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दिवाली पर बिगड़ी दिल्ली की आबोहवा, कई इलाकों में प्रदूषण लेवल 20 गुना ज्यादा

दीपावली पर आतिशबाजी में संयम बरते जाने की केन्द्र और राज्य सरकार की सभी कोशिशें नाकाम हो गई हैं जिसका नतीजा यह रहा कि इस बार दीपावली की रात राजधानी दिल्ली की हवा में सल्फर डाईआक्साइड (एसओ 2) का स्तर...

दिवाली पर बिगड़ी दिल्ली की आबोहवा, कई इलाकों में प्रदूषण लेवल 20 गुना ज्यादा
एजेंसीThu, 12 Nov 2015 05:02 PM
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दीपावली पर आतिशबाजी में संयम बरते जाने की केन्द्र और राज्य सरकार की सभी कोशिशें नाकाम हो गई हैं जिसका नतीजा यह रहा कि इस बार दीपावली की रात राजधानी दिल्ली की हवा में सल्फर डाईआक्साइड (एसओ 2) का स्तर बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया।

दिल्ली के मंदिर मार्ग, आनंद विहार और सिविल लाइन्स जैसे इलाकों में तो एस ओ टू का स्तर 2 हजार माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच चुका था, जो तय सुरक्षा मानकों से 20 गुना ज्यादा है। वायु प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा हो गया कि डीपीसीसी की रियल टाइम एयर क्वॉलिटी की जानकारी देने वाली वेबसाइट ने रात बारह बजे के बाद काम करना ही बंद कर दिया।

दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर पर निगरानी रखने वाली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़ों के अनुसार रात नौ बजे के बाद जैसे ही पटाखे छोड़ने की गतिविधियों में तेजी आने लगी हवा में एस ओ टू का स्तर तेजी से बढ़ने लगा और रात के ग्यारह बजे तक यह मानक स्तर से दस गुना अधिक बढ़ चुका था।

दक्षिणी दिल्ली में 12 बजे रात को यह 1320 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर था जबकि अन्य जहरीली गैसों का स्तर भी 734 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच चुका था जो राष्ट्रीय सुरक्षा मानक स्तर से 12 गुना ज्यादा था ।

विषैली है सल्फर डाईऑक्साइड गैस
सल्फर डाईऑक्साइड एक ऐसी विषैली गैस है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकर होती है। इससे एल्जाइमर और आखों और फेफड़ों में खतरनाक संक्रमण जैसी शिकायत हो सकती है। अमूमन दिल्ली में एसओ टू का स्तर सुरक्षा मानक स्तर से अधिक नहीं होता लेकिन इस बार दीपावली के दिन यह शहर के ज्यादातर हिस्सों में रात के ग्यारह बजे ही दोगुने से ज्यादा 253 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच चुका था। पटाखे सल्फर समेत कई जहरीले तत्वों के मिश्रण से बनाए जाते हैं। इनमें सल्फर की मात्रा सबसे अधिक रहती है लिहाजा जितना ज्यादा पटाखे छोड़े जाते हैं, हवा में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर भी उतना ही बढ़ता जाता है।

कितना रहा ध्वनि प्रदूषण
पटाखों से सिर्फ हवा ही प्रदूषित नहीं होती बल्कि इससे ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है। ध्वनि प्रदूषण आंकने की केन्द्रीय पदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार दीपावली के दिन पटाखों के शोर से इस बार राजधानी में ध्वनि प्रदूषण 70 डेसिबल के सुरक्षित मानक स्तर से काफी ऊपर पहुंच गया था।
 
केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तहत काम करने वाले 'एसएएफएआर' के अनुसार दीपावली के एक दिन बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर और भी खराब दिखाई दे सकता है। पिछली दीपावली की अपेक्षा इस बार दीपावली में मौसम ज्यादा ठंडा रहने से प्रदूषण कण हवा की निचली परत पर ही टिके हुए हैं जिससे प्रदूषण और अधिक हो रहा है।

मेरठ
इसी प्रकार दिल्ली-एनसीआर से सटे मेरठ में भी दिवाली के दिन प्रदूषण कई गुना बढ़ गया। प्रदूषण विभाग के अनुसार इस साल दिवाली में ध्वनि प्रदूषण ने पिछले रिकार्ड तोड़ दिए। इस साल सामान्य से 20 फीसदी और पिछले साल के मुकाबले चार से पांच प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। हर जगह ध्वनि प्रदूषण 70 डीबी से ज्यादा आया है।

