हाशिमपुरा कांड: मौलाना यामीन की लड़ाई जारी है..
हाशिमपुरा कांड कब का दब गया होता। आंख में आंसू थे और सीने में दर्द। लेकिन सवाल था कि इस लड़ाई को लड़े कौन। हुकूमत शांत थी। सियासत उबल रही थी। कोई आगे आने को तैयार नहीं था। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के...
हाशिमपुरा कांड कब का दब गया होता। आंख में आंसू थे और सीने में दर्द। लेकिन सवाल था कि इस लड़ाई को लड़े कौन। हुकूमत शांत थी। सियासत उबल रही थी। कोई आगे आने को तैयार नहीं था। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक रहे मौलाना यामीन ने हाशिमपुरा के पीड़ितों की आवाज उठाई। मौलाना यामीन हिम्मत नहीं हारे और कानूनी लड़ाई लड़ते रहे। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला तीसहजारी कोर्ट में ट्रांसफर किया। तभी से वहां सुनवाई हो रही थी।
यामीन ने भी खोया अपना बेटा: हाशिमपुरा की लड़ाई लड़ने वाले मौलाना यामीन ने दंगे में अपना बेटा तारिक अरशद को भी खोया। तारिक अरशद ही अपने पिता के सारे काम संभालता था। 6 नवंबर 1990 को मेरठ में भड़के दंगे में तारिक अरशद की कोटला में हत्या कर दी गई। तारिक अरशद की जान एक हिंदू को बचाने में गई। उसने बलवाइयों को यह कहकर रोका कि इसे क्यों मार रहे हो, यह तो गरीब-मेहनतकश है। तारिक की मौत के बाद जुनैद, पिता की लड़ाई लड़ रहा है।