Hindi Newsमरते दम तक कट्टरता के खिलाफ लड़ती रहूंगी: तसलीमा नसरीन
मरते दम तक कट्टरता के खिलाफ लड़ती रहूंगी: तसलीमा नसरीन
भारत में निर्वासन में रह रहीं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने कहा कि चरमपंथियों के दबाव में वह चुप नहीं होंगी और आखिरी सांस तक कट्टरपंथियों तथा बुरी ताकतों से संघर्ष करती रहेंगी। तसलीमा ने कहा,...
एजेंसीSun, 29 Nov 2015 08:15 AM
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भारत में निर्वासन में रह रहीं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने कहा कि चरमपंथियों के दबाव में वह चुप नहीं होंगी और आखिरी सांस तक कट्टरपंथियों तथा बुरी ताकतों से संघर्ष करती रहेंगी। तसलीमा ने कहा, मुझे लगता है कि कट्टरपंथी मुझे मारना चाहते हैं लेकिन मैं उनके खिलाफ प्रदर्शन करना चाहती हूं। अगर मैं लिखना बंद कर दूंगी तो इसका मतलब होगा कि वे जीत जाएंगे और मैं हार जाउंगी। मैं ऐसा नहीं चाहती। मैं चुप नहीं रहूंगी। मैं कट्टरपंथियों, बुरी ताकतों के खिलाफ अपनी मौत तक लड़ती रहूंगी।
अपनी रचनाओं को लेकर विवादों में रहीं 52 वर्षीय तसलीमा यहां टाइम्स लिटफेस्ट में बोल रहीं थीं। वह मुस्लिम कटटरपंथी संगठनों द्वारा जान से मारने की धमकियों के मद्देनजर 1994 से निर्वासन में रह रहीं हैं। बुर्का पर कर्नाटक के अखबारों में उनके लेख पर राज्य में हुए हिंसक प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए लेखिका ने कहा कि उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिशें की जा रहीं हैं और समाज में तनाव पैदा करने के लिए उनके लेखों का दुरपयोग किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, दंगों के लिए लेखकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। दंगाई किताबें नहीं पढ़ते। दंगाई राजनीतिक मकसद से दंगे करते हैं और कर्नाटक में दंगे इसलिए हुए क्योंकि कुछ लोगों ने बुर्का पर मेरे लेख को पसंद नहीं किया। यह उनकी समस्या थी, मेरी नहीं।
अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का समर्थन करते हुए तसलीमा ने कहा कि इसके बिना लोकतंत्र बेकार है। उन्होंने कहा, कुछ लोगों ने मुझ पर विवादास्पद विषयों पर लिखने का आरोप लगाया, लेकिन यह विवादास्पद विषय नहीं है। मेरा मानना है कि बुर्का दमन का प्रतीक है, इसलिए मैं बुर्का के खिलाफ लिखती हूं।
पूर्व भाजपा विचारक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र समावेशी और सहिष्णु है और विविधता का सम्मान करता है। कुलकर्णी पर पिछले महीने पूर्व पाकिस्तानी विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की पुस्तक के विमोचन को लेकर शिवसेना कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया था।
कुलकर्णी ने यह भी कहा कि बिहार में हार के बाद भाजपा मैत्रीपूर्ण रास्ता अपना रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को लोकतंत्र बनाने में पंडित जवाहरलाल नेहरू समेत पूर्व नेताओं के योगदान को मान रहे हैं। उपन्यासकार किरण नागरकर और कश्मीरी पत्रकार बशरत पीर ने भी लेखकों के सामने आ रहीं चुनौतियों की चर्चा की।
अपनी रचनाओं को लेकर विवादों में रहीं 52 वर्षीय तसलीमा यहां टाइम्स लिटफेस्ट में बोल रहीं थीं। वह मुस्लिम कटटरपंथी संगठनों द्वारा जान से मारने की धमकियों के मद्देनजर 1994 से निर्वासन में रह रहीं हैं। बुर्का पर कर्नाटक के अखबारों में उनके लेख पर राज्य में हुए हिंसक प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए लेखिका ने कहा कि उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिशें की जा रहीं हैं और समाज में तनाव पैदा करने के लिए उनके लेखों का दुरपयोग किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, दंगों के लिए लेखकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। दंगाई किताबें नहीं पढ़ते। दंगाई राजनीतिक मकसद से दंगे करते हैं और कर्नाटक में दंगे इसलिए हुए क्योंकि कुछ लोगों ने बुर्का पर मेरे लेख को पसंद नहीं किया। यह उनकी समस्या थी, मेरी नहीं।
अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का समर्थन करते हुए तसलीमा ने कहा कि इसके बिना लोकतंत्र बेकार है। उन्होंने कहा, कुछ लोगों ने मुझ पर विवादास्पद विषयों पर लिखने का आरोप लगाया, लेकिन यह विवादास्पद विषय नहीं है। मेरा मानना है कि बुर्का दमन का प्रतीक है, इसलिए मैं बुर्का के खिलाफ लिखती हूं।
पूर्व भाजपा विचारक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र समावेशी और सहिष्णु है और विविधता का सम्मान करता है। कुलकर्णी पर पिछले महीने पूर्व पाकिस्तानी विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की पुस्तक के विमोचन को लेकर शिवसेना कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया था।
कुलकर्णी ने यह भी कहा कि बिहार में हार के बाद भाजपा मैत्रीपूर्ण रास्ता अपना रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को लोकतंत्र बनाने में पंडित जवाहरलाल नेहरू समेत पूर्व नेताओं के योगदान को मान रहे हैं। उपन्यासकार किरण नागरकर और कश्मीरी पत्रकार बशरत पीर ने भी लेखकों के सामने आ रहीं चुनौतियों की चर्चा की।