सामान्य से पांच गुना ज्यादा प्रदूषण
एक अनुमान के मुताबिक सामान्य दिनों के मुकाबले दिवाली के दिन पांच गुना ज्यादा प्रदूषण बढ़ जाता है। दिवाली की रात प्रदूषण का ग्राफ 1200 से 1500 माइक्रो ग्राम मीटर क्यूब तक पहुंच जाता है। दिवाली के अगले दिन करीब 11 सौ, दूसरे दिन 8 सौ और फिर 4-5 दिन के बाद प्रदूषण 284 से 425 माइक्रो ग्राम मीटर क्यूब पर वापस पहुंचता है। खास बात यह कि प्रधानमंत्री मोदी की महत्वकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान को जोर शोर से लागू करने के दावे के बावजूद लोगों ने दिवाली पर जमकर पटाखे छोड़े, जिसका असर अब सामने आ रहा है।

खुद भी जानिए हवा की गुणवत्ता
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में प्रत्येक वर्ष प्रदूषण जनित कारणों से करीब 6,20,000 लोग असमय काल के गाल समा जाते हैं( हालांकि, भारत में बहुत कम ही लोग इसकी भयावहता से परिचित हैं। इसलिए लोगों को जागरुक करने के मकसद से केंद्र सरकार ने हाल ही में इसे प्राथमिकता दी है और उन्हें यह बताना शुरू किया है कि वे जिस इलाके में निवास करते हैं, वहां की वायु गुणवत्ता कैसी है। इससे लोग खुद इस बारे में सजग हो सकते हैं और प्रदूषण को फैलने से रोकने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

इंडेक्स से जानिए वायु गुणवत्ता

केंद्र सरकार ने हाल ही में देश का पहला 'नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स' लॉन्च किया है। यह इंडेक्स लोगों को रोजाना तौर पर हवा में प्रदूषण के स्तर के बारे में बता रहा है। इससे लोग यह जान पायेंगे कि वे जिस इलाके में निवास करते हैं, वहां का वायु गुणवत्ता का स्तर क्या है।

दिल्ली की एक संस्था 'सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट' की अनुमिता रॉय चौधरी के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलहाल देश के करीब 247 शहरों में कुछ हद तक एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग मेकेनिजम है, जिनमें से कम से कम 16 के पास ऑनलाइन रीयल-टाइम मॉनीटरिंग की क्षमता मौजूद है। लेकिन इस लिहाज से इसे एक बेहतर कदम बताया जा रहा है, क्योंकि लोग इसकी गंभीरता को समझेंगे और अपने आसपास की रोजाना की वायु गुणवत्ता को आसानी से जान पायेंगे।

ये कण है खतरनाक

हवा में मौजूद पीएम 2.5 व्यास वाले कणों को बेहतर समझा जाता है और इससे छोटे आकार वाले कण स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। इसके अलावा वायु गुणवत्ता की माप अन्य खतरनाक प्रदूषकों- सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, शीशा, आर्सेनिक, निकेल, बेंजीन, अमोनिया, बेंजोपाइरिन, डीजल पार्टिकुलेट मैटर (डीपीएम) के आधार पर की जाती है।

क्या है पार्टिकुलेट मैटर

दरअसल, सूक्ष्म कण या पार्टिकुलेट मैटर वे जहरीले कण होते हैं, जिनका आकार इतना छोटा होता है कि वे सांस के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और खास तौर से फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

कैसे मापी जाती है वायु की गुणवत्ता

वायु प्रदूषण को उत्सजिर्त होने वाले पदार्थों के 'मास पर वॉल्युम' द्वारा सीधे मापा जा सकता है। इसमें ईंधन का उपयोग भी शामिल है। वायु प्रदूषण को वातावरण में उसकी एकाग्रता (कॉन्सेंट्रेशन) के माध्यम से भी मापा जा सकता है। 'क्लीन एयर वर्ल्ड डॉट ओआरजी' की रिपोर्ट के मुताबिक, एंबिएंट एयर मॉनीटरिंग डाटा (परिवेशी वायु निगरानी आंकड़ों) का इस्तेमाल वायु गुणवत्ता निर्धारण के लिए किया जाता है।

भारत में वायु प्रदूषण का भयावह स्तर

अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन की रिपोर्ट में हाल ही में बताया गया है कि दिल्ली ने वायु प्रदूषण के मामले में चीन की राजधानी बीजिंग को मात दे दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, हालिया एनवायरमेंट परफार्मेस इंडेक्स- 2014 (इपीआई) में 178 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां है।

