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इलाके की लड़कियों के लिए सैंटा क्लॉज से कम नहीं वीरेंद्र सिंह सैम

वीरेंद्र सिंह सैम उर्फ अंकल सैम ने यूरोप के देशों में 40 साल तक नौकरी की। विदेशों में उन्हें और उनकी दो बेटियों को भारतीयों के बारे में काफी कुछ सुनने को मिलता था। उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी जिससे...

इलाके की लड़कियों के लिए सैंटा क्लॉज से कम नहीं वीरेंद्र सिंह सैम
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 24 Dec 2016 01:23 PM
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वीरेंद्र सिंह सैम उर्फ अंकल सैम ने यूरोप के देशों में 40 साल तक नौकरी की। विदेशों में उन्हें और उनकी दो बेटियों को भारतीयों के बारे में काफी कुछ सुनने को मिलता था। उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी जिससे समाज को विकास की राह दिखाई जा सके। अपनी बेटियों से किए गए वायदे को पूरा करते हुए वह अपने गांव लौटे और इलाके की बेटियों को स्वाबलंबी बनाने की शुरुआत की। वीरेंद्र सिंह सैम बुलंदशहर से 55 किमी दूर अनूपशहर में परदादा-परदादी एजुकेशन सोसाइटी चला रहे हैं। उन्होंने इस स्कूल की स्थापना सन 2000 में की थी। अब इस स्कूल में 1400 छात्राएं और 55 टीचर हैं।

पढ़ाई के बाद जॉब की गारंटी

अंकल सैम ने जब यह स्कूल खोला तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बेटियों को स्कूल तक लाने की थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लोगों के घर-घर जाकर उन्हें समझाया। उन्होंने बेटियों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने और अच्छी जॉब दिलवाने का वायदा किया। अंकल सैम कहते हैं कि शुरुआत में केवल 44 बच्चियों ने स्कूल में आना शुरू किया। सभी को उन्होंने पैकेज भी दिया जिसमें साइकिल, स्कूल बुक्स, बैग, जूते और 2 जोड़े ड्रेस शामिल थी। लेकिन आठ दिन में ही उन्होने स्कूल आना बंद कर दिया। परिवार के मर्द लोगों ने स्कूल से मिले पैकेज को बेच दिया और बिक्री से मिले पैसे की शराब पी ली। इसके बाद उनके स्कूल में केवल 13 बच्चियां ही रैगुलर आ सकी।

बेटियों को मिलती है फ्री एजुकेशन

परदादा-परदादी स्कूल के जरिए उन्होंने इलाके की बेटियों को मुफ्त शिक्षा के साथ किताबें, ड्रेस, साइकिल, जूतों का मुफ्त पैकेज देना शुरू किया। इतना ही नहीं, स्कूल में पढ़ने वाली बेटियों के परिवार की महिलाओं के लिए रोजगार की व्यवस्था भी की, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति बदली जा सके। शुरुआत में सैम को बहुत परेशानी उठानी पड़ी, लोगों ने उनका काफी विरोध किया। उन्हें जान से मारने की कोशिश भी की गई, लेकिन वह बच गए।

इस मॉडल पर चलता है स्कूल

हर रोज की हाजिरी के साथ जमा होने वाला 10 रुपए का वजीफा स्कूली शिक्षा पूरी करके निकलने वाली बेटी के लिए रोजगार, हायर एजूकेशन या फिर शादी का विकल्प खोलता है। आज इस स्कूल की 200 से ज्यादा छात्राएं देश के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में हायर एजुकेशन ले रही हैं। कुछ ऐसी भी स्टूडेंट्स हैं जिन्हें अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़ने का मौका मिला है। हायर ऐजुकेशन के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने वाली इस स्कूल की बेटियों की संख्या भी सौ से ज्यादा है।

स्‍कूल में मिलता है खाना

अंकल सैम के इस स्कूल में आज 14 सौ बेटियां पढ़ती है। सर्दियों में आठ और गर्मियों में साढ़े नौ घंटे चलने वाले इस अनोखे स्कूल में उन्हें हर रोज ब्रेकफास्ट, लंच और आफ्टरनून स्नेक्स दिया जाता है। स्कूल ऐसी छात्राओं के घर शौचालय भी बनवाता है, जो अपने क्लास में शीर्ष तीन में स्थान बनाती हैं। पिछले 6 साल में इस स्कूल ने सैकड़ों लड़कियों की पढ़ाई का खर्च उठाया और अब तक लगभग 90 शौचालय बनवाए हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=lkKF0fLcrhg

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