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चमत्कारः बिना पेड़-पौधे उगाए रसोई घर में पाएं फल-सब्जी

फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जिससे रसोई घर में ही कुछ दिनों के अंदर मनपसंद फल और सब्जियां उगायी जा सकेंगी। तकनीकी अनुसंधान केन्द्र वीटीटी के वैज्ञानिक डॉ लॉरी रायटर ने...

चमत्कारः बिना पेड़-पौधे उगाए रसोई घर में पाएं फल-सब्जी
एजेंसीThu, 27 Oct 2016 08:40 PM
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फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जिससे रसोई घर में ही कुछ दिनों के अंदर मनपसंद फल और सब्जियां उगायी जा सकेंगी। तकनीकी अनुसंधान केन्द्र वीटीटी के वैज्ञानिक डॉ लॉरी रायटर ने फिनलैंड के ईस्पू से फोन पर खास बातचीत में बताया कि उनकी टीम ने “सेलपौड” उपकरण का आविष्कार किया है जिससे रसोई घर के टेबल पर रखकर सात दिनों के अंदर मनचाही सब्जी अथवा फल उगाया जा सकेगा। इसके थ्रीडी प्रिंटेड प्रोटोटाइप से बेरी की कई किस्में उगाई जा रही हैं।

तीस वर्षीय युवा वैज्ञानिक ने कहा कि सेलपौड से एक सप्ताह में दो सौ से चार सौ ग्राम बेरियां उगायी जा रही हैं। हमारी कोशिश है कि इस नायाब एवं उपयोगी आविष्कार से रोमांच भरे अनुभव का दायरा बढ़े और भविष्य में हम प्रतिदिन इससे बनाए गए स्वास्थ्यवर्धक फलों और सब्जियों का आनंद उठाएं।

डॉ रायटर ने कहा कि प्रयोगशाला में बड़े बायोरिएक्टर में उगाए जाने वाले प्लाट सेल कल्चर्स का उपयोग दवाएं और कॉस्मेटिक्स बनाने में किया जाता है लेकिन सेलपौड का मकसद घर में प्लांट सेल विकसित कर खाद्य पदार्थ बनाना है। यह बेहद उपयोगी और सामयिक अविष्कार है। इसमें विशेष रूप से विकसित पौधों की कोशिकाओं से फल अथवा सब्जी प्राप्त की जा सकेगी। आने वाले दिनों में विश्व के किसी कोने में बैठा व्यक्ति अपने पसंद का खाद्य पदार्थ पैदा कर सकता है और वह भी अपने रसोई घर में। उन्होंने कहा कि शहरीकरण और कृषि की वजह से पर्यावरण पर पड़ रहे विपरीत प्रभाव के कारण आधुनिक कृषि जैव प्रौद्योगिकी के मार्ग को प्रशस्त करने की आवश्यकता है और सेलपौड इस कड़ी में पहला कदम है।

इस साल के अंत तक “प्रोटीन प्रोडक्शन इन प्लांट सेल कल्चर्स” पर डॉक्टरेट की उपाधि के लिए शोध पत्र जमा करने की तैयारी में लगे डॉ रायटर ने कहा कि सेलपौड का आविष्कार नई तकनीक के आधार पर किया गया। लैंप के डिजायन वाला यह उपकरण इनक्यूबेटर की तरह है जिसमें ‘अनडिफरशिएटेड प्लांट सेल्स’ कुछ दिनों में बढ़ने लगते हैं। कुछ दिनों में कोशिकाओं के आकार-प्रकार और रंग रूप में परिवर्तन आने लगता है और सात दिनों के अंदर कोई सब्जी या फल के रूप में जो भी आपकी प्लेट में आएगा उसे देखकर आप रोमांचित हो जाएंगे।