'इंडिया एनवायरमेंट पोर्टल' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों (चीन का 118वां, ब्राजील का 77वां, रूस का 73वां और दक्षिण अफ्रीका का 72वां स्थान) में सबसे खस्ताहाल है। प्रदूषण के मामले में भारत के मुकाबले पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और चीन की स्थिति बेहतर है, जिनका इस इंडेक्स में स्थान क्रमश: 148वां, 139वां, 69वां और 118वां है।

इस इंडेक्स को नौ कारकों- स्वास्थ्य पर प्रभाव, वायु प्रदूषण, पेयजल एवं स्वच्छता, जल संसाधन, कृषि, मछली पालन, जंगल, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा के आधार पर तैयार किया गया है। इंडेक्स के अनुसार, दुनिया में पांच सबसे स्वच्छ देश हैं- स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और चेक गणराज्य। इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण की हालत सबसे बुरी है।

दरअसल, नासा के सैटेलाइट द्वारा एकत्र किये गये आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में पीएम-25 (पार्टीकुलेट मैटर-2.5 माइक्रोन से छोटे कण) की मात्र सबसे ज्यादा थी। लैंसेट ग्लोबल हेल्थ बर्डेन 2013 के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए छठा सबसे घातक कारण बन चुका है। साथ ही भारत में सांस संबंधी बीमारियों के कारण होनेवाली मौतों की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है।



सीपीसीबी ने पिछले साल 15-30 अक्टूबर के दौरान सात महानगरों दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, बेंगलूर, चेन्नई, हैदराबाद तथा कोलकाता के 35 स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी की। इसमें दीपावली के पूर्व, दौरान एवं बाद की अवधि को भी शामिल किया गया। प्रत्येक शहर के पांच-पांच स्थान शामिल किए गए। जिसमें औद्यौगिक, व्यावसायिक, आवासीय एवं शांत क्षेत्र शामिल थे। सर्वेक्षण का सबसे बड़ा चौंकाने वाला नतीजा यह निकला है कि रात में हर शहर के हर स्थान पर शोर का स्तर तय मानकों से ज्यादा है। जबकि दिन में कई बार यह तय मानकों के भीतर पाया गया।

रिपोर्ट के अनुसार यदि सभी क्षेत्रों का औसत निकालें तो शोर का स्तर 70-80 डेसीबल के बीच रहा। इसका मतलब यह है कि कानों में उतना ही शोर पहुंच रहा है जितना एक शक्तिशाली ट्रैक्टर के इंजन से होता है। यह शोर लोगों को न सिर्फ बहरेपन की ओर ले जा रहा है बल्कि उनमें अनिद्रा, तनाव, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का कारण भी बन रहा है।

 

दिल्ली में रातों की नींद छीन रहा है पटाखों का शोर
पटाखों का शोर हर साल दिल्ली समेत देश के सात महानगरों में रातों की नींद छीन रहा है। दीपावली के दौरान महानगरों में शोरगुल बढ़ रहा है। दिन के साथ ही लोगों का रातों का भी चैन छिन रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीबीसीबी) द्वारा देश के सात शहरों में किए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। आवासीय इलाकों, शांत क्षेत्रों में रात में बढ़ते शोर से लोगों का जीना दूभर हो गया है। बोर्ड ने अपने अध्ययन में सिफारिश की है कि भविष्य में आवासीय कालोनियों को इस प्रकार से निर्मित किया जाए जिससे घरों में आवाज कम पहुंचे।

दिल्ली में शांत जोन में मानक से दोगुना शोर
दिल्ली में जिन पांच स्थानों पर 16 दिनों तक शोरगुल की मॉनीटरिंग की गई, उनमें एक स्थान दिलशाद गार्डन स्थित मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान भी है। यह मानसिक रोग का अस्पताल है और यह शांत क्षेत्र में आता है। इसके 100 मीटर के दायरे में दिन में 50 और रात में 40 डीबी से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए। लेकिन यहां पर यह स्तर अधिकतम 105 और 83 डीबी तक पाया गया। 16 दिनों में दिन के समय छह बार शोरगुल सीमा से ज्यादा था। लेकिन रात में हमेशा तय सीमा से ज्यादा शोर होता है।

इसी प्रकार अर्जुन नगर में सीपीसीबी कार्यालय व्यावसायिक क्षेत्र में है। वहां दिन में 65 और रात में 55 डीबी से ज्यादा ध्वनि नहीं होनी चाहिए। लेकिन 15 और 11 रातों में वहां यह स्तर ज्यादा पाया गया। दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग शांत क्षेत्र के तहत आता है लेकिन वहां दो दिन और सभी रातों में शोर ज्यादा पाया गया। दिन में 105 और रात में 77 डीबी तक ध्वनि प्रदूषण रहा।

