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जाट आंदोलन में हिंसा आजादी के बाद की सबसे दुखद घटना: हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जाट आरक्षण के दौरान हुई हिंसा को देश की आजादी की बाद की सबसे दुखद घटना करार दिया है। मुरथल में महिलाओं से जाट आंदोलनकारियों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म करने के मामले की...


जाट आंदोलन में हिंसा आजादी के बाद की सबसे दुखद घटना: हाईकोर्ट
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 24 Sep 2016 09:46 PM
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जाट आरक्षण के दौरान हुई हिंसा को देश की आजादी की बाद की सबसे दुखद घटना करार दिया है। मुरथल में महिलाओं से जाट आंदोलनकारियों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म करने के मामले की सुनवाई के दौरान शनिवार को हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की।

हाईकोर्ट में जस्टिस एसएस सारों और जस्टिस लीजा गिल ने कहा कि जाट आंदोलन के दौरान जो हुआ वह 1947 से अब तक की सबसे दुखद घटना है। राज्य सरकार के इस मामले में रवैये पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने फिर कहा कि क्यों न आंदोलन के दौरान हिंसा, तोडफ़ोड़ ओर आगजनी के सारे मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए।

हाईकोर्ट ने कहा कि हमें एक्शन चाहिए। राज्य सरकार की अभी जैसी जांच चल रही है वह संतोषजनक नहीं है। इस मामले में वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के भाई सतपाल ने भी याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका पर सुनवाई में उनके वकील ने कहा की आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। कोर्ट ने कहा कि अगर वित्तमंत्री के भाई को इंसाफ नहीं मिल रहा तो आम जनता का क्या होगा।

इस मामले में न्यायमित्र ने पूछा कि क्या कारण है कि दो हजार मामलों में से मात्र दो या तीन केस की सीबीआई को सौंपे गए। हरियाणा सरकार की ओर से वकील तुषार मेहता ने कहा कुछ मामलों में राजनीतिक षड्यंत्र की जांच और कुछ बड़े राजनीतिक नाम के शामिल होने की आशंका के कारण ये मामले सीबीआई को सौंपे गए, बाकि मामलों की जांच भी जारी है। उन्होंने हाईकोर्ट में बताया कि हिंसा के मामलों में अब तक 1621 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

राज्य सरकार को फटकार
हरियाणा सरकार द्वारा हाईकोर्ट में दायर किए गए जवाब में लिखी गई शब्दावली को लेकर अदालत में हंगामा हो गया। सरकार के जवाब में कहा गया था कि जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई घटनाओं में अदालत का हस्तक्षेप जरूरत से ज्यादा किया जा रहा है। इस पर न्यायाधीश गुस्से में आ गए और उन्होंने कहा कि यह प्रदेश के लोगों से जुड़ा मामला है। अदालत इस मामले से नहीं हटेगी। राज्य सरकार चाहे तो हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे जाकर स्टे ले सकती है। 
 

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