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ट्रिपल तलाक: बराबरी के हक़ के लिए लड़ रहीं हैं शायरा और आफरीन

ट्रिपल तलाक़ पर बहस जारी! इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरूवार को मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के साथ क्रूरता करार दे दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी प्रथा

लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Dec 2016 11:01 AM

ट्रिपल तलाक़ पर बहस जारी!

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरूवार को मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के साथ क्रूरता करार दे दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी प्रथाएं अब समाज और देशहित में नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद आज Livehindustan.com आपको तीन तलाक की शिकार ऐसी दो औरतों की कहानी सुना रहा है जिन्होंने हार नहीं मानी। उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो और जोधपुर की आफरीन रहमान आज सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक के खिलाफ बराबरी की जंग लड़ रही हैं। इन दोनों से पतियों ने एक चिट्ठी भेजकर शादी का रिश्ता ख़त्म कर लिया था। 

क्या है शायरा की कहानी
उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वालीं शायरा बानो तीन तलाक, बहु-विवाह और निकाह-हलाला पर पाबंदी की मांग को लेकर फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं थीं। शायरा का कहना है कि उन्हें अपने शौहर रिजवान के पास लौटने में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन वह नहीं चाहती कि ऐसा किसी और महिला के साथ हो।

शायरा समाजशास्त्र में परास्नातक हैं, साल 2001 में निकाह के बाद दहेज को लेकर उन्हें मानसिक प्रताड़ना के साथ यातनाएं मिलीं। बेटी के जन्म के बाद ससुरालवालों का रुख और कठोर हो गया। शायरा बानो को रिजवान ने बाद में मायके भिजवा दिया। हद तो तब हो गई जब 10 अक्तूबर 2015 को डाकिया आया और तलाकनामा थमा गया। वह चिट्ठी लेकर फौरन मौलवी के पास पहुंचीं, जिन्होंने भी तलाक की पुष्टि कर दी। रिजवान ने दूसरा निकाह भी रचा लिया।

अगली स्लाइड में जानिए आफरीन की दास्तान...

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पढ़ी-लिखी आफरीन भी नहीं बच पाई! 

मायके और ससुराल से सब कुछ खो चुकीं जोधपुर की आफरीन रहमान ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ अपील दायर कर दूसरों की जिंदगी बचाने की ठानी है। आफरीन का निकाह 24 अगस्त 2014 को इंदौर के सैय्यद अशर अली वारसी के साथ हुआ। आफरीन के पास एमबीए (फाइनेंस) की डिग्री थी तो सैय्यद ने भी एमए और एलएलबी कर रखा था। दोनों का रिश्ता वैवाहिक वेबसाइट के जरिए तय हुआ था। जयपुर के एक पंचसितारा रिजॉर्ट में 25 लाख खर्च कर धूमधाम निकाह की रस्में अदा की गईं।

बाद में आफरीन की इंटीरियर डिजाइनिंग स्टोर में मैनेजर की नौकरी ससुरालवालों को नहीं भायी। सैय्यद ने 27 सितंबर 2015 को मामूली कहासुनी के बाद बिना टिकट जयपुर की एक ट्रेन में बैठा दिया। आफरीन ने बताया कि 27 जनवरी 2016 को सैय्यद की चिट्ठी आई। इसमें ‘तलाक, तलाक, तलाक’ के साथ ही लिखा था, ‘तुम मुङो कभी खुश नहीं रख पाईं। मां को हादसे में खो चुकीं आफरीन के भाई ने खुदकुशी कर ली, लेकिन आज वह दूसरी महिलाओं के लिए लड़ रही हैं।

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हाईकोर्ट ने की सख्त टिपण्णी..