व्यावसायिक श्रेणी में आईटीओ पर दिन हो या रात हमेशा ध्वनि प्रदूषण सीमा से ज्याद मिला। वहां दिन में 105 तथा रात में 82 डीबी तक ध्वनि रिकार्ड की गई। जबकि नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दिन में अधिकतम 104 तथा रात में 76 डीबी ध्वनि प्रदूषण रहा। जबकि यह शांत क्षेत्र है। यह सीमा 50 और 40 डीबी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

लखनऊ में दिन से ज्यादा रात में शोर

लखनऊ के पांच स्थानों तालकटोरा, हजरतगंज, पीजीआई, इंदिरा नगर तथा गोमती नगर में यह मॉनीटरिंग की गई। सभी स्थानों पर दिन से ज्यादा रात में ध्वनि प्रदूषण की स्थिति ज्यादा खराब निकली। लखनऊ हालांकि दिल्ली जैसा महानगर नहीं है लेकिन ध्वनि प्रदूषण के मामले में वह भी दिल्ली की राह पर बढ़ रहा है। तालकटोरा औद्यौगिक क्षेत्र है और ध्वनि का मानक दिन में 75 और रात में 70 डीबी है। लेकिन वहां यह सीमा अधिकतम 104 डीबी तक दर्ज हुई है। दिन एवं रात दोनों समय हमेशा तय मानकों से ज्यादा शोर पाया गया।

लखनऊ की शान हजरतगंज की अगर बात करें तो यह व्यावसायिक क्षेत्र है जिसके लिए दिन में 65 और रात में 55 डीबी तक ध्वनि के मानक हैं। लेकिन यहां दिन में 99 और रात में 75 डीबी तक शोर होता मिला। निगरानी अवधि के दौरान 15 दिनों और 11 रातों में ज्यादा शोर दर्ज किया गया।

पीजीआई शैक्षणिक संस्थान होने के कारण शांत क्षेत्र केदायरे में आता है तथा दिन में 50 और रात में 40 डीबी से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए। लेकिन दिन में 106 तथा राहत में 81 डीबी तक शोर हुआ। दिन और रात हमेशा शोर का स्तर ज्यादा पाया गया। इंदिरा नगर आवासीय क्षेत्र है तथा ऐसे क्षेत्रों के लिए दिन की 55 और रात की 45 डीबी की सीमा है लेकिन यहां यह सीमा दिन में 103 तथा रात में 81 तक पाई गई। निगरानी के दौरान हमेशा यह स्तर ज्यादा रहा। इसी प्रकार शांत क्षेत्र गोमती नगर में भी दिन में 104 और रात में 74 डीबी तक शोर हुआ। जो तय मानकों से हमेशा ज्यादा था।

अन्य शहरों मुंबई, कोलकाता, बेंगलूर, हैदराबाद तथा चेन्नई के भी यही रुझान है। हैदराबाद में एक चिडि़याघर के निकट शोर का स्तर दिन रात ज्यादा निकला। जिससे चिडि़याघर के जानवर भी परेशान हैं। मुंबई में वासी अस्पताल के ईद-गिर्द शोर ज्यादा पाया गया। इन बड़े महानगरों में भी रात में शोर का स्तर मानकों से ज्यादा निकला।

वजह

सीपीसीबी विशेषज्ञों के अनुसार दीपावली के दौरान तो पटाखों का शोर बढ़ता ही है लेकिन उसके थोड़े दिन पहले और बाद तक त्यौहार की गतिविधियां जारी रहती हैं। वाहनों की आवाजाही बढ़ती है। स्पीकर ज्यादा बचते हैं। दूसरे, बिना दीपावली के भी महानगरों में शोर का स्तर बढ़ रहा है क्योंकि वाहन बढ़ रहे हैं, निर्माण की गतिविधियां बढ़ रही हैं।

सिफारिशें
सीपीसीबी ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि जब कालोनियां बनें तो उन्हें इस प्रकार डिजाइन किया जाए कि शोर घरों के भीतर कम से कम पहुंचे। सीपीसीबी ने घरों को साउंडप्रूफ बनाने की बात को नहीं कहीं है लेकिन ईशारा यही है कि भविष्य में ऐसा किए बगैर काम नहीं चलने वाला। दूसरे, आवासीय कालोनियों में व्यावसायिक गतिविधियों को रोकने तथा ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की सिफारिश भी की है। साथ ही एक व्यापक जागरुकता अभियान छेड़ने की बात कही है।

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