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कार्यकर्ताओं ने शनि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित होने की परम्परा की आलोचना की

महिला कार्यकर्ताओं ने अहमदनगर जिले के प्रसिद्ध शनि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित होने की परम्परा की सोमवार को आलोचना की। इसके साथ ही वहां हाल में एक महिला के प्रवेश करने के बाद ग्रामणों...

कार्यकर्ताओं ने शनि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित होने की परम्परा की आलोचना की
एजेंसीMon, 30 Nov 2015 04:10 PM
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महिला कार्यकर्ताओं ने अहमदनगर जिले के प्रसिद्ध शनि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित होने की परम्परा की सोमवार को आलोचना की। इसके साथ ही वहां हाल में एक महिला के प्रवेश करने के बाद ग्रामणों द्वारा किए गए शुद्धिकरण की भी आलोचना की।
 
शनि शिगनापुर गांव में स्थित मंदिर में सदियों से महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है, लेकिन शनिवार को एक महिला ने सुरक्षा बैरीकेड को पार करते हुए चौथारा (चबूतरा) पर चढ़कर पूजा की और फिर भीड़ में चली गई।

ग्रामीणों ने रविवार को प्रतिमा का दूध अभिषेक किया और घटना के विरोध में सुबह में बंद का आयोजन किया। इससे क्षुब्ध मंदिर समिति भी हरकत में आई और सात सुरक्षाकर्मियों को निलंबित कर दिया।

'भगवान ने महिला को मंदिर में प्रवेश से नहीं रोका'
घटना को दुखद बताते हुए महाराष्ट्र की पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) चंद्रा आयंगर ने कहा, 'भगवान ने सबको समान बनाया है और हम कौन होते हैं कि किसी को पूजा करने या नहीं करने के लिए बाध्य करें। कम से कम भगवान ने कभी ऐसा नहीं कहा कि महिला को अगर रजोधर्म हो रहा है तो वह मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती।'

उन्होंने कहा कि चूंकि किसी महिला का धर्म उसके लिए विशिष्ट और महत्वपूर्ण मुद्दा है इसलिए सरकार ऐसे मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, क्योंकि इसे कानून (धार्मिक स्थानों के प्रशासन) का पालन करना होता है।

पूर्व नौकरशाह ने कहा कि अगर ये नियम मनुष्य बनाते हैं तो अब इस पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है।

उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि भगवान ने इस तरह का भेदभाव नहीं किया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि काफी संख्या में ऐसी महिलाएं हैं जो इस तरह के विश्वास का समर्थन करती हैं (मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित करना)।

'जयमाला के दावे पर हुआ बड़ा विवाद'
वर्ष 2006 में उस वक्त बड़ा विवाद पैदा हो गया था जब कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया था कि केरल के सबरीमाला मंदिर में किशोरावस्था में उन्होंने प्रवेश किया था और वहां मंदिर के गर्भगृह में भीड़ के साथ पहुंचकर उन्होंने भगवान की प्रतिमा का स्पर्श किया था।
    
इस तरह की प्रथा का विरोध करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व नौकरशाह आभा सिंह ने कहा कि न्यासी या प्रशासनिक संस्था इस तरह से अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे वे खापों की तरह संविधान से उपर के प्राधिकार हों।

उन्होंने कहा, ये प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का गंभीर उल्लंघन हैं जो हर नागरिक को समानता का अधिकार देता है और धर्म या लिंग के आधार पर किसी तरह के भेदभाव से इंकार करता है।

मंदिर प्रबंधन पर निशाना साधते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य निर्मला सामंत प्रभावलकर ने कहा, धार्मिक मामलों में केवल विशेषज्ञ ही निर्णय कर सकते हैं कि किसी महिला के प्रवेश से मंदिर अशुद्ध हुआ या नहीं और न कि ये लोग निर्णय कर सकते हैं। वे केवल मंदिर की देखरेख करते हैं।

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