशन के बुढ़ापे की लाठी ही टूट गई। केस की पैरवी के कारण काम-धाम भी छूट गया और परिवार को खाने के लाले पड़ गए। मुकदमे की पैरवी और ऊपर से बड़ी बेटी के केस के साथ दो छोटी बेटी पुष्पा और पूनम की शादी के लिए इकलौता मकान गिरवी रखना पड़ा। मुकदमे और गिरवी मकान को छुड़ाने के लिए परिवार ने मेरठ में पुश्तैनी नौ बीघा जमीन बेच दी।

गवाही देने को राजी किसान की हुई थी संदिग्ध मौत

धनतेरस की दोपहर हुई घटना के समय मौके पर पहुंची रोडवेज बस के चालक और अन्य सवारियों में कोतवाली क्षेत्र के एक गांव का किसान भी मौजूद था। बताया गया है कि उसने सीना ठोककर पुलिस के खिलाफ गवाही देने की बात कही थी। किंतु वर्ष 1997 की होली की सुबह ही ग्रामीणों को बिटौड़े में उसकी जली लाश मिली थी। इस मामले में पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई न करना भी पुलिस पर सवालिया निशान लगाने के लिए काफी था। ग्रामीणों के मुताबिक किसान की हत्या कर उसकी पहचान छिपाने के उद्देश्य से रात को बिटोड़े में डालकर उसमें आग लगा दी थी।

खंजरपुर निवासी चरनू के खेत में मारी गई थी गोलियां

मछरी गांव के जिस तिराहे की पुलिया के पास पुलिस ने मुठभेड़ दिखाई थी, अब वहां यात्री शेड बन चुका है। तिराहे पास के खेत मालिक के अनुसार चार नहीं बल्कि तीन युवकों को पुलिस जीप में लेकर आई थी। पुलिया के पास उन्हें उतारकर खेतों की ओर भागने को कहा था, जबकि चौथा युवक पहले ही घायल और बेहोश लग रहा था, जिसे पुलिसकर्मियों ने उठाकर पास के खेत में डाल दिया था। तीनों युवक खेतों में भागने की बजाए सड़क पर भोजपुर गांव की ओर भागने लगे तो पुलिस ने उन्हें खेतों में भागने की चेतावनी दी, जिसके बाद तीनों सड़क किनारे स्थित खंजरपुर निवासी चरनू के ईंख के खेत में घुस गए और इसके बाद गोलियों की तड़तड़ाहट से इलाका गूंज उठा था।

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