डॉ लॉरी रायटर ने बताया कि इस तरह के उत्पादन में केवल उपयोगी हिस्सों का ही उत्पादन किया जा सकेगा यानी पेड़-पौधे अथवा झाड़ियां उगाए बिना ही सब्जी और फलों का उत्पादन किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पेड़ों पर लटकने वाले सेब, छोटे पौधों पर झूमने वाले बैंगन, लतरों पर लोटने वाले टमाटर और बेलों पर लटके अंगूर के गुच्छों को खास रूप में अपनी रसोई में बिना इनके अन्य हिस्सों के ही उगाया जा सकेगा और उनका सेवन किया जा सकेगा।
पौधों की कोशिकाओं में ऐसी क्षमता होगी जिससे सब्जियां और फल प्राकृतिक गुणों से भरपूर होंगे। उन्होंने कहा कि उनमें सभी पोषक तत्व जैसे फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सिडेंट एवं यौगिक पदार्थ मौजूद होंगे। पारम्परिक खेती और बागवानी के बिना ही कई तरह के फलों और सब्जियों को अपने डाइनिंग टेबल पर लाया जा सकेगा। आने वाले दिनों में आवश्यकता और उपयोगिता के आधार पर कोशिकाएं विकसित की जाएंगी। हमारे वैज्ञानिक लगातार इस कोशिश में लगे हुए हैं कि ऐसे उत्पादों के पोषक तत्वों को जरूरत के अनुसार विकसित किया जा सके।

पांच सदस्यीय अनुसंधानकर्ताओं की टीम के महत्वपूर्ण सदस्य डॉ रायटर ने बताया कि फिलहाल राजधानी हेलसिंकी की सीमा से लगे ईस्पू जिले के ओतानियमी में सेलपौड में बेरी की कई किस्में विकसित की जा रही हैं। बेरियों का रंग-रूप पेड़ों पर लगने वाली बेरियों से एकदम अलग हैं लेकिन उनमें सभी निहित शक्तियां और यौगिक तत्व मौजूद हैं। सेलपौड से प्लेट में आने वाली बेरियां किसी दलिया अथवा नाश्ते के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य अनाज की तरह होती हैं। पेड़ों पर लगने वाला फल जिस रंग एवं आकार का होगा सेल पौड का फल नाश्ते की प्लेट में भिन्न रंग एवं फैले हुए किसी खाद्य पदार्थ के रूप में होगा लेकिन वह सभी प्राकृतक गुणों से भरपूर होगा।
 
डॉ रायटर ने कहा कि उनका प्रयास है कि यह उपकरण बाजार में आए और इसके लिए इससे सहमत कुछ लोगों और कुछ उपभोगताओं के आमंत्रित किया है ताकि इस पर और चर्चा की जा सके एवं उनकी राय जानी जाए। उनकी रुचि और राय से सेलपौड और उसके उत्पादों में बेहतर प्रयोग किया जा सकेगा। फिलहाल बेरी की गुणवत्ता भी कसौटी पर कसी जा रही है। उन्होंने कहा कि शुरुआती स्तर पर बेरी के स्वाद में मामूली अंतर पाया गया लेकिन हमारा ध्यान स्वाद पर नहीं उसकी गुणवत्ता पर केंद्रित है। हमारा उद्देश्य सेल्स कल्चर में हाई वैल्यू बायोमौलिक्यूल प्राप्त करना है।

यह पूछने पर कि क्या भविष्य में सेलपौड में गेहूं ,चावल ,दाल आदि बड़ी फसलों को उगाने की कोई योजना है, डॉ रायटर ने कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है। चूंकि ऐसी फसलों की खेती कम लागत पर और आसानी से की जा सकती है, इसलिए हमने इस तरफ सोचा नहीं। कीमती और आसानी से नहीं प्राप्त होने वाले फल और सब्जियों को अगर प्राथमिकता दी जाए तो बेहतर है। अपने घर के ताजा फल का क्या मुकाबला। इस सेलपौड की कीमत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कॉफी मशीन अथवा रसोई घर में प्रयोग में आने वाले किसी भी उपकरण के बराबर इसकी कीमत रखी जाएगी ताकि इस तक लोगों की पहुंच आसान हो। उन्होंने कुछ साल के अंदर इसके बाजार में आने का अनुमान जताया है।

 

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