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#MotherTeresa : क्या आप 'टेरेसा' की इन बातों से हैं रू-ब-रू

आज गरीबों की मां मदर टेरेसा को वेटिकन सिटी में संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। भारत का एक प्रतिनिधिमंडल भी इस कार्यक्रम में शामिल होने वहां पहुंच रहा है। कार्यक्रम तो वेटिकन सिटी में है लेकिन जश्न में...

#MotherTeresa : क्या आप 'टेरेसा' की इन बातों से हैं रू-ब-रू
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 04 Sep 2016 11:48 AM
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आज गरीबों की मां मदर टेरेसा को वेटिकन सिटी में संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। भारत का एक प्रतिनिधिमंडल भी इस कार्यक्रम में शामिल होने वहां पहुंच रहा है। कार्यक्रम तो वेटिकन सिटी में है लेकिन जश्न में हर शहर डूबा है। कोलकाता दिल्ली और कई मिशनरीज में मदर को संत बनाने का जश्न मनाया जा रहा है। साल 1910 में जन्मी मदर टेरेसा ने साल 1997 में कोलकाता में अंतिम सांस लीं। 

आज मदर बन जाएंगी संत, चारों ओर जश्न का माहौल

लंबे इंतजार के बाद आखिरकार मदर को ये उपाधि दी जा रही है। तमाम विवाद और आलोचनाएं झेलने के बाद भी मदर ने अपनी कार्यविधि नहीं रोकी। यही एक खास बात थी जो उन्हें इतनी आगे लेकर आए और इंसानों से परे रख पाई। मदर और उनके काम के बारे में हर किसी को पता है लेकिन कुछ ऐसी खास बातें हैं जो हम आपको आज बताने जा रहे हैं।

आईए जानते हैं मदर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

-मदर को कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। साल 1964 में भारत दौरे के दौरान पोप पॉल पंचम ने अपनी गाड़ी उन्हें भेंट की थी, लेकिन मदर टेरेसा अपने जीवन को पूरी तरह से जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर चुकी थीं इसलिए उन्होंने उस गाड़ी को बेच दिया और उन पैसों को गरीबों के काम में लगा दिया। 

-उन्हें जब भी किसी पोप से य़ा बड़ी हस्ती से उपहार या भेंट के तौर पर कुछ मिलता था वे उसे अपने लिए नहीं, बल्कि गरीब और जरूरतमंदों के काम के लिए इस्तेमाल करती थीं। 

-बचपन से ही गरीबों की सेवा में खुद को लुटा देने वाली मदर ने 18 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था और डुबलिन में नन के तौर पर काम शुरू कर दिया था। 

-क्या आपको पता है सेवा के साथ-साथ मदर कैलकाटा में सेंट मेरी हाई स्कूल में इतिहास और भूगोल की शिक्षा भी देती थीं। 15 साल तक स्कूल में पढ़ाने के बाद उन्हें लगा कि उन्हें अपना पूरा जीवन और समय गरीबों के लिए देना चाहिए। उनका निर्मल हृदय आस-पास की गरीबी देखकर पिघलता था। 

- एक बार घर से निकलने के बाद वे घर की ओर कभी वापस नहीं गईं। सड़कों में अस्पतालों में गरीबों की सेवा में जुट गईं। उन्होंने भारत की नागरिकता भी ले ली थी। जिसके बाद ये आराम से कहीं भी किसी भी शहर में आ सकती थीं। 

-उन्हें कई बार ये एहसास होता था कि क्राइस्ट ने उन्हें जरूरतमंदों की सेवा के लिए धरती पर भेजा है। जब वे हिमालय की ओर जा रही थीं तब उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें अपना पूरा जीवन गरीबों के लिए समर्पित कर देना चाहिए। 

-पोप फ्रांसिस उन्हें एक औरत के तौर पर अपना आदर्श समझते थे। मदर छोटी सी उम्र से ही इतने अच्छे काम में लग गईं थीं। पोर चर्च फॉर द पोर।

-साल 1982 में जब वें लेबनान और बेरूत गुप्त रूप से चली गईं ताकि वे यहां के बच्चों की सेवा कर सकें। ये हिस्सा मुस्लिम समुदाय ने अपने कब्जे में कर रखा था। 

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-साल 1950 में मदर ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी का आगाज किया। आज मिशनरीज ऑफ चैरिटी 133 देशों में है और 5 हजार से ज्यादा महिला पुरुष इसकी सेवा में कार्यरत हैं। 

- उन्हें इस दौरान कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलिया के कुछ लेखक और फेमिनिस्ट ने उनकी घोर आलोचनाएं की। 

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