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मामले में ये टिपण्णी उन दो केस में की है जिनमें याचिकाकर्ताओं ने तीन तलाक के आधार पर रिश्ता तोड़कर दूसरा निकाह कर लिया और साथ रहने के लिए पुलिस सुरक्षा की खातिर अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने स्पष्ट कहा कि मुस्लिम समुदाय के सभी वर्ग तीन तलाक को मान्यता नहीं देते, किंतु एक बड़ा मुस्लिम समाज तीन तलाक स्वीकार कर रहा है। यह न केवल संविधान के समानता एवं भेदभावविहीन समाज के मूल अधिकारों के विपरीत है। न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की एकल पीठ ने पांच नवंबर के आदेश में स्पष्ट किया कि वह मुस्लिमों में शादी और तलाक की वैधता पर कोई फैसला नहीं दे रही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़ा मामला लंबित है। कोर्ट ने इसे अपना ‘आब्जर्वेशन’ बताया।

मुस्लिम औरतों को निजी कानूनों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता
कोर्ट ने कहा कि पंथनिरपेक्ष देशों में संविधान के तहत आधुनिक कानून सामाजिक बदलाव लाते हैं। भारत में भी संख्या में मुसलमान रहते हैं। लेकिन मुस्लिम औरतों को पुराने रीतिरिवाजों और सामाजिक मान्यताओं वाले निजी कानूनों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि पवित्र कुरान में पति पत्नी के बीच सुलह के सारे प्रयास विफल होने की दशा में ही तलाक या खुला का नियम है। किंतु कुछ लोग कुरान की मनमानी व्याख्या करते हैं। पर्सनल लॉ संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के ऊपर नहीं हो सकता।

बिना ठोस कारण तलाक गलत
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिमों में बहुविवाह और तलाक से जुड़े मामलों की जटिलताओं सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। अदालत ने कहा कि यदि पत्नी के व्यवहार या बुरे चरित्र के कारण वैवाहिक जीवन दुखमय हो गया हो तो पुरुष विवाह विच्छेद कर सकता है और इस्लाम में इसे सही माना गया है। किंतु बिना ठोस कारण के तलाक को धार्मिक या कानून की निगाह में सही नहीं ठहराया जा सकता। कई इस्लामिक देशों में पुरुष को कोर्ट में तलाक के कारण बताने पड़ते हैं, तभी तलाक मिल पाता है। ऐसे में तीन तलाक को सही नहीं माना जा सकता। 

अगली स्लाइड में पढ़िए कोर्ट ने किन याचिकाओं पर टिप्पणी की..

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पहली याचिका 

पहली याचिका रौनक सराय बुलंदशहर की हिना और अजमेरी ने सुरक्षा की मांग में दाखिल की थी। दोनों का कहना था कि वे बालिग हैं और उन्होंने शादी कर ली है। पुरुष का कहना था कि वह अपनी पहली पत्नी (दो बच्चों की मां)को तलाक दे चुका है। तलाक के बाद ही दूसरी शादी की है लेकिन पुलिस उसे और लड़की की मां उन्हें परेशान कर रही है। उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए।

अदालत ने 23 साल की हिना से 53 साल की उम्र में निकाह करने वाले अजमेरी द्वारा पहली पत्नी और दो बच्चों की मां को तलाक देने को सही नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी को तीन तलाक देकर हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार नहीं की जा सकती। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए नवविवाहिता पति-पत्नी की सुरक्षा की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी।

दूसरी याचिका 
दूसरी याचिका मुस्लिम महिला उमेरा बी ने सुरक्षा की मांग में दाखिल की थी। उमेरा के मुताबिक उनका पहला पति हसीन मियां दुबई में नौकरी करता है और हसीन मियां ने फोन पर उसे तलाक दे दिया था। उमेरा का कहना है कि तलाक के बाद उसने मुस्लिम अली नाम के युवक से शादी कर ली। बाद में हसीन मियां दुबई से लौटा और पुलिस के साथ मिलकर उसे परेशान कर रहा है। उधर हसीन मियां के मुताबिक उसने उमेरा बी को तलाक नहीं दिया। उनका कहना है कि उमेरा तीन तलाक का सहारा लेकर अपने प्रेमी से निकाह को जायज ठहरा रही है। कोर्ट ने उनसे पुलिस अधीक्षक से सहायता लेने का निर्देश देकर याचिका निस्तारित कर दी।

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